>> Tuesday, September 15, 2009
अब आओ ऊपर वाले तुम, गायों को अगर बचाना है...
मै अधार्मिक किस्म का व्यक्ति हूँ। लेकिन गाय के प्रति करोडो लोगो की तरह मेरे मन में अटूट आदर-भावः है। मैने गाय-चालीसा भी लिखी है और उसकी आरती भी। गाय पर कुछ गीत पहले ही लिख चुका हूँ। मै तो यही सोचता हूँ कि गाय केवल हिन्दुओ की नही है । मै उस नज़रिए से गाय को देखता भी नही। मै गाय को एक विश्व-नागरिक के नज़रिए से ही देखता हूँ। उसे विश्व-माता मनाता हूँ। मैंने अपना पांचवांah उपन्यास देवनार के जंगल लिखना शुरू कर दिया है। यह व्यंग्य उपन्यास नही होगा. लेकिन व्यंग्यकार हूँ तो व्यंग्य आएगा ही. खैर.. कल एक यादव मित्र का फोन आया . मैंने उनके सामने एक सुझाव रखा कि गाय के संरक्षण के लिए सर्वधर्म समिति बने. इसमे मुस्लमान रहे, ईसाई भी रहे. सिख भी रहे. गाय सबकी है. वह न तो हिन्दुओ की है, न यादव समाज की. सबकी है. मित्र को मेरा सुझाव पसंद आ गया. उन्होंने कहा कि आप इस समिति के संयोजक बन जाइये। अब यह जिम्मेदारी उठाने पड़ेगी. अपने आसपास के गैर हिन्दू मित्रो को जोड़ कर कुछ करूंगा । लेखक केवल कलम ही न चलाये वक़्त आने पर कुछ करे भी। जितना कर सकता है, करे। मै गाय के मामले में शायद थोड़ा समय निकल सकता हूँ। इसलिए जिम्मेदारी ले ली. इस चर्चा के बाद मन में फ़िर एक गीत उमडा । अब तो ब्लॉग की सुविधा हो गयी है तो सोचा कि अपनी भावनाए कुछ लोगो तक तो पहुँचा ही दूँ। प्रस्तुत है मेरा एक गीत गाय की दशा पर...
अब आओ ऊपर वाले तुम, गायों को अगर बचाना है...
अब आओं ऊपर वाले तुम, गायों को अगर बचाना है,
इंसान के बस की बात नही, वह स्वारथ में दीवाना है।।
जिस माँ का दूध पिया सबने, उस माँ पर नित्य प्रहार किया।
बदले में दूध-दही देकर, माता ने बस उपकार किया।
जो है कपूत उन लोगो को, गायों का पाठ पढ़ना है।। .....
कहने को हिंदू-जैनी है, लेकिन गो-वध भी करते है।
स्वारथ में अंधे हो कर के, पैसो की खातिर मरते है।
जो भटके है उन पथिको को, अब तो रस्ते पर लाना है।
ये गाय नही है धरती पर,सबसे पावन इक प्राणी है,
यह अर्थतंत्र है जीवन का, भारत की मुखरित वाणी है।
भारत ही भूल गया सब कुछ, इसको नवपथ दिखलाना है।। ....
गायो को भोजन मिल जाए, बछडो को उनका दूध मिले,
तब मानव औ गौ-माता के रिश्तो का सुंदर फूल खिले।
बछडे को भी हक़ जीने का, गोपालक को समझाना है।। .....
हो धर्म कोई, भाषा कोई, सबने गायो को मान दिया,
इसलाम मोहब्बत करता है, बाइबिल ने भी सम्मान दिया।
क्या महावीर, क्या बुद्ध सभी ने, गौ को माता माना है ।। ...
कुछ स्वाद और पैसो के हित, मानव पापी बन जाता है,
पशुओ का भक्षण करता है, फ़िर अपनी शान दिखता है।
मानव के भीतर दानव का, बढ़ता अस्तित्व मिटाना है।।...
अब उठो-उठो चुप ना बैठो, अपने घर से बाहर आओ,
माता को अगर बचाना है तो उसकी खातिर मिट जाओ।
गौ हित में जान गयी तो फ़िर बैकुंठ्लोक ही जाना है।। ...
हिन्दू आओ, मुसलिम आओ, सिख, ईसाई सारे आओ,
सबने गौ माँ का दूध पिया, अपनी माँ पर बलि-बलि जाओ ।
गोवध पर कड़ी सजा होगी, ऐसा कानून बनाना है।
उन सबको जेल मिले जिनकी गौए पालीथिन खाती है,
सड़को पर भूखी फिरती है, कांजीहाउस तक जाती है॥
हो गाय क्यो दण्डित, उसके मालिक को सबक सिखाना है..
अब आओं ऊपर वाले तुम, गायों को अगर बचाना है,
इंसान के बस की बात नही, वह स्वारथ में दीवाना है।।
3 टिप्पणियाँ:
बहुत बढ़िया रचना.
गिरीश भाई इसमे यह भी जोड लें .. गायों को प्लास्टिक/पोलिथिन् खा कर मरने से बचाना है , सडक पर बैठी गायों को दुर्घटना से बचाना है , कंजीहाउस से बचाना है वगैरह .. गौमाता की जय हो .. -शरद कोकास ,दुर्ग छ.ग.
धन्यवाद गिरीश भाई यह पॉलिथिन और कान्जी हाउस को आप ने बेहतर अर्थ दिया है ।
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