पुणे में हत्यारी पुलिस तीन लोगों की जान ले लेती है. इसी तरह के मंज़र कहीं भी देखे जा सकते हैं. मन विचलित हो जाता है यह सब देख कर. हम १५ अगस्त को अपनी आज़ादी की वर्षगाँठ मनाएंगे, लेकिन क्या सचमुच आज़ाद हो गए है? नंगे घूमने के लिए आजाद हैं, घोटाले लिए करने के आज़ाद हैं, लेकिन सत्ता अगर गलत कर रही है, तो उसका विरोध नहीं कर सकते. और कहते हैं कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र हमारा हैं. अन्ना हजारे धरना देना चाहते हैं तो पूरी दिल्ली में धरा १४४ लगा दी जाती है. क्या यह है लोकतंत्र? यह शोक्तंत्र है. बहरहाल,दो गीत
(१)
बंद करो यह गोलीबारी
कुरसी क्यों हो गई हत्यारी.
जनता का दुःख-दर्द न समझे, बस गोली से बात करे.
लोकतंत्र का जो है चाकर, वही लोक पर घात करे?
कहने को गाँधी के चेले,हत्यारे हैं खद्दरधारी...
क्या सोचा था कैसा है ये देश, हमें दुःख होता है
राजघाट पे बैठा गाँधी, रोजाना ही रोता है.
भारत माता भी रो-रो कर,
नेताओं से अब तो हारी...
बंद करो यह गोलीबारी..
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हक़ जो मांगे उनको डंडे या फिर जेल दिखाते है.
क्यों जनता के लोग यहाँ, इतने निर्मम हो जाते है.
जनता राजा थी लेकिन अब, हो गई है बिलकुल बेचारी.
बंद करो यह गोलीबारी ..........
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सच कहना अब पाप हो गया, चुप्पी का अभिनन्दन है,
छद्मश्री को पद्मश्री है, सच के हिस्से क्रंदन है.
राजघाट पे बैठा गाँधी, रोजाना ही रोता है.
भारत माता भी रो-रो कर,
नेताओं से अब तो हारी...
बंद करो यह गोलीबारी..
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हक़ जो मांगे उनको डंडे या फिर जेल दिखाते है.
क्यों जनता के लोग यहाँ, इतने निर्मम हो जाते है.
जनता राजा थी लेकिन अब, हो गई है बिलकुल बेचारी.
बंद करो यह गोलीबारी ..........
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सच कहना अब पाप हो गया, चुप्पी का अभिनन्दन है,
छद्मश्री को पद्मश्री है, सच के हिस्से क्रंदन है.
किसको दोष यहाँ दे बोलो, अपनी ही गलती है सारी.
बंद करो यह गोलीबारीकुरसी क्यों हो गई हत्यारी.
(2)
कैसा है ये लोकतंत्र, हम गोली खा कर मरते हैं .
पहले से बदतर भारत को देख लोग अब डरते है.
वो था जनरल डायर जिसने, नंगा नाच दिखाया था
जलियांवालाबाग़ में जालिम ने तब लहू बहाया था..
लेकिन अब उस डायर के काले वंशज मंडराते है.
लोकतंत्र की छाती को ये उफ़ छलनी कर जाते हैं
भारत माता के वसनो को कदम-कदम ये हरते हैं.
कैसा है ये लोकतंत्र, हम गोली खा कर मरते हैं .
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जनहित में हर उठा हाथ अब, यहाँ झुकाया जाता है
हिंसा के बलबूते पर ही तंत्र चलाया जाता है.
कहने को आज़ाद हो गए, मगर सत्य यह ज़िंदा है
अपनी असफलता पर हाय, लोकतंत्र शर्मिन्दा है.
सुविधाओं के लिये लोग अब, सच कहने से बचते है
कैसा है ये लोकतंत्र, हम गोली खा कर मरते हैं
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गाँधी, क्या ये देश तुम्हारा, फिर गुलाम हो जाएगा?.
लोकतंत्र का सुंदर चेहरा, दूर कहीं खो जाएगा.
असफल सरकारों के हाथों, देश लुटा अब जाता है.
किसको हम चुन लेते है ये, देख लोक पछताता है.
अपने ही हाथो हारे हम, खुद ही आहें भरते हैं.
कैसा है ये लोकतंत्र, हम गोली खा कर मरते हैं .
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वो था जनरल डायर जिसने, नंगा नाच दिखाया था
जलियांवालाबाग़ में जालिम ने तब लहू बहाया था..
लेकिन अब उस डायर के काले वंशज मंडराते है.
लोकतंत्र की छाती को ये उफ़ छलनी कर जाते हैं
भारत माता के वसनो को कदम-कदम ये हरते हैं.
कैसा है ये लोकतंत्र, हम गोली खा कर मरते हैं .
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जनहित में हर उठा हाथ अब, यहाँ झुकाया जाता है
हिंसा के बलबूते पर ही तंत्र चलाया जाता है.
कहने को आज़ाद हो गए, मगर सत्य यह ज़िंदा है
अपनी असफलता पर हाय, लोकतंत्र शर्मिन्दा है.
सुविधाओं के लिये लोग अब, सच कहने से बचते है
कैसा है ये लोकतंत्र, हम गोली खा कर मरते हैं
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गाँधी, क्या ये देश तुम्हारा, फिर गुलाम हो जाएगा?.
लोकतंत्र का सुंदर चेहरा, दूर कहीं खो जाएगा.
असफल सरकारों के हाथों, देश लुटा अब जाता है.
किसको हम चुन लेते है ये, देख लोक पछताता है.
अपने ही हाथो हारे हम, खुद ही आहें भरते हैं.
कैसा है ये लोकतंत्र, हम गोली खा कर मरते हैं .
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ये विकास का दानव अब तो निगल रहा है गांवों को
शहरों को बर्बाद कर दिया, नष्ट कर रहे छांवों को
वो धरती अब छिनती जाती, जिसमे अन्न उगाते हैं
गोली से मरते किसान अब, हाय-हाय चिल्लाते है,
सीधे-सादे लोग मरे नित, कैसा भारत गढ़ते है.
कैसा है ये लोकतंत्र, हम गोली खा कर मरते हैं
पहले से बदतर भारत को देख लोग अब डरते है.....
शहरों को बर्बाद कर दिया, नष्ट कर रहे छांवों को
वो धरती अब छिनती जाती, जिसमे अन्न उगाते हैं
गोली से मरते किसान अब, हाय-हाय चिल्लाते है,
सीधे-सादे लोग मरे नित, कैसा भारत गढ़ते है.
कैसा है ये लोकतंत्र, हम गोली खा कर मरते हैं
पहले से बदतर भारत को देख लोग अब डरते है.....
Bahut achi lagi kavita. Aaapki to har likha shabd hi apne aap me acha hota hai.
ReplyDeleteबहुत सशक्त अभिव्यक्ति ..दोनों रचनाएँ जागरूक करने वाली ..
ReplyDeleteरक्षाबंधन की आपको बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं !
ReplyDeleteभईया,
ReplyDeleteइस सशक्त और सार्थक अभिव्यक्ति के लिए सादर नमन...
बहुत बढिया।
ReplyDeleteआज की सच्चाई
सख्त अंदाज जरूरी है
देखिए
ये कैसी जिद्द है अन्ना दा....
कहने को गाँधी के चेले , हत्यारे हैं खद्दरधारी ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया !
दोनों ही काव्य रचनाएं लाजवाब हैं...
ReplyDeleteरक्षाबंधन एवं स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
सार्थक रचनाएं.....
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.
"क्या सोचा था कैसा है ये देश, हमें दुःख होता है
ReplyDeleteराजघाट पे बैठा गाँधी, रोजाना ही रोता है.
भारत माता भी रो-रो कर,
नेताओं से अब तो हारी...
बंद करो यह गोलीबारी.."
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
नमस्कार....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लेख है आपकी बधाई स्वीकार करें
मैं आपके ब्लाग का फालोवर हूँ क्या आपको नहीं लगता की आपको भी मेरे ब्लाग में आकर अपनी सदस्यता का समावेश करना चाहिए मुझे बहुत प्रसन्नता होगी जब आप मेरे ब्लाग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँगे तो आपकी आगमन की आशा में पलकें बिछाए........
आपका ब्लागर मित्र
नीलकमल वैष्णव "अनिश"
इस लिंक के द्वारा आप मेरे ब्लाग तक पहुँच सकते हैं धन्यवाद्
1- MITRA-MADHUR: ज्ञान की कुंजी ......
2- BINDAAS_BAATEN: रक्तदान ...... नीलकमल वैष्णव
3- http://neelkamal5545.blogspot.com
बेहद सटीक और सार्थक अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
जन्माष्टमी की शुभकामनायें स्वीकार करें !
ReplyDeleteआदरणीय भाईजी गिरीश पंकज जी
ReplyDeleteसादर सस्नेहाभिवादन !
आप जैसे विशुद्ध मानव और विशुद्ध रचनाकार का अपने इर्द-गिर्द की घटनाओं-दुर्घटनाओं को देख-महसूस कर विचलित-व्यथित होना अनपेक्षित नहीं …
सच्चे रचनाकार और सच्चे इंसान का द्रवित हो जाना , और अपनी शब्द-सामर्थ्य , विचार और वाणी के द्वारा जन-जन की पीड़ा को अभिव्यक्ति देना
सहज ही है …
लेकिन अब उस डायर के काले वंशज मंडराते है.
लोकतंत्र की छाती को ये उफ़ छलनी कर जाते हैं
भारत माता के वसनो को कदम-कदम ये हरते हैं.
कैसा है ये लोकतंत्र, हम गोली खा कर मरते हैं .
बहुत बड़े हैं आपके दोनों गीत !!
हक़ जो मांगे उनको डंडे या फिर जेल दिखाते है.
क्यों जनता के लोग यहाँ, इतने निर्मम हो जाते है.
जनता राजा थी लेकिन अब, हो गई है बिलकुल बेचारी.
बंद करो यह गोलीबारी ..........
-----
सच कहना अब पाप हो गया, चुप्पी का अभिनन्दन है,
छद्मश्री को पद्मश्री है, सच के हिस्से क्रंदन है.
किसको दोष यहाँ दे बोलो, अपनी ही गलती है सारी.
बंद करो यह गोलीबारी
कुरसी क्यों हो गई हत्यारी.
नमन है आपको और आपकी लेखनी को !
मैंने भी आहत हो'कर ऐसे ही भावों को व्यक्त किया है …
मेरी ताज़ा पोस्ट पर आपका भी इंतज़ार है ,
काग़जी था शेर कल , अब भेड़िया ख़ूंख़्वार है
मेरी ग़लती का नतीज़ा ; ये मेरी सरकार है
वोट से मेरे ही पुश्तें इसकी पलती हैं मगर
मुझपे ही गुर्राए … हद दर्ज़े का ये गद्दार है
मेरी ख़िदमत के लिए मैंने बनाया ख़ुद इसे
घर का जबरन् बन गया मालिक ; ये चौकीदार है
पूरी रचना के लिए मेरे ब्लॉग पर पधारें … आपकी प्रतीक्षा रहेगी :)
विलंब से ही सही…
♥ स्वतंत्रतादिवस सहित श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार