''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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कोई मुझसे लिखवाता है / वरना मुझको क्या आता है......

>> Friday, January 6, 2012

कोई मुझसे लिखवाता है
वरना मुझको क्या आता है
सृजन-कर्म की बात निराली
भीतर कोई है...गाता है
आँसू भी रचते है कविता
अनुभव तो यह बतलाता है
कविता ने जोड़ा है सबको
दुनिया से अपना नाता है
रचना की प्यारी दुनिया में
कौन पराया रह पाता है
रचते-रचते मन भी अपना
रचना जैसा बन जाता है
सोई दुनिया जागे सर्जक
शब्दों से जिसका नाता है
कविताओं के सुंदर घर में
केवल सुंदर-मन आता है
सर्जक को तो ईश्वर आ कर
अपने दर्शन करवाता है
ओ कविते तव दर्शन से ही
अंतर्मन यह सुख पाता है
गीत अगर गीता बन जाये
'कृष्ण' तभी मुस्का पाता है
लिखे-पढ़े तो पंकज अनपढ़
धीरे-धीरे तर जाता है

15 टिप्पणियाँ:

shikha varshney January 6, 2012 at 7:23 AM  

वाह अनुपम भाव..बेहद सुन्दर.

Anupama Tripathi January 6, 2012 at 7:30 AM  

bahut sunder bhaav ....

डॉ.मीनाक्षी स्वामी Meenakshi Swami January 6, 2012 at 9:39 AM  

"सर्जक को तो ईश्वर आ कर
अपने दर्शन करवाता है"
अलौकिक भावाभिव्यक्ति।

http://meenakshiswami.blogspot.com/2011/12/blog-post_31.html

shreesh rakesh jain January 6, 2012 at 9:49 AM  

उत्कृष्ट

DR. ANWER JAMAL January 6, 2012 at 7:05 PM  

Nice .

मुहब्बत में घायल वो भी है और मैं भी हूँ,
वस्ल के लिए पागल वो भी है और मैं भी हूँ,
तोड़ तो सकते हैं सारी बंदिशें ज़माने की,
लेकिन घर की इज्जत वो भी है और मैं भी हूँ,

{वस्ल = मिलन} http://mushayera.blogspot.com/2012/01/blog-post_03.html

Prakash Jain January 6, 2012 at 7:59 PM  

wah!!! Bahut sundar...

Yashwant R. B. Mathur January 6, 2012 at 9:03 PM  

बहुत खूब सर!


सादर

कौशल किशोर January 6, 2012 at 9:58 PM  

सुन्दर भाव .............अच्छी पंक्तियाँ ....
मेरा ब्लॉग पढने और जुड़ने के लिए क्लिक करें.
http://dilkikashmakash.blogspot.com/

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') January 7, 2012 at 1:16 AM  

सृजन-कर्म की बात निराली
भीतर कोई है...गाता है

बड़ी ही सुन्दर ग़ज़ल है भईया...
सादर बधाई.

दिलीप January 7, 2012 at 1:50 AM  

waah bahut hi sundar rachna

संगीता स्वरुप ( गीत ) January 7, 2012 at 2:17 AM  

सुन्दर भाव से सजी अच्छी रचना .

Naveen Mani Tripathi January 8, 2012 at 12:26 AM  

गीत अगर गीता बन जाये
'कृष्ण' तभी मुस्का पाता है
लिखे-पढ़े तो पंकज अनपढ़
धीरे-धीरे तर जाता है

bahut hi sundar abhivyakti ...badhai.

avanti singh January 8, 2012 at 2:40 AM  

गीत अगर गीता बन जाये
'कृष्ण' तभी मुस्का पाता है
लिखे-पढ़े तो पंकज अनपढ़
धीरे-धीरे तर जाता है....behtreen panktiyaan.....sundar rachna.....

विभूति" January 8, 2012 at 5:14 AM  

सुन्दर शब्दावली, सुन्दर अभिव्यक्ति.

manvendra singh September 20, 2016 at 10:57 AM  

nice lines

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