''सद्भावना दर्पण'

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हास्यरस / दो कुण्डलियाँ

>> Saturday, February 27, 2010


मुझे बेहद ख़ुशी है कि मेरी रचनाओं को सुधी चिट्ठाकार एवं अच्छे पाठक गंभीरता के साथ पढ़ रहे है. हास्य का जीवन में महत्त्व तो है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम अपने समय के गंभीर प्रश्नों को भूल जाएँ. मै हंसी का पक्षधर हूँ, लेकिन व्यंग्य मेरे जीवन के केंद्र में है.अगर हम व्यंग्य नहीं कसेंगे, विसंगतियों पर प्रहार नहीं करेंगे, तो हालत तो सुधारने से रहे. कोई तो सच-सच कहे. सामाजिक परिमार्जन के लिए 'मसखरे' नहीं 'खरे' लोगों की ज़रुरत है. इसलिए मै होली पर ठिठोली तो करता हूँ, मगर ठिठोली के साथ-साथ चाहता हूँ, कि कुछ ठोस परिवर्तन भी हो, इसलिए व्यंग्य का दामन थामे रहता हूँ. बड़ी प्रसन्नता की बात है, कि कुछ अच्छे ब्लॉगर इस मर्म को समझ रहे है. वे गंभीर बातों को भी पसंद करते है. ऐसे ही पाठकों के लिये प्रस्तुत है रचना...

पहले दो कुण्डलियाँ ताकि लोग हंसी को याद रखें....

(१)
मुस्काना हम भूल गए, बिसर गए सद्भाव.
 
जितना जिसको दे सकें, देते हैं बस घाव.
देते हैं बस घाव, गाँव भी शहर हो गए.
ये विकास के बीज देख लो जहर हो गए.
कह पंकज कविराय, बड़ा बेदर्द ज़माना,
रोना सस्ता हुआ और महंगा मुस्काना.
(२)
हंसना है ऐसी दवा, जो मिलती बे-मोल,
इसका नित सेवन करो, सुधर जाये भूगोल.
सुधर जाये भूगोल. मगर इतना तो करना,
तुम दूजो के पूर्व ज़रा खुद पर भी हंसना.
कह पंकज कविराय, दिलों में सीखो बसना.
सच्चे मन से यार, इस दुनिया में हंसना...

और अब व्यंग्य-ग़ज़ल ताकि लोग समय से रूबरू रहे
(१)
कौन कहता है हमें घर पर कोई नल चाहिए
हमको तो सौ या के दो सौ टीवी चैनल चाहिए

हर समस्या का अगरचे आपको हल चाहिए
अपने लोगों से हमेशा दोस्तो छल चाहिए

हर घड़ी वे आदमी का खून ही पीते नहीं
दिल बहल जाता है बस दारू की बोतल चाहिए

पाप करने से कभी डरते नहीं, जांबाज़ हैं
बस नहाने के लिए तो गंग का जल चाहिए

मर गया है भूख से वो आदमी तो क्या हुआ
उसकी तेरही में हमें हलवा-पुडी कल चाहिए

मिट गए जो देश की खातिर बड़े पागल रहे
देश को पंकज दुबारा चंद पागल चाहिए

(२)

कौन अच्छा या बुरा है सोच कर घबरा रहे 
अब लुटेरे पहन कर खादी यहाँ पर आ रहे 

चीख लो, चिल्लाओ तुम भी हो भले ही बे-सुरा
लोग गाने की जगह तो आजकल चिल्ला रहे

दौर ऐसा है कि सारा माल नकली खप रहा 
जाल है विज्ञापनों का हम भी फंसते जा रहे

थे सफेदी में नहाए जिनके कपडे दोस्तो
उनकी कालिख देख कर अब दाग भी शरमा रहे

जाग जा, सोये हुए मेरे मसीहा जग जा
देश को चूहे यहाँ पर मस्त होकर खा रहे

काट कर के उम्र पूरी तब शराफत ने कहा
अपनी नादानी पे पंकज अब बहुत पछता रहे 

16 टिप्पणियाँ:

राजीव तनेजा February 27, 2010 at 1:25 PM  

दूर तक की मारक क्षमता वाले शेर...

M VERMA February 27, 2010 at 2:31 PM  

धारदार रचनाएँ
सशक्त

रानीविशाल February 27, 2010 at 4:58 PM  

Bahut satik aur samyik prastuti...Aabhar!!
Holi ki shubhakaamnaae!!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/

Yogesh Verma Swapn February 27, 2010 at 6:33 PM  

wah wah , kundaliyon ke sath vyangyapurn gazlen behatareen. lajawaab.

कडुवासच February 27, 2010 at 6:38 PM  

मर गया है भूख से वो आदमी तो क्या हुआ
उसकी तेरही में हमें हलवा-पुडी कल चाहिए
.....बहुत खूब !!
जाग जा, सोये हुए मेरे मसीहा जग जा
देश को चूहे यहाँ पर मस्त होकर खा रहे
........अदभुत रचना, बहुत बहुत बधाई !!

Smart Indian February 27, 2010 at 8:41 PM  

सभी एक से बढ़कर एक!
होली की हार्दिक शुभकामनाएं!

निर्मला कपिला February 27, 2010 at 9:14 PM  

सभी रचनायें बहुत अच्छी लगी। आपको होली की हार्दिक शुभकामनायें

नीरज गोस्वामी February 27, 2010 at 10:48 PM  

तुम दूजो के पूर्व ज़रा खुद पर भी हंसना

होली के पावन अवसर दिया ये मूल मन्त्र सबको हमेहा याद रखना चाहिए...आपकी कुण्डलियाँ और ग़ज़लें बेजोड़ हैं ...वाह...वाह...आपके ब्लॉग पर आ कर अपनी तो होली मन गयी...होली की शुभकामाएं .
नीरज

vandana gupta February 28, 2010 at 4:03 AM  

bahut hi sashakt aur bejod vyangya........holi ki hardik shubhkamnayein.

संजय भास्‍कर February 28, 2010 at 9:37 AM  

होली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ।

संजय भास्‍कर February 28, 2010 at 9:39 AM  

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

अजय कुमार झा February 28, 2010 at 9:41 AM  

पंकज जी क्या कहने हैं शेरों के .....बहुत उम्दा हमेशा की तरह
होली की बहुत बहुत बधाई और शुभकामना

अजय कुमार झा

36solutions February 28, 2010 at 10:01 AM  

बडे भाई को होली की हार्दिक शुभकामनाये.

शरद कोकास February 28, 2010 at 1:10 PM  

पंकज कविराय को होली की शुभकामनायें

राजकुमार ग्वालानी February 28, 2010 at 8:01 PM  

होली में डाले प्यार के ऐसे रंग
देख के सारी दुनिया हो जाए दंग
रहे हम सभी भाई-चारे के संग
करें न कभी किसी बात पर जंग
आओ मिलकर खाएं प्यार की भंग
और खेले सबसे साथ प्यार के रंग

संजय भास्‍कर March 1, 2010 at 6:09 AM  

बहुत उम्दा हमेशा की तरह

सुनिए गिरीश पंकज को

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