नई ग़ज़ल/ पास मेरे जंतर-मंतर है.....
>> Thursday, December 2, 2010
हृदयाघात के बाद से बेहद सक्रिय रहने वाले पिता जी बिस्तर पर है.उन पर ध्यान देना ज़रूरी है इसलिये पहले की तरह नियमित रूप से कुछ् पोस्ट करना संभव नहीं है. आज फिर समय निकाला है. एक ग़ज़ल पेश है..
अपनों से ही छलछंदर है
तब कैसे जीवन सुंदर है
गाँठ बाँध कर रखना हरदम
मतलब पाप कोई अन्दर है
जिसकी आँखें नम न होतीं
उसका दिल समझो पत्थर है
जहाँ न कोई आये-जाये
वह तो केवल उजड़ा दर है
पाक-साफ़ दिल जिसका देखो
उस दिल में अल्ला-ईश्वर है
खुदगर्जी ने मारा जिसको
वह नादाँ कितना बदतर है
जो आता अपना बन जाता
पास मेरे जंतर-मंतर है.
हों मजबूत इरादे तो फिर
समझो अवसर ही अवसर है
हम तो ले कर फूल खड़े हैं
उसके हाथों में खंजर है
त्याग-साधना कर के देखो
यह सुख ही सब से बढ़कर है
पढ़कर पुस्तक मूरख सोचे
महाज्ञान अपने अन्दर है
अपने को जो समझे ज्ञानी
वह अज्ञानी है...जोकर है
सच के साथ रहो तुम पंकज
वैसे राह बड़ी दुष्कर है
15 टिप्पणियाँ:
हों मजबूत इरादे तो फिर
समझो अवसर ही अवसर है
हम तो ले कर फूल खड़े हैं
उसके हाथों में खंजर है
वाह, बहुत खूब, पंकज जी,
सभी शे‘र एक से बढ़कर एक है।
पिताजी के शीघ्र स्वास्थ्यलाभ के लिए शुभकामनाएं।
जिसकी आँखें नम न होतीं
उसका दिल समझो पत्थर है
.......बहुत सार्थक और अच्छी सोच ....सुन्दर गज़ल ..
बेहतरीन गज़ल। बधाई।
सर ,आपके पिता जी के स्वास्थ्य के लिए भगवान से प्रार्थना करुँगा कि वो जल्द ठिक हो जाऐँ ,
आज क्या लाजवाब शेर लिखा हैँ आपने ,जिसके तारिफ मे कुछ क्या कहूँ ,कुछ कहूँगा तो वो सुरज को रोशनी दिखाने के समान होगा । ईटिप्स पर एक लेख लिखा है
हों मजबूत इरादे तो फिर
समझो अवसर ही अवसर है
हम तो ले कर फूल खड़े हैं
उसके हाथों में खंजर है
बहुत सुन्दर गज़ल ...हर शेर एक अलग बात कहता हुआ ...
हों मजबूत इरादे तो फिर
समझो अवसर ही अवसर है
Kya bat hai, sundar hai
कई बार पढ़ा साहब, पर ग़ज़ल जैसा बहाव नहीं दिखा, बहुत जगह ठोकर लगी.
बाकी आपकी समझ तो हमेशा सुलझी हुई ही होती है, फलसफे भी व्यवहारिक है.
लिखते रहिये ....
बहुत सुन्दर गज़ल है बधाई।
सच के साथ रहो तुम पंकज
वैसे राह बड़ी दुष्कर है
शानदार गज़ल्……………और ये शेर बहुत ही सुन्दर और सटीक्।
बहुत खूब,
सभी शे‘र एक से बढ़कर एक है।
हम तो ले कर फूल खड़े हैं
उसके हाथों में खंजर है...
मंजर ये आम है ...
अपने को जो समझे ज्ञानी
वह अज्ञानी है...जोकर है
सच के साथ रहो तुम पंकज
वैसे राह बड़ी दुष्कर है...
एक -एक शेर कहता सही बात है !
''सच के साथ रहो तुम पंकज
वैसे राह बड़ी दुष्कर है'' कदम-कदम बढ़ाए जा ...
दिशाबोधी रचना के लिए बधाई
- विजय तिवारी ' किसलय '
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