''सद्भावना दर्पण'

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नई ग़ज़ल/ लानत भेजूंगा मैं उसको चाहे वह भगवान् भी हो..

>> Tuesday, July 20, 2010


फिर एकदम नई ग़ज़ल, अपने चहेते सुधी ब्लागर और अच्छे पाठकों के नाम...

बातें बड़ी भली करता है लेकिन वह इनसान भी हो
क्या मालूम देवता बाहर भीतर इक शैतान भी हो

इस दुनिया में भले जनों की अब गुंजाइश मुश्किल है
शायद कहीं किसी कोने में अच्छे का सम्मान भी हो

माना कि तुम बुद्धिमान हो लेकिन इतना तो कर लो 
वक़्त पड़े तो नादानों के बीच तनिक नादान भी हो

इतने भी खुदगर्ज़ नहीं तुम हो जाओ इस दुनिया में
अपनी जय-जय करवा लो पर दूजों का जयगान भी हो

खून बहाकर जीवों का जो भक्तों से खुश होता है
लानत भेजूँगा मैं उसको चाहे वह भगवान् भी हो

जीवन है ये धूप-छाँव का खेल यहां पर चलता है
कभी मिलेगा तुमको अमृत कभी यहाँ विषपान भी हो

दुनिया में हम तरह-तरह के लोगों से तो मिलते हैं 
अच्छे और बुरे की हमको थोड़ी-सी पहचान भी हो

सच्चा है इनसान अगर तो बेशक वह ये चाहेगा 
एक तरफ हो राम अगर तो एक तरफ रहमान भी हो
 
अगर बहुत ही लम्पट है तो वह क्या इज्ज़त पायेगा 
चाहे पढ़ा-लिखा हो पंकज या कोई विद्वान भी हो

18 टिप्पणियाँ:

ASHOK BAJAJ July 20, 2010 at 9:52 AM  

बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल है ,अच्छो के सम्मान का जमाना कहाँ ?

ब्लॉ.ललित शर्मा July 20, 2010 at 9:58 AM  

वाह गिरीश भैया
आज तो गजब कर दिया
आभार

राज भाटिय़ा July 20, 2010 at 11:26 AM  

बातें बड़ी भली करता है लेकिन वह इनसान भी हो
क्या मालूम देवता बाहर भीतर इक शैतान भी हो
वाह जी बहुत सुंदर लगी आप की रचना.
धन्यवाद

Anonymous July 20, 2010 at 11:35 AM  

एक शब्द काफी है इसके लिये

"अदभुत" ।

शिवम् मिश्रा July 20, 2010 at 11:55 AM  

बेहद उम्दा ............हर एक शेर ज़िन्दगी की सच्चाई बताता हुआ !
बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं इस लाजवाब रचना के लिए !

संगीता स्वरुप ( गीत ) July 20, 2010 at 12:47 PM  

सच्चा है इनसान अगर तो बेशक वह ये चाहेगा
एक तरफ हो राम अगर तो एक तरफ रहमान भी हो

अगर बहुत ही लम्पट है तो वह क्या इज्ज़त पायेगा
चाहे पढ़ा-लिखा हो पंकज या कोई विद्वान भी हो .

सुन्दर भाव से सजी अच्छी गज़ल...

कडुवासच July 20, 2010 at 6:45 PM  

...शानदार भावपूर्ण गजल!!!

अजय कुमार July 20, 2010 at 7:18 PM  

शानदार गजल .आभार ।

विनोद कुमार पांडेय July 20, 2010 at 7:39 PM  

सच्चा है इनसान अगर तो बेशक वह ये चाहेगा
एक तरफ हो राम अगर तो एक तरफ रहमान भी हो

चाचा जी बेहतरीन अभिव्यक्ति .....

बिल्कुल सच कहा आपने आज इंसान की परिभाषा बदल कर बहुत छोटी हो गई है..विचार इतने सूक्ष्म हो गये है कि लगता ही नही इंसान है...राम और रहमान की समझ रखने वाले और उन्हे समान महत्व देने वाले ही वास्तव में सच्चे इंसान है..

बढ़िया भाव से निहित सुंदर रचना के लिए धन्यवाद

विनोद कुमार पांडेय July 20, 2010 at 7:41 PM  

सच्चा है इनसान अगर तो बेशक वह ये चाहेगा
एक तरफ हो राम अगर तो एक तरफ रहमान भी हो

चाचा जी बेहतरीन अभिव्यक्ति .....

बिल्कुल सच कहा आपने आज इंसान की परिभाषा बदल कर बहुत छोटी हो गई है..विचार इतने सूक्ष्म हो गये है कि लगता ही नही इंसान है...राम और रहमान की समझ रखने वाले और उन्हे समान महत्व देने वाले ही वास्तव में सच्चे इंसान है..

बढ़िया भाव से निहित सुंदर रचना के लिए धन्यवाद

वाणी गीत July 20, 2010 at 8:00 PM  

माना कि तुम बुद्धिमान हो लेकिन इतना तो कर लो
वक़्त पड़े तो नादानों के बीच तनिक नादान भी हो
खून बहाकर जीवों का जो भक्तों से खुश होता है
लानत भेजूँगा मैं उसको चाहे वह भगवान् भी हो....

दुनिया को रहने लायक और विश्व शांति को कायम इसी तरह रखा जा सकता है ...

एक विचार July 20, 2010 at 10:40 PM  

शानदार गजल

arvind July 21, 2010 at 2:05 AM  

इस दुनिया में भले जनों की अब गुंजाइश मुश्किल है
शायद कहीं किसी कोने में अच्छे का सम्मान भी हो
..........बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल .

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') July 21, 2010 at 6:00 AM  

शब्द विहीन.... बस आपको प्रणाम करता हूँ.

संजय भास्‍कर July 24, 2010 at 5:54 AM  

शुभकामनाएं इस लाजवाब रचना के लिए !

संजय भास्‍कर July 24, 2010 at 5:55 AM  

Maaf kijiyga kai dino bahar hone ke kaaran blog par nahi aa skaa

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι July 24, 2010 at 9:21 AM  

अच्छी ग़ज़ल।

PRINCIPAL HPS SR SEC SCHOOL July 25, 2010 at 6:39 PM  

इस दुनिया में भले जनों की अब गुंजाइश मुश्किल है
शायद कहीं किसी कोने में अच्छे का सम्मान भी हो
Excellent.
But who will reply this?
Who will be the judge?
Dear,
Likhte bahut khoob ho,
Jawab nahi Janaab aap ka.
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