मछली भूखी फँसी जाल में...
पानी उसका रहा ठिकाना।
मगर चाहती थी वह दाना ।
तभी जाल के संग मछेरा,
ले आया थोड़ा-सा खाना ।
दौड़ पड़ी पाने को फिर वह,
बिन सोचे बस हर हाल में ।
मछली भूखी फँसी जाल में।।
दाने के लालच में कट गई।
बाकी की फिर छाती फट गई ।
समझदार थी नन्हीं मछली,
वह जाल से फौरन हट गई ।
नीचे तिरती रही ताल में ।
भूखी मछली फँसी जाल में।।
मछली हम को सबक सिखाए।
लालच में ना कोई आए।
बुरी बला है यह तो सचमुच,
जो फँसता है वह पछताए ।
समझदार क्यों फँसे कहीं भी,
रहता है वह इसी ख्याल में।
भूखी मछली फँसी जाल में।।
गिरीश पंकज
बहुत सुंदर और संदेशात्मक बाल रचना ।।
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