''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
&COPY गिरीश पंकज संपादक सदभावना दर्पण. Powered by Blogger.

गीत / ब्लाग, फेसबुक, ट्विटर आदि, हैं सुन्दर उपहार....

>> Friday, October 28, 2011

इंटरनेट के ज़रिये हम सब वैश्विक हो गए हैं. दुनिया के लोगों से हमारा रिश्ता-सा बनता जा रहा है. एक नईदुनिया में हम सांस ले रहे है. नेट के माध्यम से जो हमें अनेक अभिव्यक्ति-मंच मिले हैं, उनका इस्तेमाल कर के लोग अपनी भावनाएं व्यक्त कर रहे है. इन सबको ले कर मन में एक गीत उमड़ा, उसे आपकी खिदमत में पेश कर रहा हूँ. इसे मैं 'फेसबुक' की ''वाल' पर भी 'पोस्ट' किया है.
 
बढ़ता जाए प्रतिपल अपना,सकल विश्व-परिवार,

ब्लाग, फेसबुक, ट्विटर आदि, हैं सुन्दर उपहार....  
जब तक ज़िंदा हैं दुनिया में, बाँटें सबको प्यार.
सबकी 'वाल' सजाएँ हम सब, खींचें ना 'दीवार'.
 
'इंटरनेट' बना है अपनी अभिव्यक्ति का साधन,
मित्रभाव से जुड़ते सारे, काम बड़ा मनभावन.
जाति, धर्म औ पंथ से ऊपर, उठ कर हो व्यवहार...
 
अपने मन की बातें सबसे, बाँट रहे हैं लोग.
बिछुड़े साथी भी मिल जाते, बन जाता संयोग.
घर बैठे हम जीत रहे हैं, यह सुन्दर संसार...
 
सब जन यहाँ बराबर दिखते, प्रेमभाव से रहते.
एक राह के हम सब राही, अपने सुख-दुख कहते.
यही मनुजता है समरसता, दुनिया को उपहार....
 
बात न कोई गलत कहें हम, दिल न कभी दुखाएं.
बात न बिगड़े भूले से भी, बिगड़ी बात बनाएं.
'विश्वग्राम' के हम रहवासी, व्यापक बने विचार....
 
बढ़ता जाए प्रतिपल अपना,सकल विश्व-परिवार,

ब्लाग, फेसबुक, ट्विटर आदि, हैं सुन्दर उपहार....  

7 टिप्पणियाँ:

Gyan Darpan October 29, 2011 at 1:53 AM  

वाह! बढ़िया रचना|
Gyan Darpan
RajputsParinay

vandana gupta October 29, 2011 at 2:08 AM  

सुन्दर रचना।

shikha varshney October 29, 2011 at 3:09 AM  

वाकई सुन्दर उपहार हैं ये.आभार सुन्दर रचना का.

आकाश सिंह October 29, 2011 at 5:59 AM  

वाह क्या बात है ...बहुत भावपूर्ण रचना.
कभी समय मिले तो http://akashsingh307.blogspot.com ब्लॉग पर भी अपने एक नज़र डालें .फोलोवर बनकर उत्सावर्धन करें .. धन्यवाद .

संगीता स्वरुप ( गीत ) October 29, 2011 at 10:07 PM  

सटीक प्रस्तुति

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') October 30, 2011 at 4:57 AM  

वाह भईया....
बहुत सुन्दर गीत...
सादर....

महेन्‍द्र वर्मा October 30, 2011 at 5:39 AM  

अपने मन की बातें सबसे, बाँट रहे हैं लोग.
बिछुड़े साथी भी मिल जाते, बन जाता संयोग.
घर बैठे हम जीत रहे हैं, यह सुन्दर संसार...

क्या बात है...बढि़या रचना।
मेरा एक शिष्य 25 साल बाद मिला, फेसबुक में।

सुनिए गिरीश पंकज को

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