''सद्भावना दर्पण'

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इस बार गद्य व्यंग्य

>> Saturday, September 26, 2009


चा निलंबितों की वार्ता
गिरीश पंकज

चार निलंबित जन सिर पर हाथ धरे गंभीर मुद्रा में बैटे हुए थे। बाद में प्राणायाम में रत हो गए।
एक बेचारा मर्मभेदी स्वर में पुराना फिल्मी गीत गाए जा रहा था, 'इस भरी दुनिया में कोई भी हमारा हुआ। गैर तो गैर थे अपनो का सहारा हुआ। दूसरा मन को मजबूत करने के लिए अनुलोम-विलोम कर रहा था, तीसरा कपालभाती में भिड़ा था। चौथा भ्रामरी कर रहा था। दरअसल हरिद्वार से आए किसी महात्मा ने बता दिया था, कि चित्त की शाँति के लिए प्राणायाम कर लिया करो। इससे निलंबन का दु: भी कुछ कम हो जाएगा।
काफी देर तक सिर झुकाए रहने के बाद एक ने सिर उठाकर कहा- ''हमारे साथ सरकार ने अन्याय किया है। क्या एक हमीं हैं, जो गलत काम करते हैं? और भी कई लोग भ्रष्टाचार कर रहे हैं, जिन्हें 'सस्पेंड किया जाना था, लेकिन गाज गिरी हमारे ऊपर। मैं समझ नहीं पाता कि आखिर सरकार छापामार कार्रवाई काय कूँ करती है? हमें मौका दिया है तो क्या उसका लाभ भी उठाएँ? हर कोई सरकारी नौकरी में माल सरकाने की नीयत से ही तो आता है न।
दूसरा निलंबित होने के बाद कुछ-कुछ दार्शनिक किस्म का हो गया था। किसी पुराने निलंबित अधिकारी से मिलिए, तो वह दार्शनिक जैसा व्यवहार करता है। लोग उसे पागल भी समझते हैं, लेकिन वह निलंबन के कारण चिंतक हो जाता है। ज्ञानचक्षु खुल-से जाते हैं। दार्शनिक बने निलंबित अधिकारी ने कहा-
''हाँ भई, आप ठीक कहते हैं। लेकिन कहा गया है कि जब ससुरे बुरे दिन आते हैं तो वे मोबाइल या एसएमएस करके नहीं आते कि भैये, अब हम तुम्हारे पास पहुँचने वाले हैं। वैसे सच पूछा जाए तो हमने जाने कितने लोगों का बुरा ही किया। अब, जब अपनी बारी आई है तो निलंबित होने का खिताब पाने का दु: क्यों करें? हाय, दु:खी हो कर मेरे भीतर से अचानक एक कविता भी फूट पड़ी है, सुन लो-
दोस्त, रिश्तेदार सारे सब अचंभित हो गए।
हम बड़े ही धार्मिक थे, क्यों निलंबित हो गए।
तीर्थयात्रा और फारेन-टूर का प्रोग्राम था,
हम निलंबित क्या हुए प्रोग्राम लंबित हो गए
दूसरे ने तीसरे से पूछा - ''अच्छा प्रियतम जी, आप किस आरोप में निलंबित हुए थे?"
प्रियतम जी के चेहरे पर हल्की-सी मुसकान तैर गई, वे बोले, ''मैं तो अपनी 'पीए के साथ मटरगश्ती करने के कारण निलंबित कर दिया गया। जैसा हर कोई करता रहता है।... और जानते हैं, सबसे दुखद पहलू क्या था?"
सारे निलंबितों ने एक स्वर में पूछा- ''वो क्या था?"
''वो ये था कि मेरी बीवी को पता चल गया, कि मैं पीए के साथ ज्यादा व्यस्त और मस्त रहने लगा हूँ। बस, वह त्रस्त हो गई। उसने बड़े बॉस को शिकायत कर दी। तब से लेकर अब तक निलंबित हूँ। पीए के गम आजकल 'पिये" रहता हूँ। अच्छा, आप क्यों 'सस्पेंड" हुए साहब?"
''मेरे सस्पेंड होने के पीछे इतना रूमानी कारण नहीं था।" पाकिटप्रसाद ने प्रियतम जी को जवाब दिया, ''मैं तो रिश्वतखोरी करते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया था। देखो , कितना बुरा समय गया है। अगले को अपना काम करवाना था। तुम तो जानते हो, हम बिना घूस-वूस खाए कभीच्च काम नहीं करते, सो हमने कहा- 'पाँच हजार लूँगा" उसने भी कह दिया कि कल ग्यारह बजे ले आऊगा हम दूसरे दिन उसका इंतजार करते बैठे रहे। वह ठीक ग्यारह बजे धमका और मुझे पाँच हजार थमा दिए। रुपए हाथ में लेकर अपनी तिजोरी की तरफ मुड़ा ही था कि चार लोग यमदूत की तरह तेजी के साथ घर में घुसे और मुझे पकड़ लिया। ये लोग सतर्कता विभाग के थे। उन्होंने मेरा हाथ धुलवाया तो मेरे हाथों में रंग था, जो उन्होंने रिश्वत वाले नोट में लगाया था। इस तरह उन्होंने मुझे रंगे हाथों पकड़ लिया। शिकायत हुई। जाँच होने लगी और मुझे निलंबित कर दिया गया। एक साल हो गए हैं। निलंबित सिंह बना हुआ हूँ। किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहा। जो भी मिलता है, यही पूछता है, क्यों भाई आपके रंगे हाथों पकड़ाने वाला किस्सा क्या है, कुछ हमें भी तो सुनाइए ? हमारी जान चली गई और भाई लोगन को मजा रहा है। तो भइया, निलंबित क्या हुए, बाहर निकलने की हिम्मत नहीं होती।"
तीसरे जेलप्रसाद ने कहा - ''मैं भी तो रिश्वतखोरी के मामले में निलंबित हुआ था। अपने देश में ज्यादातर निलंबन रिश्वत के मामले में ही होते हैं। तो भाई साहब, मैं आपको बताऊँ , कि जब मैं टिम्बकटू में पोस्टेड था तो मानो स्वर्ग-लोक में पहुँच गया था। पैसा खुद चल के मेरे पास आता था और कहता था, कि 'सर प्लीज, कैच मी" मैं कैच कर लेता था। घर आई लक्ष्मी को कौन ठुकराता है भला? लेकिन इस समाज के कुछ दुर्जन किस्म के लोगों से हमारा सुख देखा गया और मेरे खिलाफ 'बदमाशों ने शिकायतें शुरू कर दीं। आखिरकार मैं बाहर के भाव में चला गया। साल भर हो गए निलंबन के। कोई ऊपरी कमाई नहीं। तनखा भी कटकर मिल रही है। ये तो अच्छा हुआ कि हराम की कमाई का 'बैंक बैलेंस" जमा कर चुका था, वरना अपने जो शौक हैं, उनकी पूर्ति कैसे हो सकती थी?"
चौथे निलंबित काष्ठकुमार छाती पीटते हुए कहा - ''मेरी कथा भी सुन लो भई। मेरे हाथ में तो पूरा जंगल था। जंगल में मंगल ही मंगल था। बस, एक दिन एक शैतान मन में बसा। गाय-बकरियों को घास-पत्ता चरते देखते रहता था। अपने मन में भी एक दिन विचार आया कि क्यों अपन भी पूरा जंगल का जंगल चर जाएँ। जो काम गाय कर सकती है वो मनुष्य क्यों नहीं कर सकता है? कुछ पाने के लिए त्याग तो करना ही होता है। बिना त्यागी बने, सुख नहीं मिलता। सो, मैंने भी अपने आदर्श का त्याग कर दिया और लगा जंगल खाने। उधर जंगल कम होता गया, इधर मेरी हवेली तनती गई। पैसा आता गया तो हम भी तनते गए। तनते-तनते एक समय ऐसा भी आया, जब मेरा घर एक दर्शनीय स्थल में तब्दील हो गया। लोग शहर आते तो लोगों से पूछते शहर के दर्शनीय स्थलों के नाम बताइए। हर कोई मेरे महल का नाम बता देता। बस, नज़र लागी राजा तोरे बंगले पर। लोगों की नज़र लग गई। सरकार के दोनों कान भर दिए गए। और एक दिन घर पर जबर्दस्त छापा पड़ा और अपुन का काम हो गया। जंगल का अमंगल करने के चक्कर में हमहू निलंबित हो गए। कभी हम निलंबन आदेश को, कभी अपने महल को देखते हैं। जंगल साफ होने से बच चुका है। यही मेरा सबसे बड़ा दु: है। मूरख सरकार। झाड़-झंखाड़ का करेगी क्या? मुझे चरने देती, महल बनाने देती, लेकिन बड़ी क्रूरता के साथ मेरे ऐशोआराम के सारे सामान जब्त कर लिए गए। अब हम रात-रात भर जाग-जाग कर अपने निलंबन की वापसी का इंतजार करते हैं।"
चारों निलंबितों ने अपने-अपने ऐतिहासिक कारनामों के बारे में एक-दूसरे को ईमानदारी के साथ जानकारी दी। फिर एक-दूसरे के कंधों पर सिर रख कर कुछ देर तक आँसू बहाते रहे। चारों इस बात से समहत थे कि भले ही हम लोग भ्रष्टïाचार के मामले में पकड़े गए लेकिन पूरी कोशिश करेंगे कि हमारे प्यारे-प्यारे बच्चे पकड़े जाएँ। उन्हें समझाएंगे, कि रिश्वत कैसी ली जाए। मैं तो एक पुस्तक भी लिखने वाला हूँ, कि रिश्वत से बचने के सैा टिप्स। इसे इंटरनेट पर भी डाल देंगे। तरह-तरह के काले कारनामों से कैसे बचें, इसके टिप्स भी अलग से दिए जाएँगे। हम अपनी गलतियों से सबक लेकर उनका भविष्य संवार सकते हैं। बिना रिश्वत के तो ऐश संभव नहीं। क्यों भई, कैसा है सुझाव?"
सबने एक स्वर में कहा-''बिल्कुल मस्त-मस्त।"
चारों निलंबितों ने कसम खाई कि हम अपने-अपने बच्चों को भ्रष्टाचार में ट्रेंड करेंगे ताकि वे रंगे हाथों पकड़े जाएँ और बेचारे हमारी तरह निलंबन का दुख भोगें। अलबत्ता चंद सालों में ही इतना पैसा कमा लें कि बर्खास्त भी हो जाएं तो कोई फर्क पड़े।
जेलप्रसाद ने एक और बढिय़ा सुझाव दिया- ''क्यों हम लोग एक वेब साइट ही बना लें-निलंबित डॉट कॉम। इस साइट के माध्यम से हम दुुनिया के तमाम निलंबितों को एकजुट करेंगे। अपन एक संगठन ही बना लेते ही , 'निलंबित अधिकारी संघ जो कोई भी निलंबित हो, हम लोग उसकी मदद करें। रिश्वत लेते हुए पकड़े गए हैं, तो रिश्वत दे कर कैसे छूटें, इसकी टे्रनिंग दी जाए। अपन सरकार से मिलें और कहें, कि आप हमें निलंबित कर दें तो करें, लेकिन हमारे नाम अखबारों तक तो पहुँचाएँ। इमे खराब होती है। मुँह दिखाने लायक नहीं रह जाते। अब उनकी बात और है जो बेशरमी के महाकाव्य को रटे हुए हैं। उनको कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन हमारे जैसे महान इज्जतदार लोगों को निलंबित हो कर कैसा-कैसा तो लगता है।"
सबको सुझाव पसंद आया। उन्होंने निर्णय किया कि कल ही सीएम से मिलेंगे, कि वे कुछ करें। सबके सब भयानक आशावादी होकर अपने-अपने घरों की ओर चल पड़े।
इस तरह वे चार निलंबित लोग बहुत सारे निलंबितों के प्रेरणास्रोत बन चुके थे।

2 टिप्पणियाँ:

Yogesh Verma Swapn September 26, 2009 at 4:40 PM  

ha ha ha. bahut pyara sunder vyangya.

Udan Tashtari September 26, 2009 at 10:57 PM  

बहुत सटीक!! निलंबितों के प्रेरणास्रोतों को नमन!

सुनिए गिरीश पंकज को

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