''सद्भावना दर्पण'

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गीत / फ़ौजी का बयान

>> Wednesday, January 6, 2016



मैं सीमा का इक फ़ौजी हूँ, आज हृदय को खोल रहा हूँ
मातृभूमि ही माता मेरी, सच्चे मन से बोल रहा हूँ.

धर्म है मेरा देश की रक्षा, चाहे जान चली जाए.
लेकिन मेरी माँ दुश्मन के हाथों नहीं छली जाए.
मेरे देश के लोग चैन से सोएं, बस ये चाहत है ।
हरदम मेरी माँ मुस्काए,जिससे मुझे महब्बत है.
दुशमन के सर पर ही उसकी, मौत बना मैं डोल रहा हूँ।
मैं सीमा का इक फ़ौजी हूँ, आज हृदय को खोल रहा हूँ.।

हंस कर मेरी माँ ने मुझको , वर्दी यह पहनाई थी।
और पिता के चेहरे पर भी खुशियों की शहनाई थी ।
देश की खातिर जीना-मरना,यह करके दिखलाऊंगा ।
अगर शहादत पायी तो फिर नाम अमर कर जाऊँगा।
माँ के दूध से हिम्मत पाई हर पल खुद को तौल रहा हूँ।
मैं सीमा का इक फ़ौजी हूँ, आज हृदय को खोल रहा हूँ.

पीठ कभी ना दिखलाऊंगा, माँ ने यही सिखाया है।
फौलादी सीने वाला हूँ, बहना ने बतलाया है।
देश हमारा धर्म है सुन्दर, इसको बारम्बार नमन।
मेरे लहू से सदा रहेगा, रौशन-हरियर मेरा चमन।
मेरी कीमत क्या जानोगे, हर पल मैं अनमोल रहा हूँ।
मैं सीमा का इक फ़ौजी हूँ, आज हृदय को खोल रहा हूँ।

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