Wednesday, September 4, 2013

पेट को गर ना मिले जब एक दाना दोस्तो..

पेट को गर ना मिले जब एक दाना दोस्तो
लूटते हैं लोग तब खाना-खज़ाना दोस्तो

है बड़ी ही त्रासदी इस दौर की यह देखिये
मन भले न हो करो हंसना-हंसाना दोस्तो

पास में धेला नहीं था और ना उपहार कुछ
जा नहीं पाए बनाया इक बहाना दोस्तो

हम भी पा जाते बहुत कुछ है मगर अपनी कमी
आ नहीं पाया कभी गोटी बिठाना दोस्तो

रह रहे हम लूटमारों के शहर में इसलिए
लुट ही जाता है यहाँ पर आशियाना दोस्तो

फेसबुक में मित्र बन कर वार जब करने लगा
पड़ गया न चाह कर उसको हटाना दोस्तो

एक दिन हम साथ उनके मुस्करा कर क्या मिले
मिल गया मुद्दा, गढ़ा सबने फसाना दोस्तो

चल रहे हैं हम पुरानी चाल से 'पंकज' यहाँ
और दौड़े जा रहा है ये ज़माना दोस्तो

6 comments:

  1. रह रहे हम लूटमारों के शहर में इसलिए
    लुट ही जाता है यहाँ पर आशियाना दोस्तो------

    वर्तमान का सच
    उत्कृष्ट प्रस्तुति


    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी पधारें
    कब तलक बैठें---

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  2. कल 22/09/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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  3. सुंदर ग़ज़ल

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