गीत...
>> Sunday, October 11, 2009
सुख आया जब मेरे द्वार...
सुख आया जब मेरे द्वार,
मुझे दे गया जीवन-सार।।
सुख बोला- बाहर जो प्यासा,
उसकी प्यास बुझा दे।
भूखा है जो युगों-युगों से,
उसको अन्न खिला दे।
मै तेरा हो जाऊँगा बस,
किया अगर तुमने उपकार॥
सुख बोला-निर्मल-मन रखना,
पीर-पराई पी ले।
अपने लिए पशु जीते तू,
सबकी खातिर जी ले।
बाँट सके तो बाँट जरा तू,
प्यार भरा अपना संसार।।...
सुख कहता- संतोष मेरा धन,
कभी न दौलत चाहूं।
जो धन की परछाईं पकडे,
उसको सदा नचाऊँ ।
पर्मारथपुर गाँव है मेरा,
मानवता मेरा परिवार।। ...
जो हैं वंचित उन सबको तू,
उनका हक़ दिलवाना।
जहाँ अँधेरा दीखे फ़ौरन,
दीपक बन जल जाना।
बन कर तेरा दास रहूँगा,
बढे तेरा सुंदर घर-बार।।
सुख आया जब मेरे द्वार,
मुझे दे गया जीवन-सार।। ....
6 टिप्पणियाँ:
गिरीशजी,
आपके गीत ने बहुत प्रभावित किया.........
बहुत ही कोमल, बहुत ही मृदुल और बहुत ही सार्थक इस गीत के लिए आपको लाख लाख बधाइयां.......
जो हैं वंचित उन सबको तू,
उनका हक़ दिलवाना।
जहाँ अँधेरा दीखे फ़ौरन,
दीपक बन जल जाना।
बहुत बढि्या गिरीश भैया बधाई
जो हैं वंचित उन सबको तू,
उनका हक़ दिलवाना।
जहाँ अँधेरा दीखे फ़ौरन,
दीपक बन जल जाना।
बहुत उत्तम भाव, बेहतरीन
behatareen rachna. badhaai.
जो हैं वंचित उन सबको तू,
उनका हक़ दिलवाना।
जहाँ अँधेरा दीखे फ़ौरन,
दीपक बन जल जाना।
बन कर तेरा दास रहूँगा,
बढे तेरा सुंदर घर-बार।।
सुख आया जब मेरे द्वार,
मुझे दे गया जीवन-सार।। ....
bahu
त सुन्दर प्रेरणा देती कविता के लिये धन्यवाद
काश सुख द्वारा दिए इस जीवन सार को हम अपने जीवन में उतार लें...उत्तम रचना...बधाई...
नीरज
Post a Comment