महावीर वचनामृत -12
>> Sunday, March 14, 2010
बहुत दिनों के बाद फिर हाज़िर हूँ. महावीर वचनामृत के साथ. कही लोग बोर तो नहीं हो रहे...? लेकिन ऐसा लगता नहीं. सुधी लेखक-पाठक टिप्पणियाँ कर रहे है.बहुत जल्द कुछ् और नयी रचनाएँ पेश करूंगा.
(109)
धर्म-प्राण जन से रखें, जीवन में अनुराग।
प्रियभाषी सम्यक वही, भव्य परम है भाग।।
(110)
निर्मल मन प्रवचन करे, तपी, कवि जो होय।
वे ही सच्चे धारमिक, सबका अंतस धोय।।
(111)
चरित्र-शून्य जो हो गया, शास्त्र-ज्ञान बेकार।
लाखों दीप न दे सकें, अंधे को उजियार।।
(112)
अल्पज्ञान भी है बहुत, हो चरित्र गर पास।
चरित्रहीन ज्ञानी बहुत, लेकिन वह बकवास।।
(113)
राग-द्वेष व्यापे नहीं, सुख-दु:ख में समभाव।
ऐसे भिक्षु से सदा, रक्खे गाँव लगाव।।
(114)
जो मानव हित सोचते, करते अल्पाहार।
उन्हें वैद्य की फिर कभी, पड़ती ना दरकार।।
(115)
ज्यादा रस सेवन करो, तो बढ़ता उन्माद।
मीठे फल हो पेड़ पर, करे पक्षी बर्बाद।।
(116)
धर्म-प्राण जन से रखें, जीवन में अनुराग।
प्रियभाषी सम्यक वही, भव्य परम है भाग।।
(110)
निर्मल मन प्रवचन करे, तपी, कवि जो होय।
वे ही सच्चे धारमिक, सबका अंतस धोय।।
(111)
चरित्र-शून्य जो हो गया, शास्त्र-ज्ञान बेकार।
लाखों दीप न दे सकें, अंधे को उजियार।।
(112)
अल्पज्ञान भी है बहुत, हो चरित्र गर पास।
चरित्रहीन ज्ञानी बहुत, लेकिन वह बकवास।।
(113)
राग-द्वेष व्यापे नहीं, सुख-दु:ख में समभाव।
ऐसे भिक्षु से सदा, रक्खे गाँव लगाव।।
(114)
जो मानव हित सोचते, करते अल्पाहार।
उन्हें वैद्य की फिर कभी, पड़ती ना दरकार।।
(115)
ज्यादा रस सेवन करो, तो बढ़ता उन्माद।
मीठे फल हो पेड़ पर, करे पक्षी बर्बाद।।
(116)
कटूवचन, चोरी-जुआ, नशा-नारि का संग।
व्यसन रहे ये तो सभी, नित करते बदरंग।।
(117)
माँस खाय, मदिरा पिये, फिर द्यूत का साथ।
एक बुराई से मनुज, सब दोषों का नाथ।।
(118)
माँस खाये जो विप्र तो, पतित हुआ घनघोर।
मद्यपान भी जो करे, लाय दु:खों का दौर।।
व्यसन रहे ये तो सभी, नित करते बदरंग।।
(117)
माँस खाय, मदिरा पिये, फिर द्यूत का साथ।
एक बुराई से मनुज, सब दोषों का नाथ।।
(118)
माँस खाये जो विप्र तो, पतित हुआ घनघोर।
मद्यपान भी जो करे, लाय दु:खों का दौर।।
7 टिप्पणियाँ:
welcome back girish pankaj ji
bahut hu sunder parastuti ke sath
गिरीश भैया,
महावीर वचनामृतरस का पान किया
आपने तो गागर मे सागर भर दिया
दिल्ली से कब पधारे?
ek ek doha anmol, girish ji kabhi kabhi shabd kam pad jate hain...........
aapke shabd aur mahaweer k vichaar !! bhala ismein boriyat jaisi koft kyon hogi..aap zihan se aise sawaal nikaal hi den.aapki har post ka besabri se intizaar rahta hai.
....डुबकी लगा लिये, मन प्रसन्न हो गया !!!!
यही सचमुच अमृत है ।
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