व्यंग्य/ (खुराफाती) ब्लॉगर का शिशु-गीत...
>> Friday, July 9, 2010
ब्लॉग की दुनिया एक महान दुनिया का नवसृजन-सा है. यह वैश्विक-लोकतंत्र का जीवंत उदाहरण भी है. हर कोई अपना ब्लॉग बनाकर मन की बात लिख सकता है. लेकिन इस सहज-अधिकारवाद के चलते क्या लोग कुछ भी लिखने के लिये स्वतन्त्र हैं? यह विचारणीय मुद्दा है. इधर कुछ धार्मिक किस्म के लोग कट्टरता दिखा रहे है, कुछ अपनी जाति का गुणगान कर रहे है तो कुछ धर्म का. कुछ बेचारे तो, जिन्हें अभी पूरी तरह ज्ञानबोध भी नहीं हुआ है, वे भी सक्रिय हो गए है. खेल-खेल में ब्लॉग बन भी तो जाता है. बहुत-से लोगों के लिये ब्लॉग ज्ञान के, अनुभव के प्रसार का महान साधन है, तो कुछ के लिये यह केवल ''समय बिताने के लिये करना है कुछ काम'' सरीखा उपक्रम लगता है.बचपन में एक कविता पढ़ी थी, ''माँ खादी की चादर दे दे मैं गांधी बन जाऊंगा'', उसी बाल-गीत की तर्ज़ पर - ब्लाग को मज़ाक समझनेवालों पर - विनम्रतापूर्वक व्यंग्य करता एक गीत, सुधी-पाठको के लिये....
(खुराफाती) ब्लॉगर का शिशु-गीत..
अम्मा इंटरनेट लगवा दे,
मै ब्लॉगर बन जाऊँगा.
दुनिया भर में बैठे-बैठे,
''पॉपुलर'' हो जाऊँगा.
मुझे एक तू लेपटॉप दे दे,
बाहर ले के जाऊँगा.
जहाँ भीड़ दिख जाय वही पर,
नेट खोल भिड जाऊँगा.
सब समझेंगे बुद्धिजीवी,
मन ही मन मुस्काऊंगा.
नहीं किसी से सीखूंगा कुछ,
छोटा न हो जाऊँगा.
अम्मा इंटरनेट लगवा दे,
मै ब्लॉगर बन जाऊँगा.
अंट-शंट जो भी मन आये,
मै तो लिखता जाऊँगा.
सेटिंग करके जल्दी-जल्दी,
खूब टिपण्णी पाऊँगा.
हलकी-फुलकी बातें करके,
दिल जीतूंगा दुनिया का.
सबकी फोटो भी देदूंगा,
क्या मुन्ना, क्या मुनिया का.
बहुत हो गया ज्ञानी-ध्यानी,
काहे ज्ञान बढ़ाऊंगा.
अम्मा इंटरनेट लगवा दे,
मै ब्लॉगर बन जाऊँगा.
ये भी ब्लॉगर, वो भी ब्लॉगर,
हर कोई अब ब्लॉगर है.
कोई सचमुच ज्ञानी-ध्यानी,
कोई सूखी गागर है.
कट्टरपंथी बनकर मैं तो,
'गंद' बहुत फैलाऊँगा.
लोग लड़ेंगे आपस में बस,
मैं तो कान खुजाऊंगा...
पढ़ना-लिखना कौन करे अब,
इसमें वक़्त बिताऊँगा.
अम्मा इंटरनेट लगवा दे,
मै ब्लॉगर बन जाऊँगा
14 टिप्पणियाँ:
अम्मा दें इनटरनेट दें ला दे
अम्मा इनटरनेट ला दें ला दें
मेरा मुंडा सरका जाय ...
अम्मा इनटरनेट लगवा दें लगवा दें
मेरा मुंडा सरका जाय ...
ला दें लगवा दें इनटरनेट लगवा दें
मेरा मुंडा सरका जाए
हा हा हा ...वाह साब आनंद आ गया ...आभार
Great ho idea sir ji
पर बिना पढे टिप्पणी देने पर आपके ईस टेम्पलेट ने मजबुर कर दिया ।
अजी अब्ब्बा से मांगो, ओर अम्मा की सिफ़ारिस लगवाओ जरुर मिल जायेगा, बहुत सुंदर जी
नए युग का गीत .धन्यवाद ------- अशोक बजाज रायपुर
हा हा हा
बहुत खुराफ़ाती हैं भैया
अम्मा देख, हाँ देख, तेरा मुंडा बिगड़ा जाये
सच्ची एक खुराफाती गीत...:):)
गिरीश भाई साहब को हमारा नमस्कार। हा हा हा हा हा……………करारा व्यंग्य। हम भी इसी थैले के चट्टे हैं। "अंट-शंट जो भी मन आये,
मै तो लिखता जाऊँगा.
सेटिंग करके जल्दी-जल्दी,
खूब टिपण्णी पाऊँगा.
हलकी-फुलकी बातें करके,
दिल जीतूंगा दुनिया का.
सबकी फोटो भी देदूंगा,
क्या मुन्ना, क्या मुनिया का.
बहुत हो गया ज्ञानी-ध्यानी,
काहे ज्ञान बढ़ाऊंगा." जय जोहार्………
हा हा हा ………………मज़ा आ गया।
बहुत ही बेहतरीन कविता मजा आ गया।
वाह आपका शिशुगीत व शिशुभावनएं बहुत सुंदर हैं.. ये बस हो ही जाए...आमीन.
बिलकुल सही फ़रमाया आपने.....आजकल की यही डिमांड है...
पंकज जी आपने तो मन कमल ही खिला दिया।
चाचा जी मजेदार बाल-गीत....आज कल ब्लॉगिंग की बढ़ती प्रसिद्धि में बच्चों की भी यही इच्छा है क्योंकि और कही कुछ नाम हो ना हो यहाँ बहुत जल्द नाम कमाने के आसार है...
बढ़िया व्यंग....प्रणाम चाचा जी
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