खरी-खरी जो कहता होगा... मुसीबत में तेरी दुआ काम आई
>> Sunday, January 2, 2011
(१)
मैं कलम हूँ ज़िंदगी का सार लिखता हूँ
देखता हूँ जो वही संसार लिखता हूँ
फिक्र है मुझको मेरे किरदार की यारो
इसलिये सच्चाइयाँ हर बार लिखता हूँ
ज़िंदगी है जंग इसको जीत जाऊँगा
हर सुबह खुद को ही मैं तैयार लिखता हूँ
लोग नफ़रत के भंवर में डूब जाते हैं
मैं मुहब्बत की नदी को पार लिखता हूँ
पत्थरों के इस नगर में खोजता हूँ दिल
आँसुओं को खामखा बेकार लिखता हूँ
(२)
मुसीबत में तेरी दुआ काम आई
ये दौलत हमारे सदा काम आई
संभाला है मुझको मोहब्बत ने हरदम
अगर ये ख़ता है, ख़ता काम आई
जो रूठा हुआ था वो अब लौट आया
मेरे दिल की सच्ची सदा काम आई
जो करते थे नफ़रत हुए हैं दिवाने
मोहब्बत की अपनी अदा काम आई
11 टिप्पणियाँ:
बहुत ही सुंदर कविता.....
*गद्य-सर्जना*:- जीवन की परिभाषा (आत्मदर्शन)
मुसीबत में तेरी दुआ काम आई
ये दौलत हमारे सदा काम आई....
वाह वाह जी, सच हे दुआ से बढ कर कोई दोलत नही, धन्यवाद
आप को ओर आप के परिवार को इस नये वर्ष की शुभकामनाऎं
असर बना रहे आपकी अदाओं का.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...
दोनो गज़लें बहुत अच्छी लगी। बधाई आपको।
सुन्दर गज़लें।
ज़िंदगी है जंग इसको जीत जाऊँगा
हर सुबह खुद को ही मैं तैयार लिखता हूँ
वाह! बहुत खूब!
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'मुसीबत में तेरी दुआ काम आई
ये दौलत हमारे सदा काम आई'
बहुत उम्दा!
ग़ज़ल दोनों ही अच्छी हैं.
महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के ब्लॉग हिन्दी विश्व पर राजकिशोर के ३१ डिसेंबर के 'एक सार्थक दिन' शीर्षक के एक पोस्ट से ऐसा लगता है कि प्रीति सागर की छीनाल सस्कृति के तहत दलाली का ठेका राजकिशोर ने ही ले लिया है !बहुत ही स्तरहीन , घटिया और बाजारू स्तर की पोस्ट की भाषा देखिए ..."पुरुष और स्त्रियाँ खूब सज-धज कर आए थे- मानो यहां स्वयंवर प्रतियोगिता होने वाली ..."यह किसी अंतरराष्ट्रीय स्तर के विश्वविद्यालय के औपचारिक कार्यक्रम की रिपोर्टिंग ना होकर किसी छीनाल संस्कृति के तहत चलाए जाने वाले कोठे की भाषा लगती है ! क्या राजकिशोर की माँ भी जब सज कर किसी कार्यक्रम में जाती हैं तो किसी स्वयंवर के लिए राजकिशोर का कोई नया बाप खोजने के लिए जाती हैं !
पंकज जी, बहुत ही प्यारी गजल लिख गयी है इसी बहाने।
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मिल गया खुशियों का ठिकाना।
वैज्ञानिक पद्धति किसे कहते हैं?
मैं कलम हूँ ज़िंदगी का सार लिखता हूँ
देखता हूँ जो वही संसार लिखता हूँ
फिक्र है मुझको मेरे किरदार की यारो
इसलिये सच्चाइयाँ हर बार लिखता हूँ
शानदार ग़ज़लें।
प्रत्येक शे‘र प्रशंसनीय है।
अर्थपूर्ण लेखन का उत्कृष्ट उदाहरण।
बधाई, पंकज जी।
achi gazhale hain pahli vali ka matla dl ko choo gaya...
Indian Sushant
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