''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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फिर एक नई ग़ज़ल / पास हमारे आओ थोड़ा....

>> Sunday, December 5, 2010

पास हमारे आओ थोड़ा
दूरी ज़रा मिटाओ
थोड़ा
 
जीना भी तो एक कला है
पीड़ा में मुस्काओ थोड़ा
 
साफ़ दिखेगा तुम्हें नज़ारा
परदे जरा हटाओ थोड़ा

रूठेंगे अपने भी कब तक
जाओ उन्हें मनाओ थोड़ा

भूखे को रोटी दे दो तुम
ऐसे पुण्य कमाओ थोड़ा

ये दुनिया तो होगी अपनी
केवल हाथ बढ़ाओ थोड़ा

रौशन हो जाएगा जीवन
मन का दीप जलाओ थोड़ा

खुशियाँ हो जाती हैं दूनी
बेशक इन्हें लुटाओ थोड़ा

कैसा सुख मिलता बंजर में
कोई फूल खिलाओ थोड़ा

आँसू भी शरमा जायेंगे
गीत कोई तुम गाओ थोड़ा

तेरा इंतजार है कब से
अपना हमें बनाओ थोड़ा

जीवन है इक सुन्दर पुस्तक
पढ़ते रहो, पढ़ाओ थोड़ा

होगा परिवर्तन भी इक दिन
सोए लोग जगाओ थोड़ा

कौन दूध का धुला है पंकज
एक खोज कर लाओ थोड़ा 

12 टिप्पणियाँ:

परमजीत सिहँ बाली December 5, 2010 at 10:39 AM  

बहुत बढ़िया रचना है।बधाई।

वाणी गीत December 5, 2010 at 6:31 PM  

जीवन एक सुन्दर पुस्तक है ...
पढ़ते रहो ...पढ़ो थोडा ....
सही बात ...
कौन दूध का धुला है पंकज
एक खोज कर लाओ थोड़ा
सब खुद को मानते हैं दूध का धुला ...अन्दरखाने हकीकत भी सब जानते हैं ..

अच्छी कविता !

संगीता स्वरुप ( गीत ) December 5, 2010 at 8:27 PM  

बहुत अच्छी गज़ल ...अच्छी दिशा में सोचने को बाध्य करती हुई

कडुवासच December 6, 2010 at 3:26 AM  

... sundar ... bhaavpoorn !!!

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') December 6, 2010 at 5:46 AM  

सीधा, सादा, सुन्दर भावाभिव्यक्ति भईया....
"ऐसा सुन्दर कहने का ढंग
हमको भी सिखलाओ थोड़ा"
सादर.

vandana gupta December 6, 2010 at 9:11 PM  

बहुत सुन्दर रचना।

Dr Varsha Singh December 7, 2010 at 1:28 AM  

बेहतरीन रचना। बधाई।

Kailash Sharma December 7, 2010 at 2:03 AM  

जीना भी तो एक कला है
पीड़ा में मुस्काओ थोड़ा

बहुत प्रेरक रचना..आभार

arvind December 7, 2010 at 2:55 AM  

बहुत बढ़िया रचना

अनुपमा पाठक December 7, 2010 at 3:06 AM  

sundar abhivyakti!

M VERMA December 7, 2010 at 3:58 AM  

जीना भी तो एक कला है
पीड़ा में मुस्काओ थोड़ा

बहुत खूब .. यही जीवन है

संजय भास्‍कर December 10, 2010 at 9:34 PM  

बहुत प्रेरक रचना

सुनिए गिरीश पंकज को

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