''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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मछली तूने जान गँवाई

>> Monday, May 23, 2016

पानी से जब बाहर आई
इक मछली कित्ता पछताई

पानी से जब दूर हुई तो
मछली तूने जान गँवाई

मछली बच गई मगरमच्छ से
इंसानों से ना बच पाई

है शिकार पर बैठी दुनिया
मछली बात समझ न पाई

स्वाद की मारी इस दुनिया में
मछली ज़्यादा जी ना पाई

सावधान रहना तू मछली
जाल बिछा बैठे हरजाई

नदी तेरा घर है ओ मछली
भले जमी हो उसमे काई

मगरमच्छ वो बन गई इक दिन
देख स्वप्न मछली मुस्काई

1 टिप्पणियाँ:

शिवम् मिश्रा May 23, 2016 at 10:20 AM  

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " भारत का पहला स्वदेशी स्पेस शटल RLV-TD सफलतापूर्वक लॉन्च " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

सुनिए गिरीश पंकज को

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