''सद्भावना दर्पण'

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नई ग़ज़ल / अरे यार सब चलता है....

>> Friday, December 10, 2010

जो सच्चे पर हँसता है 

पाप ह्रदय में रखता है

पाप-पुण्य के अंतर को
ज्ञानी सदा समझता है

रिश्ता टूट न जाय कहीं
ज़ुल्म तेरे वो सहता है

तू वीरों का है वंशज
क्यों धारे में बहता है

उसको मंजिल मिलती है

बिना रुके जो चलता है
बार-बार टूटा लेकिन
सपना फिर-फिर पलता है

वो है एक बहादुर जो
गिरता मगर संभलता है

मन भी है बच्चा जैसा
अक्सर बहुत मचलता है

मूरख का यह जुमला है
अरे यार सब चलता है

शेर कहे मैंने दिल से
वह दिमाग से लिखता है

झूठे सम्मानित होते
पंकज का दिल जलता है

14 टिप्पणियाँ:

समयचक्र December 10, 2010 at 6:27 AM  

रिश्ता टूट न जाय कहीं
ज़ुल्म तेरे वो सहता है.
तू वीरों का है वंशज
क्यों धारे में बहता है.
आदरणीय गिरीश जी बहुत ही सुन्दर कमाल के भाव हैं लेखनी के ....आभार .
महेन्द्र मिश्र

Satish Saxena December 10, 2010 at 6:44 AM  

झूठे सम्मानित होते
पंकज का दिल जलता है

बहुत खूब पंकज भाई ! शुभकामनायें !!

Rahul Singh December 10, 2010 at 6:47 AM  

सम्‍मान प्रतिभा का कहीं-कहीं और उद्यम का ज्‍यादातर होता है, क्‍या करें.

S.M.Masoom December 10, 2010 at 12:23 PM  

मूरख का यह जुमला है
अरे यार सब चलता है
.
बहुत खूब पंकज भाई

ASHOK BAJAJ December 10, 2010 at 12:30 PM  

उसको मंजिल मिलती है,
बिना रुके जो चलता है;
बार-बार टूटा लेकिन,
सपना फिर-फिर पलता है .

बेहतरीन रचना . बधाई !

शिवम् मिश्रा December 10, 2010 at 2:57 PM  


बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !

आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें

Kunwar Kusumesh December 10, 2010 at 7:03 PM  

जो सच्चे पर हँसता है
पाप ह्रदय में रखता है

पाप-पुण्य के अंतर को
ज्ञानी सदा समझता है

वाह पंकज जी ,क्या बात है.
बढ़िया है.

संगीता स्वरुप ( गीत ) December 10, 2010 at 8:17 PM  

मन भी है बच्चा जैसा
अक्सर बहुत मचलता है

सोचने पर विवश करती गज़ल ...बहुत अच्छी लगी

संजय भास्‍कर December 10, 2010 at 9:32 PM  

आदरणीय गिरीश जी
नमस्कार !
वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
.......बहुत अच्छी लगी

vandana gupta December 11, 2010 at 4:44 AM  

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

कडुवासच December 15, 2010 at 8:48 PM  

... umdaa ... bhaavpoorn ... behatreen post !!!

कडुवासच December 15, 2010 at 8:50 PM  

... shaandaar lekhan ... bahut bahut badhaai !!!

Anonymous December 16, 2010 at 8:57 AM  

उसको मंजिल मिलती है
बिना रुके जो चलता है
बार-बार टूटा लेकिन
सपना फिर-फिर पलता है !!वाह गिरीश जी !तकलीफ कितनी भी हो ,सही बात पर रहना और सही बात कहना आपका अपना अंदाज है

बलराम अग्रवाल December 17, 2010 at 9:10 AM  

एकदम सामयिक ग़ज़ल है पंकज जी। आखिरी शेर पर बरबस याद आ गया कि--दिल जलता है तो जलने दे…

सुनिए गिरीश पंकज को

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