नई ग़ज़ल / इक दीप-सी जलती रही इरोम शर्मिला....
>> Wednesday, November 3, 2010
एक सत्याग्रह के दस साल होने पर.....
इरोम शर्मिला.....किसी परिचय की मोहताज नहीं है वह. इरोम शर्मिला क्रांति का प्रतीक है. अन्याय के खिलाफ एक आवाज़ है. अँधेरे के विरुद्ध रोशनी का गीत है..गान है. इरोम शर्मिला भारतीय अस्मिता कि पहचान है. आज के ही दिन दस साल पहले उसने मणिपुर मे पुलिस और सेना अत्याचार के विरुद्ध आमरण अनशन शुरू किया था. वहां सेना को विशेषाधिकार मिले है. जिसका फायदा उठा कर वह सामान्य लोगों पर जुल्म करती रहती है. कभी औरतों के साथ बलात्कार तो कभी किसी भी निर्दोष को प्रताड़ित करना, यही है वहां की सेना के कुछ् लोगों का चरित्र. जब पानी सिर से ऊपर बहाने लगा तो भुक्तभोगी शर्मिला ने आवाज़ उठाने के लिये २ नवम्बर २००० को आमरण अनशन शुरू कर दिया. उसकी एक सूत्री माँग है- मणिपुर मे सेना को जो विशेषाधिकार दिए गए है, वे वापस लिये जाये. आतंकवाद के विरुद्ध लड़ने वाली सेना के आतंक का तो खात्मा कर नहीं सकी, उलटे वहां के लोगों पर आतंक फ़ैलाने लगी? हद है...मणिपुर की अनेक महिलाओं ने सेना मुख्यालय के बाहर पूर्णतः नग्न हो कर प्रदर्शन भी किया था. यह है अपना देश. शर्म आती है, मणिपुर ही नहीं, लगभग पूरे देश में सेना में घुसे कुछ पागल लोगों का अत्याचार अक्सर सहना ही पड़ता है. लेकिन कोई सामूहिक आवाज़ ही नहीं उठती. यह हमारा सौभाग्य है कि इसी देश में इरोम शर्मिला भी रहती है, जिसने सेना को मिले विशेषाधिकार के विरुद्ध आवाज़ उठाई. शर्मनाक बात यह है कि हमारी सरकार ने इस वीरांगना की कद्र नहीं की. अरे एक बार तो सरकार इरोम का कहना मान लेती. एक बड़ी लड़ाई का सम्मान करती. लेकिन जब नकली लोकतंत्र का खेल होता है तो ऐसे ही मंज़र सामने आते है. पता नहीं, वह दिन कब आएगा, जब इरोम शर्मिला की आन पूर्ण होगी. होगी भी या नहीं? क्या अधूरी खवाहिश लेकर ही शर्मिला इस संसार से चल देगी? पता नहीं, क्यों इस देश के नारी संगठन खामोश है. एक बार भी अगर देशभर की महिलाएं एक दिन के लिये भी इरोमशर्मिलाके समर्थन मे हड़ताल पर बैठ जाएँ तो सरकार को झुकाना पड़ेगा. लेकिन वह दिन आएगा कब? अभी तो बाज़ार का आकर्षण बहुत है. टीवी के दो-दो सौ चैनल है. सिनेमा है. फैशन है. किटी पार्टियाँ है. सुन्दर-सुन्दर पोशाके है. बदन से उतरते कपडे है.. अनेक पाखण्ड है. इन सबसे फुरसत मिले तब तो तथाकथित आधुनिक महिलाएं इरोम शर्मिला की ओर ध्यान दे. अभी तो बहुत-सी औरतों को इरोम शर्मिला के काम की जानकारी भी नहीं होगी. खैर, मन में आग है. कितना लिखूं...? लिखने से कुछ होता भी तो नहीं. फिर भी दिल मानता नहीं. आज फिर इरोम पर कुछ शेर कहें हैं. अपने बेहद आत्मीय होते जा रहे ख़ास पाठक-मित्रों के लिये प्रस्तुत है नई ग़ज़ल.. एक महान सत्याग्रह के दस साल होने पर-
सबके लिये चलती रही इरोम शर्मिला
इक दिन यहाँ इन्साफ मिलेगा इसीलिये
हर दर्द को सहती रही इरोम शर्मिला
इस देश में बहाल नहीं लोकतंत्र क्यूं
सब से यहाँ कहती रही इरोम शर्मिला
जोखिम में जान डाल कर भूखी रही है वो
मिटती रही, बनती रही इरोम शर्मिला
रोके से रुक सकी नहीं कमाल कर दिया
बन के नदी बहती रही इरोम शर्मिला
खुशियों के मकानात बनें इसलिए सुनो
हर पल यहाँ ढहती रही इरोम शर्मिला
निर्मम हमारे देश की सरकार क्या कहें
किस मुल्क में रहती रही इरोम शर्मिला
औरत पे जुल्म ढा रहे गुंडे हैं ड्रेस में
इस बात पे हंसती रही इरोम शर्मिला
खा-पी के अघाए हुए इस देश में पंकज
कुर्सी को ही खलती रही इरोम शर्मिला
10 टिप्पणियाँ:
अल्पसंख्यक होती तो सुन लेती सरकार और मीडिया..
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सरकार बहरी भी है, अंधी भी। इरोम शर्मीला के प्रयास सराहनीय है। महिला संगठनों को एक जुट होकर इस आन्दोलन को बढ़ाना होगा तभी सफलता मिल सकेगी।
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इक दीप-सी जलती रही इरोम शर्मिला ,
सबके लिये चलती रही इरोम शर्मिला ;
बेहतरीन प्रस्तुति . धन्यवाद .
बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपको और आपके परिवार में सभी को दीपावली की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएं ! !
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
यही जीवटता होनी चाहिए जीवन में
संकल्प शक्ति के आगे बड़ी बड़ी सत्ताओं को झुकना पड़ता है।
दीपावली की शुभकामनाएं।
जी कल इन को टी वी पर देखा था,लेकिन यह बहरी लूली सरकार उसे नही सुंनती, अगर जनता भी उस के साथ आवाज ऊठाये तो ही बात बनेगी, धन्यवाद
आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामाएं
'असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय ' यानी कि असत्य की ओर नहीं सत्य की ओर, अंधकार नहीं प्रकाश की ओर, मृत्यु नहीं अमृतत्व की ओर बढ़ो ।
दीप-पर्व की आपको ढेर सारी बधाइयाँ एवं शुभकामनाएं ! आपका - अशोक बजाज रायपुर
प्रेरक शख्शियत पर प्रेरणादायी रचना भईया. आभार. आपको दीपावली की सादर बधाइयां.
पंकज जी..आज की प्रस्तुति के बारे में मैं क्या कहूँ....आपने आज की ग़ज़ल जिस विशेष के लिए लिखी है वो सचमुच उस के काबिल है..सरकार की नज़रअंदाजी और व्यवस्था पर एक बढ़िया कटाक्ष..काश कुछ सुधार हो पाए...इस ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत आभार...नतमस्तक हूँ..चाचा जी प्रणाम
बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !......पंकज जी
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