इंटरनेट के ज़रिये हम सब वैश्विक हो गए हैं. दुनिया के लोगों से हमारा रिश्ता-सा बनता जा रहा है. एक नईदुनिया में हम सांस ले रहे है. नेट के माध्यम से जो हमें अनेक अभिव्यक्ति-मंच मिले हैं, उनका इस्तेमाल कर के लोग अपनी भावनाएं व्यक्त कर रहे है. इन सबको ले कर मन में एक गीत उमड़ा, उसे आपकी खिदमत में पेश कर रहा हूँ. इसे मैं 'फेसबुक' की ''वाल' पर भी 'पोस्ट' किया है.
बढ़ता जाए प्रतिपल अपना,सकल विश्व-परिवार,
ब्लाग, फेसबुक, ट्विटर आदि, हैं सुन्दर उपहार....
जब तक ज़िंदा हैं दुनिया में, बाँटें सबको प्यार.
सबकी 'वाल' सजाएँ हम सब, खींचें ना 'दीवार'.
'इंटरनेट' बना है अपनी अभिव्यक्ति का साधन,
मित्रभाव से जुड़ते सारे, काम बड़ा मनभावन.
जाति, धर्म औ पंथ से ऊपर, उठ कर हो व्यवहार...
अपने मन की बातें सबसे, बाँट रहे हैं लोग.
बिछुड़े साथी भी मिल जाते, बन जाता संयोग.
घर बैठे हम जीत रहे हैं, यह सुन्दर संसार...
सब जन यहाँ बराबर दिखते, प्रेमभाव से रहते.
एक राह के हम सब राही, अपने सुख-दुख कहते.
यही मनुजता है समरसता, दुनिया को उपहार....
बात न कोई गलत कहें हम, दिल न कभी दुखाएं.
बात न बिगड़े भूले से भी, बिगड़ी बात बनाएं.
'विश्वग्राम' के हम रहवासी, व्यापक बने विचार....
बढ़ता जाए प्रतिपल अपना,सकल विश्व-परिवार,
ब्लाग, फेसबुक, ट्विटर आदि, हैं सुन्दर उपहार....
7 टिप्पणियाँ:
वाह! बढ़िया रचना|
Gyan Darpan
RajputsParinay
सुन्दर रचना।
वाकई सुन्दर उपहार हैं ये.आभार सुन्दर रचना का.
वाह क्या बात है ...बहुत भावपूर्ण रचना.
कभी समय मिले तो http://akashsingh307.blogspot.com ब्लॉग पर भी अपने एक नज़र डालें .फोलोवर बनकर उत्सावर्धन करें .. धन्यवाद .
सटीक प्रस्तुति
वाह भईया....
बहुत सुन्दर गीत...
सादर....
अपने मन की बातें सबसे, बाँट रहे हैं लोग.
बिछुड़े साथी भी मिल जाते, बन जाता संयोग.
घर बैठे हम जीत रहे हैं, यह सुन्दर संसार...
क्या बात है...बढि़या रचना।
मेरा एक शिष्य 25 साल बाद मिला, फेसबुक में।
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