''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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खरी-खरी जो कहता होगा... मुसीबत में तेरी दुआ काम आई

>> Sunday, January 2, 2011

(१)

मैं कलम हूँ  ज़िंदगी का सार लिखता हूँ
देखता हूँ जो वही संसार लिखता हूँ

फिक्र है मुझको मेरे किरदार की यारो
इसलिये सच्चाइयाँ हर बार लिखता हूँ

ज़िंदगी है जंग इसको जीत जाऊँगा 
हर सुबह खुद को ही मैं तैयार लिखता हूँ

लोग नफ़रत के भंवर में डूब जाते हैं
मैं मुहब्बत की नदी को पार लिखता हूँ

पत्थरों के इस नगर में खोजता हूँ दिल
आँसुओं को खामखा बेकार लिखता हूँ

(२)

मुसीबत में तेरी दुआ काम आई
ये दौलत हमारे सदा काम आई

संभाला है मुझको मोहब्बत ने हरदम
अगर ये ख़ता है, ख़ता काम आई

जो रूठा हुआ था वो अब लौट आया
मेरे दिल की सच्ची सदा काम आई

जो करते थे नफ़रत हुए हैं दिवाने 
मोहब्बत की अपनी अदा काम आई

11 टिप्पणियाँ:

Er. सत्यम शिवम January 2, 2011 at 7:52 AM  

बहुत ही सुंदर कविता.....
*गद्य-सर्जना*:- जीवन की परिभाषा (आत्मदर्शन)

राज भाटिय़ा January 2, 2011 at 8:54 AM  

मुसीबत में तेरी दुआ काम आई
ये दौलत हमारे सदा काम आई....
वाह वाह जी, सच हे दुआ से बढ कर कोई दोलत नही, धन्यवाद

आप को ओर आप के परिवार को इस नये वर्ष की शुभकामनाऎं

Rahul Singh January 2, 2011 at 9:17 AM  

असर बना रहे आपकी अदाओं का.

फ़िरदौस ख़ान January 2, 2011 at 8:37 PM  

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...

निर्मला कपिला January 2, 2011 at 9:47 PM  

दोनो गज़लें बहुत अच्छी लगी। बधाई आपको।

vandana gupta January 3, 2011 at 12:07 AM  

सुन्दर गज़लें।

Creative Manch January 3, 2011 at 5:47 AM  

ज़िंदगी है जंग इसको जीत जाऊँगा
हर सुबह खुद को ही मैं तैयार लिखता हूँ
वाह! बहुत खूब!
..........

'मुसीबत में तेरी दुआ काम आई
ये दौलत हमारे सदा काम आई'

बहुत उम्दा!

ग़ज़ल दोनों ही अच्छी हैं.

Priti Krishna January 3, 2011 at 8:44 AM  

महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्‍वविद्यालय, वर्धा के ब्लॉग हिन्दी विश्‍व पर राजकिशोर के ३१ डिसेंबर के 'एक सार्थक दिन' शीर्षक के एक पोस्ट से ऐसा लगता है कि प्रीति सागर की छीनाल सस्कृति के तहत दलाली का ठेका राजकिशोर ने ही ले लिया है !बहुत ही स्तरहीन , घटिया और बाजारू स्तर की पोस्ट की भाषा देखिए ..."पुरुष और स्त्रियाँ खूब सज-धज कर आए थे- मानो यहां स्वयंवर प्रतियोगिता होने वाली ..."यह किसी अंतरराष्ट्रीय स्तर के विश्‍वविद्यालय के औपचारिक कार्यक्रम की रिपोर्टिंग ना होकर किसी छीनाल संस्कृति के तहत चलाए जाने वाले कोठे की भाषा लगती है ! क्या राजकिशोर की माँ भी जब सज कर किसी कार्यक्रम में जाती हैं तो किसी स्वयंवर के लिए राजकिशोर का कोई नया बाप खोजने के लिए जाती हैं !

Dr. Zakir Ali Rajnish January 4, 2011 at 3:59 AM  

पंकज जी, बहुत ही प्‍यारी गजल लिख गयी है इसी बहाने।

---------
मिल गया खुशियों का ठिकाना।
वैज्ञानिक पद्धति किसे कहते हैं?

महेन्‍द्र वर्मा January 4, 2011 at 6:04 AM  

मैं कलम हूँ ज़िंदगी का सार लिखता हूँ
देखता हूँ जो वही संसार लिखता हूँ

फिक्र है मुझको मेरे किरदार की यारो
इसलिये सच्चाइयाँ हर बार लिखता हूँ

शानदार ग़ज़लें।
प्रत्येक शे‘र प्रशंसनीय है।
अर्थपूर्ण लेखन का उत्कृष्ट उदाहरण।

बधाई, पंकज जी।

Sushant Jain February 11, 2011 at 11:46 AM  

achi gazhale hain pahli vali ka matla dl ko choo gaya...


Indian Sushant

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