ग़ज़ल/ पत्थर में भगवान् मिल गया...
>> Wednesday, July 7, 2010
आज सुबह ही कही है यह ग़ज़ल. मेरे दिलमें बसने वाले अपने अज़ीज़ साथियों को कर रहा हूँ समर्पित...
जीने का सामान मिल गया
पत्थर में भगवान् मिल गया
लोग बड़ी हैरत में थे के
कहीं एक इन्सान मिल गया
तुम आये वरना मर जाता
मुझको जीवनदान मिल गया
बूढ़ी आँखें क्या चाहेंगी
बस थोड़ा सम्मान मिल गया
नरक हुआ उस घर का जीवन
स्वारथ का शैतान मिल गया
भूख-ग़रीबी भ्रष्ट-तंत्र यह
कैसा हिन्दुस्तान मिल गया
धन्य-धन्य हैं अम्मा-बापू
बेटा एक महान मिल गया
और भला क्यूं चाहूं दौलत
पंकज बस ईमान मिल गया
14 टिप्पणियाँ:
लोग बड़ी हैरत में थे के
कहीं एक इन्सान मिल गया
कहां मिल गया इंसान?
डिस्कवरी चैनल वालों को खबर करना पड़ेगा।
ये तो गजब हो गया भैया।
आज के दौर में इंसान का मिलना सच में हैरत की बात है !!
वैसे बहुत बढ़िया रचना है !
बहुत बढ़िया लिखते हो गिरीश भाई ! हर लाइन लगता है दिल से लिखी गयी है ! शुभकामनायें आपको !
बहुत उम्दा गज़ल!
लोग बड़ी हैरत में थे के
कहीं एक इन्सान मिल गया
बूढ़ी आँखें क्या चाहेंगी
बस थोड़ा सम्मान मिल गया
भूख-ग़रीबी भ्रष्ट-तंत्र यह
कैसा हिन्दुस्तान मिल गया
वाह बहुत खूब ये शेर बहुत अच्छे लगे। धन्यवाद।
भावपूर्ण लेखन।
लोग बड़ी हैरत में थे की कहीं एक इंसान मिल गया ...
सच ही है ...पत्थर में भगवान् फिर भी मिल जाते हैं इंसान ही कम रह गये हैं ...
हमारा भी अरमान यही ...चाहे दौलत कम मगर ईमान मिल जाए ..
वर्तमान परिस्थितियों पर चोट करती सच्चाई पर चलने को प्रोत्साहित करती रचना ..
आभार ...!
गिरीशजी
अच्छी रचना के लिए बधाई !
बहुत प्यारा शे'र है…
तुम आये , वरना मर जाता
मुझको जीवनदान मिल गया
…और यह शे'र भी बहुत ग़ज़ब है…
लोग बड़ी हैरत में थे के
कहीं एक इन्सान मिल गया
साथ ही…
ललित शर्माजी की टिप्पणी भी बहुत मज़ेदार है… बहुत रचनात्मक भी …
कहां मिल गया इंसान?
डिस्कवरी चैनल वालों को खबर करना पड़ेगा…
आपको अलग से बधाई , ललितजी !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
लोग बड़ी हैरत में थे के
कहीं एक इन्सान मिल गया
क्या बात है ... लाजवाब !
बूढ़ी आँखें क्या चाहेंगी
बस थोड़ा सम्मान मिल गया
वाह वा...बेहतरीन ग़ज़ल...
नीरज
लोग बड़ी हैरत में थे के
कहीं एक इन्सान मिल गया
गज़ल का हर शेर लाजवाब है…………सभी एक से बढकर एक हैं।
धन्य-धन्य हैं अम्मा-बापू
बेटा एक महान मिल गया
क्या बात है गिरीश भाई साहब
छा गए..
सीधे दिल से दिल तक
वाह चाचा जी बहुत सुंदर ग़ज़ल...भगवान से लेकर घर परिवार हर जगह फोकस करता हुआ बेहतरीन भावपूर्ण ग़ज़ल..प्रणाम चाचा
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