जवानी ढल जाती है......
>> Monday, September 28, 2009
गीत.....
रूप की चिडिया हाथ न आई,
उड़ गई वो फुर से।
मुख न ढांको अरी बावरी,
दर्पण के डर से।।
जवानी ढल जाती है......
हर आने वाला जाएगा,
है यह अटल विधान।
जो समझे मै चिर नवीन हूँ,
वो पागल-नादान।
मृत्यु क्या टल जाती है..
जवानी ढल जाती है.....
तन का, धन का, पद का वैभव,
यहाँ रहा कब तक ?
मंडराते हैं भौरे देखो,
रहे मधु जब तक।
पंखुरी गल जाती है।
जवानी ढल जाती है.....
जीवन ऐसे जियो कि जैसे,
आज आखिरी शाम।
जाने कब किसके हिस्से में,
लगे मौत का जाम।
ज़िन्दगी छल जाती है।
जवानी ढल जाती है.....
गिरीश पंकज
5 टिप्पणियाँ:
बिल्कुल जी, यथार्थ सामने ले आये. दुमदार दोहों की तर्ज मुझे बहुत पसंद आती है...अढाइया सटीक वार करता है.
बेहतरीन.
आपको विजयादशमी की बधाई!
wah , girish ji,
behatareen vicharon ke saath lajawaab, behatareen rachna ke liye badhaai.
antim para anupam.
udan tashtari aur yogesh ji,
aap logo ki shubhkamnaye, protsahan se achchha kahte rahne ka hausla bana rahta hai..isi tarah jude rahe dhanyvad..aabhar bhi.
ज़िन्दगी छल जाती है।
जवानी ढल जाती है.....
जीवन भरपूर जीया जाये ...बहुत शुभकामनायें ..!!
ज़िन्दगी छल जाती है।
sidhi sadhi bhasha me jivan ka
sach ubhar aaya hai ! bahut sunder geet hai ! badhai swikaren !
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