''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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ग़ज़ल, / ऊपर वाले ऐसा कर दे ....

>> Sunday, July 4, 2010


रविवार है लोगों के पास समय कम होता है, इसलिए वक्तव्य नहीं, केवल एक प्रार्थना, एक ग़ज़ल   

ऊपर वाले ऐसा कर दे
सबका घर खुशियों से भर दे

जो उड़ना चाहे तू उनको 
रंग-बिरंगे सुन्दर पर दे

जो घर यहाँ बनाते सबका                              
उनको भी रहने को घर दे 

जहाँ अन्धेरा दिखलाई दे
उस द्वारे पर दीपक धर दे

पाप करे तो पापी काँपे
दुनिया को थोड़ा-सा डर दे

हर दिल में हो प्यार लबालब 
नफ़रत के हर गड्ढे भर दे

रोक नहीं तू आने तो दे
हवा बह रही खोल रे परदे

ज़ुल्म देख कर चुप न बैठे 
हर इंसां को इतना स्वर दे

पंकज हर मुस्कान के पीछे
मिलते हैं हालात बेदरदे 

12 टिप्पणियाँ:

हरकीरत ' हीर' July 4, 2010 at 7:26 AM  

हर दिल में हो प्यार लबालब
नफ़रत के हर गड्ढे भर दे

ज़ुल्म देख कर चुप न बैठे
हर इंसां को इतना स्वर दे

पंकज हर मुस्कान के पीछे
मिलते हैं हालात बेदरदे

बहुत खूब ......!!

पिछली ग़ज़ल भी पढ़ी थी आपकी ....कुछ कंप्यूटर की खराबी के कारण टिपण्णी पोस्ट नहीं हुई ....!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) July 4, 2010 at 7:59 AM  

गज़ल में बहुत सुन्दर प्रार्थना की है..

.ज़ुल्म देख कर चुप न बैठे
हर इंसां को इतना स्वर दे

बहुत प्रेरणादायक

निर्मला कपिला July 4, 2010 at 8:49 AM  

जहाँ अन्धेरा दिखलाई दे
उस द्वारे पर दीपक धर दे

पाप करे तो पापी काँपे
दुनिया को थोड़ा-सा डर दे

ज़ुल्म देख कर चुप न बैठे
हर इंसां को इतना स्वर दे

पंकज हर मुस्कान के पीछे
मिलते हैं हालात बेदरदे
ये चारों शेर लाजवाब हैं । सही विनति । बधाई आपको।अभार।

राज भाटिय़ा July 4, 2010 at 9:24 AM  

बहुत सुंदर मनत मांगी आप ने उस ऊपर वाले से. धन्यवाद इस सुंदर रचना के लिये

शिवम् मिश्रा July 4, 2010 at 10:00 AM  

बेहद उम्दा रचना !

http://blog4varta.blogspot.com/2010/07/4_04.html

नीरज गोस्वामी July 4, 2010 at 10:37 PM  

पाप करे तो पापी काँपे
दुनिया को थोड़ा-सा डर दे

आपकी इस बेहतरीन ग़ज़ल के हर शेर को पढने के बाद दिल से निकलता है...आमीन...ऐसा ही हो...बधाई.
नीरज

अजय कुमार July 4, 2010 at 10:43 PM  

आपने हमारी इच्छा को लयबद्ध कर दिया ।

Anonymous July 5, 2010 at 2:15 AM  

Har bar ki tarah umda gajal.


ब्लाँगवाणी के बाद अब एक नया ब्लाँग एग्रीगेटर भूतवाणी डाँट काँम जरुर पढेँ

विनोद कुमार पांडेय July 5, 2010 at 9:53 AM  

bahut hi sundar bhavpurn gazal..pichale gazal ke tarj par kuch kuch aur laazwaab bhi..prnaam chacha ji..sundar gazal ke liye badhai

पंकज मिश्रा July 5, 2010 at 11:14 AM  

बहुत अच्छा है पंकज जी। बेहतरीन।
इतनी अच्छी कविता के बाद
मन करता है कमेंट कर दे।
क्यों साहब कैसा रहा ?

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार July 6, 2010 at 3:18 PM  

वाह गिरीश पंकज जी
अच्छे अश्आर हैं

हर दिल में हो प्यार लबालब
नफ़रत के हर गड्ढे भर दे

ज़ुल्म देख कर चुप न बैठे
हर इंसां को इतना स्वर दे

बधाई ! आभार !
ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए …

- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं

Himanshu Mohan July 10, 2010 at 7:47 AM  

"उनको भी रहने को घर दे"
बहुत ख़ूब। पसन्द आई आपकी ये रचना। आपके कमेण्ट देखता रहा हूँ जगह जगह, आया भी ब्लॉग तक मगर काव्य-रचना आज ही पढ़ी।
बधाई, और आभार।

सुनिए गिरीश पंकज को

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