''सद्भावना दर्पण'

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नई ग़ज़ल/ फिर बुझी शम्मा जलाई यार ने

>> Saturday, November 27, 2010

पिछले दिनों प्रख्यात गायिका आबेदाजी की गाई ग़ज़ल सुन रहा था- ''ला मकां में घर बनाया यार ने''. दिल को छू जाने वाला स्वर है उनका. अंदाज़ सूफियाना है. शेर भी प्यारे है. सुनते-सनते लगा, कि रदीफ़ ''यार ने'' को आधार बना कर कुछ लिखा जा सकता है. मन मचलने लगा. फिर ग़ज़ल कहने की कोशिश में भिड गया. बस वही विनम्र कोशिश आपके सामने पेश है. देखें, बताएं, कुछ सफलता मिली है कि नहीं...

फिर बुझी शम्मा जलाई यार ने
साथ दीवाली मनाई यार ने

प्यार का सच्चा सबक उसने पढ़ा
दूरियाँ आ कर हटाई यार ने

पहले इज़हारे मोहब्बत कर दिया 
बात फिर फ़ौरन बनाई यार ने

कान में मिसरी-सी जैसे घुल गई
जब ग़ज़ल मेरी सुनाई यार ने

कितने सालों बाद वो मुझसे मिला
ख़्वाब में महफ़िल सजाई यार ने

देख कर मुझको तनिक मुस्का दिया 
रस्म जैसे इक निभाई यार ने

हम रहेंगे दिल में तेरे बोल कर
दिल में इक हलचल मचाई यार ने

जाने किसने क्या कहा, क्या सुन लिया
दोस्ती इक दिन मिटाई यार ने

दे के मेरे ख़्वाब को वीरानियाँ
इक नई दुनिया बसाई यार ने

याद में आँसू बहे तो कुछ लिखा
दे दी 'पंकज' रौशनाई यार ने 

13 टिप्पणियाँ:

ASHOK BAJAJ November 27, 2010 at 10:52 AM  

कान में मिसरी-सी जैसे घुल गई
जब ग़ज़ल मेरी सुनाई यार ने.
बेहतरीन प्रस्तुति के लिए धन्यवाद .

ZEAL November 27, 2010 at 4:40 PM  

जाने किसने क्या कहा, क्या सुन लिया
दोस्ती इक दिन मिटाई यार ने

दे के मेरे ख़्वाब को वीरानियाँ
इक नई दुनिया बसाई यार ने..

bahut sundar gazal .

.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') November 27, 2010 at 7:42 PM  

शानदार रचना हैं भैया... प्रणाम.

"आप अपना देखने के वास्ते
हमको आईना बनाया यार ने.."
- जनाब हज़रत शाह निआज़ की यह ग़ज़ल आबिदा जी की आवाज में सुनते ही बनती है...

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" November 27, 2010 at 8:03 PM  

बहुत सुन्दर ग़ज़ल ! "यार ने" क्या खूब रदीफ लिए हैं आप !

Rahul Singh November 28, 2010 at 5:49 AM  

यह तो क्‍या खूब गजल बनाई यार ने.

Anonymous November 28, 2010 at 8:21 AM  

अरे ! इतनी उदास गजल ! आपकी काव्यमयता में पाठक बहे चले जाते हैं ! चाहे सुखात्मक हो या दुखात्मक ! वियोग की सुंदर रसानुभूति ! आभार

Kunwar Kusumesh November 28, 2010 at 7:11 PM  

हम रहेंगे दिल में तेरे बोल कर
दिल में इक हलचल मचाई यार ने

ये शेर तो बढ़िया था मगर अंत में:-

दे के मेरे ख़्वाब को वीरानियाँ
इक नई दुनिया बसाई यार ने

याद में आँसू बहे तो कुछ लिखा
दे दी 'पंकज' रौशनाई यार ने

उफ़ ये जालिम जुदाई.

Satish Saxena November 28, 2010 at 9:32 PM  

मन से लिखते हो गिरीश भाई ! दिल्ली कब आ रहे हो , मिलना चाहूंगा !

arvind November 28, 2010 at 11:42 PM  

याद में आँसू बहे तो कुछ लिखा
दे दी 'पंकज' रौशनाई यार ने
...bahut sundar ghajal...aapki kalam me jaadu hai.

अनुपमा पाठक November 29, 2010 at 2:31 AM  

सुन्दर!

गौरव शर्मा "भारतीय" November 29, 2010 at 5:13 AM  

प्रणाम,
पोस्ट पढ़कर ख़ुशी हुई, टिपण्णी करने की गुस्ताखी मै कर नहीं सकता अतः केवल मेरी शुभकामनायें स्वीकार कर अनुग्रहित करें |
"आपके मार्गदर्शन का अभिलाषी"
गौरव शर्मा "भारतीय"

Dr (Miss) Sharad Singh November 29, 2010 at 10:42 AM  

उम्दा ग़ज़ल। बधाई।

Anonymous December 1, 2010 at 5:16 AM  

पंकज जी की हर गजल , खूबसूरत होती है चाँद से ,
क्योँ न बहेँ आँशू मुकेश ,लिखा है हर लफ्ज किसी की याद मे । ।

सुनिए गिरीश पंकज को

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