नई ग़ज़ल/ रूठ गया है जो मुझसे वो यार कहाँ से लाऊँगा
>> Saturday, December 18, 2010
बहुत दिनों के बाद हाजिर हूँ. नेट खराब था. इसलिये मूड भी ख़राब था. सृजन तो हो रहा था, मगर उसे तत्काल लोकव्यापी करने का रास्ता बंद-सा था. नेट के कारण ऐसे अनेक प्रियजनों से नाता जुडा है, कि मत पूछिए. ज़िन्दगी मे उत्साह का संचरण होता है. सृजन को भी गति मिली है. खास कर मेरा कवि-रूप कुछ ज्यादा ही मुखरित हुआ है. अखबारों में मेरा सामायिक लेखन एवं स्तम्भ-लेखन तो चल ही रहा है, मगर सच कहूँ, तो साहित्य की दुनिया में आकर - और अब तो कहा जा सकता है कि ब्लॉग-लेखन कर के मुक्ति का अहसास होता है. साहित्य और पत्रकारिता में समान गति से चलते हुए भी मुझे साहित्य से कुछ ज्यादा प्यार हो चला है. विधा कोई भी हो. व्यंग्य हो, कहानी हो, लघुकथा हो, गीत-ग़ज़ल हो, नई कविता हो, बाल साहित्य हो, उपन्यास हो: समय-समय पर हर विधा में सार्थक लेखन कि विनम्र कोशिश की है. नेट के माध्यम से मेरी कविताई परवान चढ़ी है.लोंगों का इतनाप्यार मिला है, कि क्या कहूँ. लिखना सार्थक हुआ है. खैर....एक बार फिर अपनी नई ग़ज़ल के साथ मुखातिब हूँ.
पास मोहब्बत है मेरे तकरार कहाँ से लाऊँगा
नफरत जो सिखलाये वो किरदार कहाँ से लाऊँगा
जो करना है इस दुनिया में मुझे अकेले करना है
साथ मेरा देने वाले दो-चार कहाँ से लाऊँगा
जो कुछ है वो दिल है मेरा यही सौंपता हूँ तुमको
इससे बढ़ कर अब कोई उपहार कहाँ से लाऊँगा
दर्द ज़माने का रक्खा है यही सुनाया करता हूँ
मैं पायल की दिलकश वो झंकार कहाँ से लाऊँगा
बहुत हो चुका अब थोड़ी आवाज़ उठाऊंगा मैं भी
सहना है मेरी फितरत हर बार कहाँ से लाऊँगा
मैं तेरी महफ़िल में आया यह मेरी मज़बूरी थी
लेकिन दिल ना आ पाया खुद्दार कहाँ से लाऊँगा
असफलताएँ, पीड़ा, आँसू ये सब हैं त्यौहार मेरे
इनसे हट कर और नये त्यौहार कहाँ से लाऊँगा
खोज रहा हूँ सुख को मैं भी गली-गली जा के पंकज
रूठ गया है जो मुझसे वो यार कहाँ से लाऊँगा
पास मोहब्बत है मेरे तकरार कहाँ से लाऊँगा
नफरत जो सिखलाये वो किरदार कहाँ से लाऊँगा
12 टिप्पणियाँ:
जो करना है इस दुनिया में मुझे अकेले करना है
साथ मेरा देने वाले दो-चार कहाँ से लाऊँगा
बहुत सुन्दर गज़ल..हरेक शेर लाज़वाब ..आभार
खोज रहा हूँ सुख को मैं भी गली-गली जा के पंकज
रूठ गया है जो मुझसे वो यार कहाँ से लाऊँगा
पास मोहब्बत है मेरे तकरार कहाँ से लाऊँगा
नफरत जो सिखलाये वो किरदार कहाँ से लाऊँगा
बहुत ही शानदार गज़ल्।
कहां-कहां से ले आते हैं आप यह जज्बात और अंदाज.
पास मोहब्बत है मेरे तकरार कहाँ से लाऊँगा
नफरत जो सिखलाये वो किरदार कहाँ से लाऊँगा
वाह जी वाह क्या बात हे बहुत सुंदर गजल.
धन्यवाद
सुन्दर गज़ल.....लाज़वाब शेर...बहुत पसन्द आया
सुन्दर अशआर !
असफलताएँ, पीड़ा, आँसू ये सब हैं त्यौहार मेरे
इनसे हट कर और नये त्यौहार कहाँ से लाऊँगा
खोज रहा हूँ सुख को मैं भी गली-गली जा के पंकज
रूठ गया है जो मुझसे वो यार कहाँ से लाऊँगा
..... वाह!
फितर को फितरत - ठीक कर लें
मैं तेरी महफ़िल में आया यह मेरी मज़बूरी थी
लेकिन मेरा दिल है इक खुद्दार कहाँ से लाऊँगा
ये शेर ठीक नहीं लग रहा है
भैया कमाल है ये ग़ज़ल, सीधे सादे शब्द और गहरे भाव.... आभार... प्रणाम.
पास मोहब्बत है मेरे तकरार कहाँ से लाऊँगा
नफरत जो सिखलाये वो किरदार कहाँ से लाऊँगा
जो कुछ है वो दिल है मेरा यही सौंपता हूँ तुमको
इससे बढ़ कर अब कोई उपहार कहाँ से लाऊँगा
बहुत खूबसूरत गज़ल ..
असफलताएँ, पीड़ा, आँसू ये सब हैं त्यौहार मेरे
इनसे हट कर और नये त्यौहार कहाँ से लाऊँगा...
ये दर्द , पीड़ा शब्दों में बंधी तब ही तो इतनी खूबसूरत ग़ज़ल बनी ...!
... aabhaar !!!
पंकज जी, आपकी भावनाएं मन को छू गयीं, बधाई स्वीकार करें।
---------
आपका सुनहरा भविष्यफल, सिर्फ आपके लिए।
खूबसूरत क्लियोपेट्रा के बारे में आप क्या जानते हैं?
bahut hi badiya likha hai aapne...
mere blog par bhi kabhi aaiye waqt nikal kar..
Lyrics Mantra
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