''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
&COPY गिरीश पंकज संपादक सदभावना दर्पण. Powered by Blogger.

परिंदे भी तो अपना इक ठिकाना खोज लेते हैं.....

>> Tuesday, September 29, 2009

दो गज़लें....

()
जो हैं आशिक वो अपना आशियाना खोज लेते हैं
हमेशा पास आने का बहाना खोज लेते हैं

ज़माने की न सोचो तुम ज़माना है बड़ा जालिम
यहाँ तो लोग घर बैठे फ़साना खोज लेते हैं

चले आओ कि मेरा दिल तुम्हारा राह तकता है
परिंदे भी तो अपना इक ठिकाना खोज लेते हैं

नही रहता कोई तनहा खुदा की रीत है ऐसी
सुना है बेज़ुबां तक जानेजाना खोज लेते हैं

अगर दिल में महब्बत है तो तपती दोपहर में भी
जो है आशिक वो इक मौसम सुहाना खोज लेते हैं

()

तुम किसी का कभी दिल दुखाना नहीं
साँस है बेवफा कुछ ठिकाना नहीं

जब तलक ज़िन्दगी प्यार करते चलो
तुम मगर प्यार को आजमाना नहीं

रौशनी के लिए दीप भी हैं बहुत
भूल कर तुम किसी को बुझाना नहीं

अबके आना मगर तुमको मेरी कसम
दिल मेरा तोड़ कर फ़िर से जाना नही

मुझसे नफ़रत सही पर मेरी शर्त है
गीत पंकज के तुम गुनगुनाना नहीं

गिरीश पंकज
चित्र-रेड्बबल.काम से साभार

8 टिप्पणियाँ:

ब्लॉ.ललित शर्मा September 29, 2009 at 9:59 AM  

जो हैं आशिक वो अपना आशियाना खोज लेते हैं
हमेशा पास आने का बहाना खोज लेते हैं

ज़माने की न सोचो तुम ज़माना है बड़ा जालिम
यहाँ तो लोग घर बैठे फ़साना खोज लेते हैं

bahut badiya gazal hai girish bhaiya badhai ho,

ब्लॉ.ललित शर्मा September 29, 2009 at 10:00 AM  

ek nivedan hai ki blog se word verification ko hatao tippni me bahut time lagata hai,

शरद कोकास September 29, 2009 at 11:23 AM  

मुझसे नफ़रत सही पर मेरी शर्त है
गीत पंकज के तुम गुनगुनाना नहीं
गिरीश भाई यहाँ तक आते आते हम इसे गज़ल की तरह ही गुनगुना रहे थे । उम्दा गज़ल ।

अजय कुमार झा September 29, 2009 at 11:30 AM  

गज़ब हैं जी...एक दमी गज़ब....इससे ज्यादा कुछ कह्ते ही नहीं बनता....

girish pankaj September 30, 2009 at 4:55 AM  

aap sab mitron ka aabhar ki gazale pasand aayeen. hausla milta rahe... to silsila chalta rahe.

Yogesh Verma Swapn September 30, 2009 at 9:26 AM  

pankaj ji, donon rachna behatareen/lajawaab, dheron badhaai.

ACHARYA RAMESH SACHDEVA April 14, 2010 at 10:14 AM  

GIRISHI JI+PANKAJJI (ZEE)
FOR ALL YOUR POEMS ONE PUNJABI LINE :
"AANA SACH NA BOL KAHLA RAH JAVENGA,
CHAR EK BANDE CHHAD L MODHA DEN LAYI"
YOU ARE TRUE TO YOUR WORDS.
IF I AM NOT COMMENTING MEAN I HAVE NO WORDS
ABOVE LINE MEAN :-
AT LAST WE WANT FOUR FOR CEREMATION SO THOSE FOUR MUST BE LEFT.

रमेश शर्मा September 23, 2010 at 7:16 AM  

Girish ji,swargiya ramkumar ji ke ghar raigarh ki gosti main aapse mulakat hui thi.achha laga tha apse milkar aapki rachanaye sunkar. ye dono gajale bhi behetarin hain.badhai.
Ramesh Sharma
shaharnamaraigarh.blogspot.com

सुनिए गिरीश पंकज को

  © Free Blogger Templates Skyblue by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP