''सद्भावना दर्पण'

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ग़ज़ल / हँसना भूल गया बेचारा ...

>> Tuesday, July 13, 2010

बिना किसी भूमिका के फिर एक बिल्कुल नई ग़ज़ल. मैं जो कहना चाहता हूँ, शेर तो कह रहे है. शुभकामनाएं चाहिए, दुवाओं में याद करते रहें, बस....


पद क्या पाया मद है भाई
वैसे बौना कद है भाई 

हँसना भूल गया बेचारा 
इस कुरसी की हद है भाई

पैसे खातिर अपने छूटे 
फिर भी वो गदगद है भाई

सीखो ऊँचाई-शीतलता
उधर एक बरगद है भाई

परिचय है पर काम न होगा
नोटों की आमद है भाई

मारपीट औ गुण्डागर्दी 
अपनी ये संसद है भाई

अगर प्यार से मिलने आओ
फुरसत ही फुरसत है भाई

बाँटोगे गर खुशियाँ सबको
बरकत ही बरकत है भाई

कभी नहीं मै रुक पाता हूँ
सच कहना आदत है भाई

हिंसक हाथों में है पूजा 
उन सबको लानत है भाई

सच को पीट रहे हैं डंडे
उफ़ कैसी आफत है भाई

समझ सको तो कविता पंकज 
जीवन का इक पद है भाई

15 टिप्पणियाँ:

शेरघाटी July 13, 2010 at 9:53 AM  

बाँटोगे गर खुशियाँ सबको
बरकत ही बरकत है भाई

कभी नहीं मै रुक पाता हूँ
सच कहना आदत है भाई

व्यंग्य की छौंक जो गहरे उतरती है के बाद ऐसी गंभीर बातें .....हर रचना की तरह संग्रहणीय

शहरोज़

bilaspur timess July 13, 2010 at 9:55 AM  

behatreen gajal !

ब्लॉ.ललित शर्मा July 13, 2010 at 10:08 AM  

सच को पीट रहे हैं डंडे
उफ़ कैसी आफत है भाई

गिरीश भैया रानी का डंडा (क्विन बैटन) भी घुम रहा है भारत में। पहले डंडा चलाते थे, अब डंडा घुमाया जा रहा है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) July 13, 2010 at 12:06 PM  

बहुत बढ़िया....जैसे जैसे आदमी तरक्की करता है उसका अहम बढ़ता ही जाता है...

Unknown July 13, 2010 at 1:19 PM  

nihaal kar diya sir ji !

Udan Tashtari July 13, 2010 at 2:05 PM  

परिचय है पर काम न होगा
नोटों की आमद है भाई



-बहुत सच सच बयानी..उम्दा रचना.

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" July 13, 2010 at 7:03 PM  

बेहतरीन ग़ज़ल ! हरेक शेर लाजवाब ...

Yogesh Verma Swapn July 13, 2010 at 8:33 PM  

behatareen hai girish ji, har sher kamaal

Dr. Zakir Ali Rajnish July 14, 2010 at 3:37 AM  

जीवन के नग्न सत्य को परोस दिया है आपने।
बधाई।
--------
पॉल बाबा की जादुई शक्ति के राज़।
सावधान, आपकी प्रोफाइल आपके कमेंट्स खा रही है।

ZEAL July 14, 2010 at 4:08 AM  

बाँटोगे गर खुशियाँ सबको
बरकत ही बरकत है भाई...

I very much liked this creation. almost all the couplets are very appealing .

Thanks.

ZEAL July 14, 2010 at 4:08 AM  

बाँटोगे गर खुशियाँ सबको
बरकत ही बरकत है भाई...

I very much liked this creation. almost all the couplets are very appealing .

Thanks.

Anonymous July 14, 2010 at 7:49 AM  

हमको पसंद आया है
आपके ये कलाम भाई

ऐसे ही लिखते रहो सदा
दुआओँ के साथ सलाम है भाई


अक्सर लोग भटक जाते है छलावे क मंजर मे
पर आप पर पुरे हिन्द को नाज है भाई

एक सच्चाई और देखी है मैने "मुकेश"
यही पंकज कि पहचान है भाई ।

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" July 14, 2010 at 7:23 PM  

पैसे खातिर अपने छूटे
फिर भी वो गदगद है भाई
मारपीट औ गुण्डागर्दी
अपनी ये संसद है भाई
समझ सको तो कविता पंकज
जीवन का इक पद है भाई

वाह क्या बात है, बहुत सुन्दर रचना !

विनोद कुमार पांडेय July 14, 2010 at 7:53 PM  

पैसे खातिर अपने छूटे
फिर भी वो गदगद है भाई

चाचा जी बिल्कुल आज के दौर पर फिट बैठती सुंदर ग़ज़ल....प्रणाम चाचा जी

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') July 15, 2010 at 9:25 AM  

भईया प्रणाम.
जुदा सा एक नजरिया है आपकी ग़ज़ल
इन्शिराहे कल्ब का जरिया है आपकी ग़ज़ल.

सुनिए गिरीश पंकज को

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