एक और लम्बी ग़ज़ल/ रचा हुआ ही बचा रहे.........
>> Friday, October 22, 2010
कल आयकर विभाग ने आमंत्रित किया था.राजभाषा मास के दौरान कुछ प्रतियोगिताए हुई थीं. उनका पुरस्कार बाँटना था. वहां पहली बार मेरी मुलाकात मुख्य आयकर आयुक्त श्री एके जैन से हुई. वे अभी-अभी हैदराबाद से रायपुर पदस्थ हुए है. बातों-बातों में पता चला कि वे इन दिनों आध्यात्मिक दुनिया में भी विचरते रहते है. हैदराबाद के चिन्तक ''श्रीराम''. के विचारों से जैन साहब बड़े प्रभावित है. जैन साहब ने ''श्रीराम'' की पुस्तक divinity in nature'' की एक प्रति मुझे दी. उसे पढ़कर लगा कि श्रीराम जी के चिंतन मे कुछ मौलिकता है. नयापन है. किताब पढ़ते हुए लगा कि कुछ उमड़-घुमड़ रहा है. रहा नहीं गया: मैंने जैन साहब से कागज माँगा और मन की भावनाओं को फ़ौरन लिपिबद्ध कर दिया. तीन शेर वहीं बन गए. घर लौटा तो फिर लिखने बैठ गया. माँ सरस्वती, लिखवाती रही. देखते-देखते कई शेर कह डाले. ये शेर ''श्रीराम'' जी के चिंतन से प्रेरित है, इसलिये उनका आभारी हूँ.
दुःख भी सुख का भाई है
समझें तो सुखदाई है
पहले गर्मी, फिर देखो
शीतल बदली छाई है
दुःख को लेकर दुखी रहे
तो जीवन दुखदाई है
अंधकार को चीरेगी
सूरज की अरुणाई है
भलेजनों का साथ मिला
यह भी पुण्यकमाई है
जीवन हर पल बदलेगा
मृत्यु मगर स्थाई है
जीवन का सच्चा मकसद
इक निर्मल ऊँचाई है
जीवन में उत्साह रहे
सदा-सदा तरुणाई है
दौलत पा कर इतराए
होती जगत हँसाई है
संभलो-संभलो गिरना मत
कदम-कदम पर काई है
उंच-नीच इनसानों में
किसने रीत चलाई है
मृत्यु क्या है सच पूछो
अपनी ही परछाई है
ऊपरवाला दिखता है
जिधर नज़र दौड़ाई है
रिश्ते जल गए बातों से
किसने आग लगाई है
असली मंजिल आयेगी
अभी अरे अंगड़ाई है
जो अपनों से छल करता
इन्सां नहीं कसाई है
जीवन साथ नहीं देता
ये भी इक हरजाई है
रचा हुआ ही बचा रहे
युग-युग तक फलदाई है
भीतर से टूटा-फूटा
बाहर रंग-रंगाई है
गलत राह पर चल कर के
किसने मंजिल पाई है
केवल खुद पे करें यकीं
समझो मंजिल आई है
अच्छे लोगों ने हरदम
सबकी शान बढ़ाई है
सच को कौन पचा पाया
यह कड़वी सच्चाई है
उनको ही सम्मान मिला
जिसने साख बनाई है
है खुद्दारी की दौलत
पास न आना-पाई है
हर नाते-रिश्ते झूठे
धरती असली माई है
दौलत पा के मनुज रहो
असली वही कमाई है
मन है नार्मल तो समझो
यह सच्ची प्रभुताई है
जो घमंड में जीता है
वह भी इक अन्यायी है
हर पल ही संतोष रहा
पंकज यही कमाई है
9 टिप्पणियाँ:
संभलो-संभलो गिरना मत
कदम-कदम पर काई है
इस कलियुग में काई ने सबका जीवन मुश्किल कर रखा है ! जीवन मूल्य नष्ट हो रहे हैं !जोगी के इकतारे की तरह आप की कविता जीवन को सजाने सवारने में जुटी हुई है ! आभार !
... bhut sundar ... behad prabhaavashaalee abhivyakti ... aabhaar !!!
Priy Pankaj jee ,
Adhikaansh sheron mein taajgee
aur mithaas hai . Badhaaee .
आपको इस सुन्दर काव्याभिव्यक्ति की प्रेरणा देने वाले श्रीराम जी और sath hi जैन साहब का आभार और आपको प्रणाम.
बहुत बढ़िया ग़ज़ल....अपने तो कमाल कर दिया..इतने ढेर सारे शेर पर हैं सब बेहतरीन...बहुत सुंदर भाव...बढ़िया ग़ज़ल के लिए धन्यवाद ..प्रणाम चाचा जी
संभलो-संभलो गिरना मत
कदम-कदम पर काई है||
मृत्यु क्या है सच पूछो
अपनी ही परछाई है ||
वाह...एक से बढ़ एक पद रच डाले आपने...
बहुत सुन्दर रचना...
हर पल ही संतोष रहा
पंकज यही कमाई है।
बहुत ही सुंदर, प्रेरणादायी रचना...बधाई।
आपको जन्म दिन की हार्दिक बधाइयां और शुभकामनाएं।
रिश्ते जल गए बातों से
किसने आग लगाई है
भीतर से टूटा-फूटा
बाहर रंग-रंगाई है
हर नाते-रिश्ते झूठे
धरती असली माई है
सम्मानिय सर
मेरी पसंद के चाँद शेर प्रस्तुत करता हुआ आप को प्रणाम .!
अच्छी रचना पढ़ प्रसनता हुई
सादर !
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