''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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>> Saturday, September 26, 2009


दो नई गज़लें
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दोस्तो उस आदमी की शान जिंदा है
मुफलिसी में भी अगर ईमान जिंदा है

जो नही बिकते कभी दरबार में जा कर
उन फकीरों की यहाँ पहचान जिंदा है

कौन उसको रोक पायेगा भला सोचो
कर गुजरने का अगर अरमान जिंदा है

दर्द हमको देर तक रोने नही देते
आंसुओं में भी कहीं मुस्कान जिंदा है

खूब पूजा-पाठ करते है इबादत भी
क्यूं मगर दिल में कोई शैतान जिंदा है

मर नही सकती कभी इंसानियत पंकज
गर कहीं पर एक भी इन्सान जिंदा है

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भला कैसे थमूंगा मै, अभी तो दूर जाना है
पड़ावों से गुजर कर आख़िरी वो आशियाना है

नही आसान ये मंजिल सफर में मुश्किलें भी हैं
मगर जो काट ले हंसकर उसी का ये ज़माना है

न कोई है बड़ा-छोटा सभी तो एक हैं यारो
उठाओ मत कोई दीवार आँगन ये सुहाना है

भटकते हैं यहाँ दिन-रात दौलत के लिए पागल
हमारे पास है संतोष पंकज का खजाना है

गिरीश पंकज

6 टिप्पणियाँ:

Yogesh Verma Swapn September 26, 2009 at 9:04 AM  

girish ji , aapki gazlen kaabile tareef hain, lajawaab. badhaai.

सुशील कुमार जोशी September 26, 2009 at 9:25 AM  

बहुत खूब !

36solutions September 26, 2009 at 9:28 AM  

बहुत सुन्‍दर गजलें हैं भईया. आपके दिलकश गजलों के खजाने में से इन दो गजलों को पढकर आपकी ही पंक्तियां याद आ रही हैं -

अपने आंगन में बसंत को कैद कर लिया है,
लेकिन हमको थमा दिए कुछ पत्‍ते झरे हुए.

एक ब्‍लाग अपनी गजलों का ही बनायें. नहीं तो इस ब्‍लाग में ही गजलों का खजाना बरसायें.

Udan Tashtari September 26, 2009 at 10:45 AM  

दोनों ही उम्दा गज़लें हैं. बहुत खूब!!

M VERMA September 26, 2009 at 7:14 PM  

बहुत खूबसूरत गज़ले

slumdog October 27, 2009 at 6:32 AM  

gajal padh kar aapkee kuchh puraanee kawitaa yaad aa gai. like ek baat kahnaa chahtaa hun main namee ke beech ki aadmee ban kar rahen ham aadmee ke beech.....
Ramesh Sharma, rsahara, raypur

सुनिए गिरीश पंकज को

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