''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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नई ग़ज़ल / मेरे हरेक दर्द ने उनको मज़ा दिया.......?

>> Friday, August 26, 2011

ब्लॉग लेखन को लेकर पहले जो उत्साह था, अब कम हुआ है.समय के साथ जड़ता-सी आ जाती है.ठहराव-सा आने लगता है. इसे आप उदासीनता भी कह सकते है. ध्यान अन्य सर्जनात्मक विधाओं पर भी लगा था, इसलिए कोइ रचना इधर दे नहीं पाया, एक पखवाड़े के बाद एक ग़ज़ल ले कर हाजिर हूँ. देखें, पसंद आये, तो लगे कि सृजन सफल हुआ.
हर दौर ने सबको यहाँ ये ही सिला दिया
सच बोलता था जो उसे फ़ौरन मिटा दिया

हम रो रहे थे पर उन्हें ये मसखरी लगी
मेरे हरेक दर्द ने उनको मज़ा दिया

भूखा बड़ा था लाल तो माँ ने गज़ब किया
रोटी की सुनाकर कथा उसको सुला दिया

पूजा से बढ़ के काम वो करता रहा सदा
जो गिर गया था राह में उसको उठा दिया

जो हो गए चमचे उन्हें सब कुछ मिला मगर
खुद्दार को तो रास्ते से ही हटा दिया

'मै हूँ ईमानदार' ये नेता ने जब कहा
उसकी जरा-सी बात ने हमको हँसा दिया

झुकने का तो सवाल नहीं मार दो हमें
पंकज ने शातिरों को खुलक्रर बता दिया

11 टिप्पणियाँ:

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') August 26, 2011 at 7:41 AM  

भूखा बड़ा था लाल तो माँ ने गज़ब किया
रोटी की सुनाकर कथा उसको सुला दिया

वाह भईया...
एक एक शेर मानों चुने हुए मोती हैं...
बहुत सुन्दर और सार्थक ग़ज़ल...
सादर प्रणाम..

संगीता स्वरुप ( गीत ) August 26, 2011 at 8:08 AM  

हम रो रहे थे पर उन्हें ये मसखरी लगी
मेरे हरेक दर्द ने उनको मज़ा दिया

संवेदनशील पंक्तियाँ



'मै हूँ ईमानदार' ये नेता ने जब कहा
उसकी जरा-सी बात ने हमको हँसा दिया
अच्छा व्यंग है

डॉ.मीनाक्षी स्वामी Meenakshi Swami August 26, 2011 at 9:46 AM  

"'मै हूँ ईमानदार' ये नेता ने जब कहा
उसकी जरा-सी बात ने हमको हँसा दिया"
बहुत खूब !

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार August 26, 2011 at 10:21 AM  

बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल है गिरीश भाई जी !

एक एक शे'र कमाल का है …

पूरी ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद !

वन्दना अवस्थी दुबे August 26, 2011 at 10:47 AM  

हम रो रहे थे पर उन्हें ये मसखरी लगी
मेरे हरेक दर्द ने उनको मज़ा दिया
बहुत खूब गिरीश जी.

Unknown August 26, 2011 at 7:59 PM  

हम रो रहे थे पर उन्हें ये मसखरी लगी
मेरे हरेक दर्द ने उनको मज़ा दिया


हम रो रहे थे पर उन्हें ये मसखरी लगी
मेरे हरेक दर्द ने उनको मज़ा दिया

बहुत खूब गिरीश जी

Kunwar Kusumesh August 26, 2011 at 8:19 PM  

अच्छे शेर कहे हैं.बधाई.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' August 27, 2011 at 12:10 AM  

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा

Ojaswi Kaushal August 27, 2011 at 4:47 AM  

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Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" August 27, 2011 at 6:45 AM  

हर दौर ने सबको यहाँ ये ही सिला दिया

सच बोलता था जो उसे फ़ौरन मिटा दिया




हम रो रहे थे पर उन्हें ये मसखरी लगी

मेरे हरेक दर्द ने उनको मज़ा दिया

bhavmayi..dil ko choo lene wali shandar ghazal..aapse mulakat ka ye pahla mauka hai..charcha manch ko dhanyawad aaur apne blog per sadar amantran ke sath

vidhya August 27, 2011 at 7:15 AM  

अच्छे शेर कहे हैं.बधाई.

सुनिए गिरीश पंकज को

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