''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
&COPY गिरीश पंकज संपादक सदभावना दर्पण. Powered by Blogger.

व्यंग्य

>> Thursday, November 12, 2020


बुरे फँसे लाइव आकर !


वो बंदा फेसबुक पर एक बार फिर लाइव आ गया था। इस बार भी वह कमरे का दरवाजा बंद करना भूल गया था। नटवरलाल छेदी का किस्सा बता रहा हूं । वे कल भक्तिभाव से रामकथा के बारे में जानकारी दिए जा रहे थे कि "भगवान राम जब चौदह वर्ष के लिए वनवास को प्रस्थान करने लगे, तो उन्होंने सीता से कहा, तुम मेरे साथ वन में क्यों भटकोगी। राजमहल में रहो। इतना सुनना था कि सीता बोली"...। बस सीता क्या बोली, उसी समय नटवरलाल की पत्नी ने दरवाजा खोला और बोल पड़ी," एजी ओजी, सुनते हो, बाहर रद्दीवाला खड़ा है। उसे मैं क्या बोलूं। बहुत रद्दी जमा हो गई है । उसे आज निकाल ही देते हैं। तुम कब खाली होगे? तब तक उसे बैठा कर रखती हूं। चाय-पानी करता रहेगा।" इतना सुनना था कि नटवरलाल छेदी गुस्से में आ गए, लेकिन अपना गुस्सा कैसे जाहिर करते ? लाइव में थे। न जाने कित्ते लोग उन्हें देख रहे थे। इसलिए उन्होंने मुस्कुराते हुए इशारे से कहा,'अभी रुक जाओ।'

पत्नी कुछ समझदार थी। फौरन बाहर निकल गई। इस बीच नटवरलाल रामकथा को कुछ आगे बढ़ा चुके थे। अब निषाद राज का प्रसंग चल रहा था । "रामजी ने कहा, हे निषाद राज, हमें उस पार जाना है । अपनी नाव में बिठा कर पार उतार दो।निषादराज ने हाथ जोड़कर कहा हे भगवान..!" 

बस, नटवरलाल जी इतना ही बोल पाए थे कि एक बार फिर दरवाजा खोलकर श्रीमती सामने खड़ी हो गई, "अरे, कितना इंतजार करेगा रद्दीवाला? अब तक चार गिलास पानी और दो बार चाय पी चुका है। कब तक तुम कंप्यूटर के सामने बैठे पागल की तरह बड़-बड़ करते रहोगे?"

अब तो नटवरलाल छेदी का दिमाग बुरी तरह से आउट हो गया था लेकिन वही वैश्विक इमेज आड़े आ गई। उन्होंने अपने हाथों से  एक बार फिर पत्नी को जाने का इशारा किया। 

पत्नी बड़बड़ाते हुए चली गई कि "आजकल जिसे देखो, वही कंप्यूटर या मोबाइल से चिपका रहता है। ये भी  वही करने लगे हैं । मुझे छोड़ कर अब मोबाइल से चिपके रहते हैं।" गनीमत है, पत्नी की  आवाज लाइव नहीं हुई।  हालांकि नटवरलाल की पत्नी का इस तरह से आवागमन अब लोगों का मनोरंजन ही कर रहा था।  कुछ  तो यही सोच कर के बैठे थे कि अब शायद तीसरी बार भी नटवर की पत्नी आए,तो मजा आएग। लेकिन तीसरी बार पत्नी नहीं, साली चली आई ।  नटवरलाल लालजी बोल रहे थे, तभी उनकी साली टपक पड़ी। बोली, "जीजू, चलो न , कैरम खेलते हैं।" नटवर ने साली को भी इशारे से जाने को कहा, पर वह तो साली थी। अतिरिक्त अधिकार धारिणी। हाथ पकड़ कर बोली, "चलो न !" 

नटवरलाल फुसफुसाए, '' लाइव हूँ लाइव। सब देख रहे हैं।"

साली भी फुफुसाई, तो क्या हुआ। इधर तुम लाइव हो, उधर तुम्हारी वाइफ भन्नाई हुई है।"

बड़ी मुश्किल से  नटवरलाल ने साली को भी इशारा करके चलता किया।  तब तक उनको लाइव देखने वालो ने खूब मजा लूटा।

एक दर्शक ने टिप्पणी की, ''चलने दो बहस। रोको, मत जाने दो।"

दूसरे ने लिखा, ''साली हो तो ऐसी जो लाइव आकर जीजा से लड़िहाए।''

 साली चली तो गई, पर नटवरलाल जी की राम कथा चौपट हो गई। मूड भी। अब रामायण सुनाते-सुनाते अचानक वे महाभारत की कथा सुनाने लगे, "तो धृतराष्ट्र बोले हे संजय, मुझे कुरुक्षेत्र का आंखों देखा हाल सुनाओ ।" 

रामायण के बाद यकायक महाभारत सुनाने पर  दर्शक चकरा गए। एक ने कहा, " अरे,आप तो रामायण सुना रहे थे, अब महाभारत पर आ गए? कमाल है!" 

दर्शक की टिप्पणी देखकर नटवरलाल को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, "क्या करोगे, आज दरवाजा बंद करना भूल गया।  घर के सदस्यों की आवाजाही के कारण अब मेरा दिमाग महाभारत करने के मूड में आ गया है इसलिए महाभारत की कथा सूझ गई । मुझे माफ करना मित्रो। आज की मुलाकात बस इतनी।  कल जब  लाइव रहूँगा, तो उसके दरवाजा बंद कर दूँगा ताकि कोई डिस्टर्व न करे।"

 एक दर्शक ने टिप्पणी की, " ठीक है मगर श्रीमती जी  को समझा दीजिएगा, कहीं ऐसा न हो कि आप रामकथा कह रहे हो और पीछे से वो दरवाजा ठोक ठोक कर आपको बता रही हो कि देखिए रद्दीवाला आ गया है। हाँ, साली को छूट है।"

 नटवरलाल जी ने  मुस्कराते हुए कहा, "आपकी बातों का मैं ध्यान रखूंगा और पत्नी और साली को समझाकर कर ही लाइव आऊँगा। जय हिंद।"



0 टिप्पणियाँ:

सुनिए गिरीश पंकज को

  © Free Blogger Templates Skyblue by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP