विश्व गौरैया-दिवस...आँगन में जब आती चिड़िया
>> Friday, March 19, 2010
आज विश्व गौरैया-दिवस है. बधाइयाँ, शुभकामनाएं, कि हर प्यारी गौरैया बची रहे. मन नहीं माना, सोचा, एक कविता पोस्ट कर दू. हम लोग तमाम जीवो के पीछे पड़े है. गाय, बकरी, (कुत्ते तक.)मुर्गा, तीतर, बटेर, गौरैया, मछली, और न जाने क्या-क्या खाने पर तुले है. आदमी की चटोरी जीभ हर चीज़ खाने के लिए लपलपाती है. सात्विक आहारो से भरी हुई दुनिया में निरीह जीवो को स्वाद लेकर खाने वाले मनुष्यों के मन में हिंसा सहज रूप में घर कर लेती है. ऐसा कहने पर कुतर्क भी पेश किये जाते है, कि अनाज में भी प्राण है.मतलब हम भी उन हिंसक लोगो की ही तरह है, जो लोग जानवरों को मारकर खा रहे है, वे गलत नहीं है. वे परमार्थ कर रहे है. पृथ्वी पर जीव-जंतुओं कि संख्या नियंत्रित करने का ''बड़ा काम'' कर रहे है. अब इस तर्क को क्या कहे ..? पहले मांसाहार के लिए एक ख़ास जाति-धर्म के लोगो को पहचाना जाता था, लेकिन अब हालत यह है,कि ब्राहमण, जैनी, मारवाड़ी समाज के कुछ ज्यादा समझदार (या कहें कि भटके )लोग भी बड़े चाव से मांसाहार करते हुए पाए जाते है. खैर, बात लम्बी हो जायेगी और तरह-तरह के जीवो को चाव से खाकर 'संतुलन बनाने के' 'नेक काम' में लगे लोगों को बात चुभ भी सकती है, इसलिए मै अब चिड़िया पर लिखा गीत पेश कर रहा हूँ.(यह बताने में संकोच हो रहा है कि यह कविता अब सीधे...अभी ..तत्काल..शुरू कर रहा हूँ. यह पहले से लिखी गयी कविता नहीं है. सीधे लेपटोप पर टाईप कर आप तक पहुचाने की विनम्र कोशिश कर रहा हूँ. देखे, सफल हो पता हूँ कि नहीं. मन की बात अभी आ जाये. सुधार फिर कर लूँगा. )
आँगन में जब आती चिड़िया
मेरे मन को भाती चिड़िया
मै उससे बातें करता हूँ,
मुझसे भी बतियाती चिड़िया
बड़े प्रेम से चुन-चुन कर के,
इक-इक दाने खाती चिड़िया
जल, छाँव और मुझे बचाओ
हरदम यह बतलाती चिड़िया
जब भी कोई चाकू देखे
घबरा कर उड़ जाती चिड़िया
मै इस धरती का गाना हूँ
चीं-चीं कर यह गाती चिड़िया
जिस घर में इनसान मिलेंगे
उस घर में ही जाती चिड़िया
तुम गौरैया-वर्ष मनाओ
आज यही समझाती चिड़िया
मुझे नहीं, अन्न तुम खाओ
यह सन्देश सुनाती चिड़िया
रहो सदा मिलजुल कर के तुम
यह सन्देश सुनाती चिड़िया
रहो सदा मिलजुल कर के तुम
यह सन्देश सुनाती चिड़िया
आँगन में जब आती चिड़िया
मेरे मन को भाती चिड़िया
9 टिप्पणियाँ:
अच्छी कविता है।
जिस घर में इनसान मिलेंगे
उस घर में ही जाती चिड़िया
वाह गिरीश जी वाह...बहुत ही अच्छी कविता लिखी है आपने...चिड़िया की चीं चीं सुनने का सुख अलग ही होता है...मैंने अपने जयपुर वाले घर में छोटी छोटी मटकियाँ दीवार पर लटका रखीं हैं जिनमें पिछले तीस वर्षों से चिड़ियाएँ रह रही हैं...मटकियों की संख्या बढती जा रही है और साथ ही चिड़ियों की संख्या भी...सुबह शाम उनकी चीं चीं सुन आनंद आ जाता है...
नीरज
वाह गिरीश जी वाह...बहुत ही अच्छी कविता लिखी है आपने...चिड़िया की चीं चीं सुनने का सुख अलग ही होता है.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
bahut achchee kavita...
विश्व गौरैया दिवस-- गौरैया...तुम मत आना...
http://laddoospeaks.blogspot.com
वाह वाह …………।बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।
bahut sunder rachna hai girish ji , aur wo bhi live prastuti. lajawaab.
बढ़िया रचना!
विश्व गौरेया दिवस की शुभकामनाएँ.
मुझे नहीं अन्न तुम खाओ
यह संदेश सुनाती चिड़िया...
कविता बहुत ही सुंदर है। गौरेया कहीं बस कहानियों - कविताओं में ही ना रह जाए, इसके लिए आसपास हरियाली बहुत ज़रूरी है। मेरी खिड़की पर रोज़ गौरैया आती है...और तब मैं खुद को भाग्यशाली समझता हूं।
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