ग़ज़ल, / ऊपर वाले ऐसा कर दे ....
>> Sunday, July 4, 2010
रविवार है लोगों के पास समय कम होता है, इसलिए वक्तव्य नहीं, केवल एक प्रार्थना, एक ग़ज़ल
ऊपर वाले ऐसा कर दे
ऊपर वाले ऐसा कर दे
सबका घर खुशियों से भर दे
जो उड़ना चाहे तू उनको
रंग-बिरंगे सुन्दर पर दे
उनको भी रहने को घर दे
जहाँ अन्धेरा दिखलाई दे
उस द्वारे पर दीपक धर दे
पाप करे तो पापी काँपे
दुनिया को थोड़ा-सा डर दे
हर दिल में हो प्यार लबालब
नफ़रत के हर गड्ढे भर दे
रोक नहीं तू आने तो दे
हवा बह रही खोल रे परदे
ज़ुल्म देख कर चुप न बैठे
हर इंसां को इतना स्वर दे
पंकज हर मुस्कान के पीछे
मिलते हैं हालात बेदरदे
12 टिप्पणियाँ:
हर दिल में हो प्यार लबालब
नफ़रत के हर गड्ढे भर दे
ज़ुल्म देख कर चुप न बैठे
हर इंसां को इतना स्वर दे
पंकज हर मुस्कान के पीछे
मिलते हैं हालात बेदरदे
बहुत खूब ......!!
पिछली ग़ज़ल भी पढ़ी थी आपकी ....कुछ कंप्यूटर की खराबी के कारण टिपण्णी पोस्ट नहीं हुई ....!!
गज़ल में बहुत सुन्दर प्रार्थना की है..
.ज़ुल्म देख कर चुप न बैठे
हर इंसां को इतना स्वर दे
बहुत प्रेरणादायक
जहाँ अन्धेरा दिखलाई दे
उस द्वारे पर दीपक धर दे
पाप करे तो पापी काँपे
दुनिया को थोड़ा-सा डर दे
ज़ुल्म देख कर चुप न बैठे
हर इंसां को इतना स्वर दे
पंकज हर मुस्कान के पीछे
मिलते हैं हालात बेदरदे
ये चारों शेर लाजवाब हैं । सही विनति । बधाई आपको।अभार।
बहुत सुंदर मनत मांगी आप ने उस ऊपर वाले से. धन्यवाद इस सुंदर रचना के लिये
बेहद उम्दा रचना !
http://blog4varta.blogspot.com/2010/07/4_04.html
पाप करे तो पापी काँपे
दुनिया को थोड़ा-सा डर दे
आपकी इस बेहतरीन ग़ज़ल के हर शेर को पढने के बाद दिल से निकलता है...आमीन...ऐसा ही हो...बधाई.
नीरज
आपने हमारी इच्छा को लयबद्ध कर दिया ।
Har bar ki tarah umda gajal.
ब्लाँगवाणी के बाद अब एक नया ब्लाँग एग्रीगेटर भूतवाणी डाँट काँम जरुर पढेँ
bahut hi sundar bhavpurn gazal..pichale gazal ke tarj par kuch kuch aur laazwaab bhi..prnaam chacha ji..sundar gazal ke liye badhai
बहुत अच्छा है पंकज जी। बेहतरीन।
इतनी अच्छी कविता के बाद
मन करता है कमेंट कर दे।
क्यों साहब कैसा रहा ?
वाह गिरीश पंकज जी
अच्छे अश्आर हैं
हर दिल में हो प्यार लबालब
नफ़रत के हर गड्ढे भर दे
ज़ुल्म देख कर चुप न बैठे
हर इंसां को इतना स्वर दे
बधाई ! आभार !
ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
"उनको भी रहने को घर दे"
बहुत ख़ूब। पसन्द आई आपकी ये रचना। आपके कमेण्ट देखता रहा हूँ जगह जगह, आया भी ब्लॉग तक मगर काव्य-रचना आज ही पढ़ी।
बधाई, और आभार।
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