नई ग़ज़ल / अरे यार सब चलता है....
>> Friday, December 10, 2010
जो सच्चे पर हँसता है
पाप ह्रदय में रखता है
पाप-पुण्य के अंतर को
ज्ञानी सदा समझता है
रिश्ता टूट न जाय कहीं
ज़ुल्म तेरे वो सहता है
तू वीरों का है वंशज
क्यों धारे में बहता है
उसको मंजिल मिलती है
बिना रुके जो चलता है
बार-बार टूटा लेकिनसपना फिर-फिर पलता है
वो है एक बहादुर जो
गिरता मगर संभलता है
मन भी है बच्चा जैसा
अक्सर बहुत मचलता है
मूरख का यह जुमला है
अरे यार सब चलता है
शेर कहे मैंने दिल से
वह दिमाग से लिखता है
झूठे सम्मानित होते
14 टिप्पणियाँ:
रिश्ता टूट न जाय कहीं
ज़ुल्म तेरे वो सहता है.
तू वीरों का है वंशज
क्यों धारे में बहता है.
आदरणीय गिरीश जी बहुत ही सुन्दर कमाल के भाव हैं लेखनी के ....आभार .
महेन्द्र मिश्र
झूठे सम्मानित होते
पंकज का दिल जलता है
बहुत खूब पंकज भाई ! शुभकामनायें !!
सम्मान प्रतिभा का कहीं-कहीं और उद्यम का ज्यादातर होता है, क्या करें.
मूरख का यह जुमला है
अरे यार सब चलता है
.
बहुत खूब पंकज भाई
उसको मंजिल मिलती है,
बिना रुके जो चलता है;
बार-बार टूटा लेकिन,
सपना फिर-फिर पलता है .
बेहतरीन रचना . बधाई !
बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
जो सच्चे पर हँसता है
पाप ह्रदय में रखता है
पाप-पुण्य के अंतर को
ज्ञानी सदा समझता है
वाह पंकज जी ,क्या बात है.
बढ़िया है.
मन भी है बच्चा जैसा
अक्सर बहुत मचलता है
सोचने पर विवश करती गज़ल ...बहुत अच्छी लगी
आदरणीय गिरीश जी
नमस्कार !
वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
.......बहुत अच्छी लगी
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
... umdaa ... bhaavpoorn ... behatreen post !!!
... shaandaar lekhan ... bahut bahut badhaai !!!
उसको मंजिल मिलती है
बिना रुके जो चलता है
बार-बार टूटा लेकिन
सपना फिर-फिर पलता है !!वाह गिरीश जी !तकलीफ कितनी भी हो ,सही बात पर रहना और सही बात कहना आपका अपना अंदाज है
एकदम सामयिक ग़ज़ल है पंकज जी। आखिरी शेर पर बरबस याद आ गया कि--दिल जलता है तो जलने दे…
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