नई ग़ज़ल / क्यों हमें उल्लू बनाया जा रहा है
>> Monday, November 8, 2010
दीपावली बीत गई. सबने अपनी-अपनी हैसियतों के अनुसार त्यौहार मनाया.क्या गरी और क्या अमीर. दीवाली तो सबकी है. अब जीवन के कटु यथार्थ से रू-ब-रू होना है. जीवन अपनी गति से चलता है. मैं जीवन-दर्शन पर कुछ नहीं कहने जा रहा. बस, मन की कुछ बातें कहूंगा चंद शेरों के माध्यम से. शायद कुछ आपके मन की भी बात हो...देखें...
सिर्फ दर्पण को सजाया जा रहा है
और चेहरे को छिपाया जा रहा है
और चेहरे को छिपाया जा रहा है
झूठ को ही सच बताया जा रहा है
सत्य को लेकिन मिटाया जा रहा है
जो कहेगा सत्य वो मुजरिम यहाँ
कुछ नियम ऐसा बनाया जा रहा है
पेट खाली थे उन्हें कुछ ना मिला
तृप्त लोगों को खिलाया जा रहा है
रोज़ ही कहते हैं लाएँगे ख़ुशी
क्यों हमें उल्लू बनाया जा रहा है
जुर्म गर धनवान कर ले छूट है
बस गरीबों को सताया जा रहा है
हमने तो चेहरा दिखाया था मगर
हमको सूली पे चढ़ाया जा रहा है
दौर कैसा आ गया है आजकल
झूठ को सिर पे चढ़ाया जा रहा है
बेदखल कर के यहाँ अच्छाई को
जश्न अब पंकज मनाया जा रहा है
12 टिप्पणियाँ:
रोज़ ही कहते हैं लाएँगे ख़ुशी
क्यों हमें उल्लू बनाया जा रहा है !!!
सद्यह स्नाता सी यह गजल बेहद खुबसूरत है ! सरकारी योजनाओं पर करारा व्यंग्य है !हमने आपको सुना है सुनते रहेंगे ! दीपावली की अनंत शुभकामनायें !
सिर्फ दर्पण को सजाया जा रहा है
और चेहरे को छिपाया जा रहा है
झूठ को ही सच बताया जा रहा है
सत्य को लेकिन मिटाया जा रहा है.
बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति....आभार
खैर है गजल अब भी बची है यहां,
गीत भी अब तक गाया जा रहा है.
क्यों हमें उल्लू बनाया जा रहा है .....
हमेशा की तरह बहुत ही सुन्दर रचना . धन्यवाद !
पेट खाली थे उन्हें कुछ ना मिला
तृप्त लोगों को खिलाया जा रहा है...
मंदिर में अन्नकूट के दिन प्रसाद बनते और तृप्त होकर जीमते लोगों को देखकर यही ख्याल मन में आया ...!
एक सत्य या भी है ही !
बहुत अच्छी गज़ल ....
दौर कैसा आ गया है आजकल
झूठ को सिर पे चढ़ाया जा रहा है
...bahut hi khoobsurat gajal...
"खरी हैं बातें, खरे हैं शेर,
सपने तमाम हो रहे ढेर.
आपने की हैं उनकी बातें,
जिनको हैं खट्टे, हमेशा से बेर."
शानदार ग़ज़ल के लिए बधाई, भैया प्रणाम.
बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति....आभार
बहुत ही सुंदर ग़ज़ल..एक से बढ़ कर एक शेर आज के समाज की वास्तविक चित्रण करते हुए..बढ़िया ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत धन्यवाद..प्रणाम
पंकज जी, आपकी गजल मन को भा गयी। इन शानदार शेरों के लिए अनेकश: बधाईयॉं।
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जानिए गायब होने का सूत्र।
….ये है तस्लीम की 100वीं पहेली।
... bahut sundar ... behatreen ... aabhaar !!!
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