बहुत हो गया ऊंचा रावण, बौना होता राम....
>> Saturday, September 26, 2009
बहुत हो गया ऊंचा रावण, बौना होता राम,
मेरे देश की उत्सव-प्रेमी जनता तुझे प्रणाम.
नाचो-गाओ, मौज मनाओ, कहाँ जा रहा देश,
मत सोचो, काहे की चिंता, व्यर्थ न पालो क्लेश.
हर बस्ती में है इक रावण, उसी का है अब नाम....
नैतिकता-सीता बेचारी, करती चीख-पुकार,
देखो मेरे वस्त्र हर लिये, अबला हूँ लाचार.
पश्चिम का रावण हँसता है, अब तो सुबहो-शाम...
राम-राज इक सपना है पर देख रहे है आज,
नेता, अफसर, पुलिस सभी का, फैला गुंडा-राज.
डान-माफिया रावण-सुत बन करते काम तमाम...
मंहगाई की सुरसा प्रतिदिन, निगल रही सुख-चैन,
लूट रहे है व्यापारी सब, रोते निर्धन नैन.
दो पाटन के बीच पिस रहा, अब गरीब हे राम...
बहुत बढा है कद रावण का, हो ऊंचा अब राम,
तभी देश के कष्ट मिटेंगे, पाएंगे सुख-धाम.
अपने मन का रावण मारें, यही आज पैगाम...
कहीं पे नक्सल-आतंकी है, कही पे वर्दी-खोर,
हिंसा की चक्की में पिसता, लोकतंत्र कमजोर.
बेबस जनता करती है अब केवल त्राहीमाम..
बहुत हो गया ऊंचा रावण, बौना होता राम,
मेरे देश की उत्सव-प्रेमी जनता तुझे प्रणाम......
5 टिप्पणियाँ:
हर बस्ती में है इक रावण, उसी का है अब नाम....
सही कहा है, हर बस्ती मे रावण है
मैने भी रावण देखा है देखे मेरे ब्लोग पर :
http://verma8829.blogspot.com/2009/09/blog-post_24.html
कहीं पे नक्सल-आतंकी है, कही पे वर्दी-खोर,
हिंसा की चक्की में पिसता, लोकतंत्र कमजोर.
बेबस जनता करती है अब केवल त्राहीमाम..
बहुत सुग्घर सामयिक रचना हवय गिरीश भैया आप मन ला दुर्गा नवमी के बधई
दशहरा पर्व पर अच्छी रचना .
दशहरा पर्व की हार्दिक शुभकामना
बहुत सुन्दर रचना भईया, आभार.
आपको विजयादशमी की अग्रिम शुभकामनांए.
पुन्य से अब पाप का, छिड़ने दो संग्राम।
धरती को शायद मिले, फ़िर से कोई राम॥
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