खून का जैसे समन्दर गया है
आदमी कितना भयंकर बन गया है
मर रहे विस्फोट में नित आदमी
रक्तरंजित आज मंजर बन गया है
हाथ को बांधे हुए है आज दिल्ली
देश का ये क्या मुकद्दर बन गया है
कब तलक दिल्ली नपुंसक-सी रहेगी?
कौन है, क्या ''पाक'' से वो डर गया है?
खून करना क्या जिहादी काम है?
धर्म भी अब हाय बर्बर बन गया है
सिर्फ पागलपन में हत्याएं हुई हैं
मज़हबी? कितना सितमगर बन गया है
अब तलक ज़िंदा यहाँ आतंक है?
देश मेरा माफियाघर बन गया है
जान लेते लोग अपनों की यहाँ पर
आदमी कैसा 'जनावर' बन गया है
'पाप' कर के हाथ जोड़े या खुदा
आदमी क्या एक जोकर बन गया है
शर्म दिल्ली अब करो कुछ शर्म तुम
बस घडा है पाप का ये भर गया है
पाप' कर के हाथ जोड़े या खुदा
ReplyDeleteआदमी क्या एक जोकर बन गया hai.
vakai..
sharm bhi ab inko aati nahi hai.
dheet is kadar ye vatan ho gaya hai.
♥
ReplyDeleteआदरणीय गिरीश जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
अच्छी रचना है…
जान लेते लोग अपनों का यहाँ पर
आदमी कैसा 'जनावर' बन गया है
'जनावर' का प्रयोग बहुत भाया ।
पूरी रचना में भाव शिल्प पर भारी हैं … बधाई !
शर्म दिल्ली अब करो कुछ शर्म तुम
बस घडा है पाप ये भर गया है
मैंने भी लिखा था -
ऐ दिल्ली वाली सरकार !
आतंकी-गद्दारों की
मेवों से करती मनुहार !
भारत मां के बेटों का
करना चाहो नरसंहार !
सौ धिक्कार ! सौ धिक्कार !
इस लिंक द्वारा अवश्य देखें ।
… और, अंत में आपको सपरिवार
बीते हुए हर पर्व-त्यौंहार सहित
आने वाले सभी उत्सवों-मंगलदिवसों के लिए
♥ हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
सही सवाल है आपका और उत्तर भी दे दिया .
ReplyDelete…और हां ,
ReplyDeleteमेरी नवीनतम पोस्ट पर भी आपकी प्रतीक्षा है…
यहां हैं दो राष्ट्रभक्ति रचनाएं
… एक सूचना के साथ !
खून करना क्या जिहादी काम है?
ReplyDeleteधर्म भी अब हाय बर्बर बन गया है
वह गिरीश जी बेहद खूबसूरत शेर लिखे है . काव्य की उत्क्रिस्ट कृति बधाई
बहुत खूब पंकज भाई !
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
बेजोड़ रचना...
ReplyDeleteनीरज
यह दुहराव इतनी बार हुआ कि कोई प्रतिक्रिया देना बेमानी सा लगता है , अब तो बस कुछ कर ही दिखाया जाये!
ReplyDeleteसच को रेखांकित करती रचना....
ReplyDeleteजन जन आक्रोश है भईया आपकी रचना....
ReplyDeleteसादर प्रणाम...