''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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ग़ज़ल / जीवन बेहतर होने का अभ्यास है......

>> Monday, January 9, 2012

आज कुछ हट कर श्रृंगार...मेरा नाम 'गिरीश' है, मगर इसमें 'पंकज' भी है..कोमलता का तत्व...
दूर बहुत है लेकिन यह अहसास है
वो पहले से ज्यादा मेरे पास है

प्यार अगर बिल्कुल रूहानी हो जाए
हर पल, हर क्षण प्रियतम का आभास है

दिल के भीतर बैठा रहता है अक्सर
मुझको लगता वह मेरा मधुमास है

देह से ऊपर उठ कर जब मैंने देखा
मन का निर्मल-सुंदर ये आकाश है

अंतहीन है इसको कौन बुझा पाया
दिल के भीतर बैठी पगली प्यास है

वो छल है सम्बन्ध नहीं कहलायेगा
जिसमे  केवल कुछ पाने की आस है

उसको चैन कभी कैसे मिल पाएगा
जो केवल इच्छाओं का ही दास है

अपना तो है लक्ष्य भला इनसान बनूँ
जीवन बेहतर होने का अभ्यास है


कौन यहाँ रहता है ज़िंदा सदियों तक
मरना ही तो सबका इक इतिहास है

 
ये दुनिया है मीठी चटनी-सी पंकज
खट्टी भी है लेकिन बड़ी मिठास है

8 टिप्पणियाँ:

Pallavi saxena January 9, 2012 at 9:25 AM  

वाह !!! बहुत ही सुंदर एवं सार्थक गीत पंकज जी समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/

सदा January 10, 2012 at 2:28 AM  

वाह ...बहुत खूब

कल 11/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्‍वागत है, उम्र भर इस सोच में थे हम ... !

धन्यवाद!

Yashwant R. B. Mathur January 10, 2012 at 8:58 PM  

बेहतरीन गजल है सर!


सादर

vidya January 11, 2012 at 3:26 AM  

बहुत सुन्दर,,सचमुच खट्टी मीठी..
सादर.

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) January 11, 2012 at 7:46 AM  

वो छल है सम्बन्ध नहीं कहलायेगा
जिसमे केवल कुछ पाने की आस है

बेहतरीन

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') January 11, 2012 at 8:53 AM  

आनंद आ गया भईया....
शानदार ग़ज़ल...
सादर प्रणाम.

yashoda Agrawal January 13, 2012 at 6:29 AM  

गिरीश भाई की रचनाओं पर टिप्पणी करने में अपने आपको असमर्थ पाती हूं
यशोदा

Rakesh Kumar January 13, 2012 at 4:41 PM  

सदा जी की हलचल से आपके ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा.

बहुत बहुत शुभकामनाएँ.

सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार जी.

सुनिए गिरीश पंकज को

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