स्वर की 'लता' आज मुरझाई,
सूख गया उद्यान ।
दुःखी जगत है,मौन हो गया,
कोकिल का वह गान।
जिसकी स्वर-लहरी के कारण,
हृदय प्रफुल्लित होता।
जिसका स्वर्णिम गायन सुनकर,
मन भावों में खोता ।
लीन हो गई ब्रह्म में सहसा,
उस देवी की तान।।
कंठ में जिसके रही शारदा,
वाणी में अनुराग ।
सम्मोहित होती थी जगती,
सुनकर मधुरम राग।
उसके गुंजित स्वर करते थे,
जन-मन का कल्यान।।
कितनी भाषा, कितनी बोली,
सबको नेह लुटाया ।
जो भी मिला प्यार से उसकी
खातिर मन से गाया।
स्वर की देवी अमर रहेगी,
जब तक सकल जहान ।।
@ गिरीश पंकज
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 08 फरवरी 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आभारम
Deleteसुरों की देवी को शत शत नमन
ReplyDeleteआभारम
Deleteहृदय स्पर्शी!
ReplyDeleteसादर श्रद्धांजलि स्वर सम्राज्ञी को🙏🏼
आभारम
Deleteलताजी की स्मृति में बेहतरीन गीत ।
ReplyDeleteधन्यवादम
Deleteबेहद हृदयस्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteआभारम
Deleteलता जी को भरपूर श्रद्धांजलि गीत। सुर सम्राज्ञी को सादर नमन 🙏🙏💐💐
ReplyDeleteआभारम
Deleteसुर की देवी लता जी को समर्पित बहुत ही लाजवाब एवं हृदयस्पर्शी सृजन।
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