नई ग़ज़ल/ खरी-खरी जो कहता होगा
>> Tuesday, November 16, 2010
बहुत दिनों के बाद फिर हाज़िर हूँ: एक नई ग़ज़ल के साथ. वैसे ग़ज़ल तो ग़ज़ल होती है. जो पुरानी पड़ जाये वो ग़ज़ल नहीं हो सकती. ग़ज़ल सदाबहार होनी चाहिए. मेरी कोशिश इसी तरह का कुछ लिखने की होती है. इस प्रयास में सफल नहीं हो पा रहा हूँ. पर प्रयास जारी रखना चाहिए. बहरहाल, देखे, और बताएं, कि कैसी है ग़ज़ल..
खरी-खरी जो कहता होगा
तन्हा-तन्हा रहता होगा
सीधा-सादा इंसां है वो
दुःख को भीतर सहता होगा
अहसानों का बोझ लदा है
इसीलिए वो झुकता होगा
जिसे चाहिए सुविधाएँ वो
सच कहने से डरता होगा
सच निर्वासित हो कर के अब
झूठों के संग रहता होगा
हंसमुख पंकज के भीतर में
दुःख का दरिया बहता होगा
15 टिप्पणियाँ:
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Great couplets !
Very meaningful and touching !
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हंसमुख पंकज के भीतर में
दुःख का दरिया बहता होगा
वाह...बहुत खूब पंकज जी, आपकी ग़ज़लों में जीवन दर्शन भी निहित होता है।
सच निर्वासित हो कर के अब
झूठों के संग रहता होगा
बहुत खुबसूरत बधाई
खरी-खरी जो कहता होगा
तनहा-तनहा रहता होगा
दुखिया दास कबीर है ,जागे अरु रोवे !चेतना सम्पन्न प्राणी विषमता नही देख सकता है !इसीलिए कवि को अकेलापन भुगतना होता है ! यथार्थ कथन !आभार
बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
ढेर सारी शुभकामनायें.
Namskar!! Har bar ki tarah ek sandar gajal, lekin jo aakhiri do laine hai unki khubsurti pure gazal me char chand lagati hai,
HAPPY ID ALL OF YOU!
खरी-खरी जो कहता होगा
तन्हा-तन्हा रहता होगा
सीधा-सादा इंसां है वो
दुःख को भीतर सहता होगा
एक सच्चे इंसान के दर्द को बखूबी उकेरा है…………बधाई।
खरी-खरी जो कहता होगा
तन्हा-तन्हा रहता होगा
सीधा-सादा इंसां है वो
दुःख को भीतर सहता होगा...
एक एक शब्द सत्य !
सीधे सच्चे इंसान कई बार इसी तरह तनहा और भीतर से उदास होते हैं !
सच निर्वासित हो कर के अब
झूठों के संग रहता होगा
बेहतरीन ! सुन्दर ग़ज़ल !
खरी-खरी जो कहता होगा
तन्हा-तन्हा रहता होगा . यथार्थ कहा है आपने। अच्छा लगा ।
जिसे चाहिए सुविधाएँ वो
सच कहने से डरता होगा
बिल्कुल सच...आदमी कितना करीब पाता है आपकी ग़ज़लों के साथ...बीच से गुजरती हुई एक भावपूर्ण ग़ज़ल..बधाई
आपका भोगा हुआ यथार्थ जैसा. is it?
"सच्ची बात कही थी जिसने
लोगों ने सूली पे चढ़ाया..."
बेहतरीन ग़ज़ल के लिए साधुवाद भईया.... प्रणाम.
आदरणीय गिरीश पंकज भाई साहब
नमस्कार !
यद्यपि यह ग़ज़ल 'आज की ग़ज़ल' के तरही में पढ़ चुका हूं … बहुत अच्छी रचना है । हमेशा ही आपकी रचनाएं अच्छी होती हैं …
अंतिम चार शे'र बहुत पसंद आए …
अहसानों का बोझ लदा है
इसीलिए वो झुकता होगा
जिसे चाहिए सुविधाएं वो
सच कहने से डरता होगा
इन दो शे'र का तो कहना ही क्या …
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
हंसमुख पंकज के भीतर में
दुःख का दरिया बहता होगा
सही बात कह दी आपने ..अंदाज -ए- बयाँ काबिलेतारीफ है ...शुक्रिया
चलते -चलते पर आपका स्वागत है ....
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