''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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नई ग़ज़ल / जो झुकता है बड़े अदब से सचमुच वो इनसान बड़ा है..

>> Tuesday, December 13, 2011

जिसे सीखने की है ख्वाहिश इक दिन वो परवान चढ़ा है
जो झुकता है बड़े अदब से सचमुच वो इनसान बड़ा है

जो बेमतलब तने रहेंगे इक दिन टूटेंगे आखिर

वही गिरा है बीच राह में बेतलब जो यहाँ अड़ा है

प्यार-मोहब्बत बाँटो सबको लेकिन ज़्यादा ज्ञान न दो

वही छलकता है कुछ ज्यादा खाली-खाली अगर घडा है


पत्थर था वो छेनी खा कर आज देवता बन बैठा
जो बचता है बेचारा वो धूल फाँकता दूर पडा है

कौन भला उसको रोकेगा उसकी जीत तो निश्चित है

दुनिया से पहले वो खुद से रोज़ाना ही खूब लड़ा है

अपनी झूठी शान में आ कर हमने देखा है पंकज

बरसों पहले जहाँ खडा था बंदा आखिर वहीं खडा है

16 टिप्पणियाँ:

Unknown December 13, 2011 at 5:43 AM  

वाह बेहद खूबसूरत ग़ज़ल, अभिवादन गिरीश जी

Anamikaghatak December 13, 2011 at 7:16 AM  

bahut hi badhiya gazal....abhar

मुकेश कुमार यादव December 13, 2011 at 7:25 AM  

आदरणीय ,गिरीश पंकज सर जी!

आज इस गजल को मैने पढा और कल मै काँलेज मे अपने दोस्तो को भी पढने के लिये कहूंगा ,एक ऐसी रचना जो झकझोरती है , एक ऐसी गजल और लिखीये जो लोगे या विद्यार्थी जो निराश हो जाते हैँ उनका उत्साह वर्धन करे ।

आपका अपना
मुकेश यादव
रुङकी

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') December 13, 2011 at 7:33 AM  

जो झुकता है बड़े अदब से सचमुच वो इनसान बड़ा है....
वाह! भईया.... कितना खुबसूरत ग़ज़ल है....
सादर प्रणाम...

Pallavi saxena December 13, 2011 at 8:06 AM  

पत्थर था वो छेनी खा कर आज देवता बन बैठा
जो बचता है बेचारा वो धूल फाँकता दूर पडा है
वाह क्या बात है अंकल बहुत खूबसूरत एवं सार्थक अभिव्यक्ति समय मिले कभी तो आयेगा मेरे दोनों ब्लोगस पर
http://mhare-anubhav.blogspot.com/ और दूसरा है
http://aapki-pasand.blogspot.com/
दोनों पर आपका हार्दिक स्वागत है

Vivek K Gupta December 13, 2011 at 8:44 AM  

har vyakti ko is ghazal ko padhne ka mouka mile...
bahut khub, sir ji...

virendra sharma December 13, 2011 at 10:34 AM  

बेहतरीन ग़ज़ल .हर अशआर काबिले दाद खूबसूरत अर्थ पूर्ण सीख देता सच बोलता .

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) December 13, 2011 at 8:20 PM  

हर शेर बेहतरीन...बढ़िया गज़ल...

NKC December 13, 2011 at 10:10 PM  

bahut khubsurat gazal likhi hai aur badi khubsurat baatein kahi hai.

शारदा अरोरा December 13, 2011 at 10:23 PM  

behtareen ...

arbind ankur December 14, 2011 at 3:55 AM  

bahut sundar ghazal, badhaee.
arvind ankur

Prakash Jain December 14, 2011 at 6:17 AM  

Bahut sundar evam satik bhavon se bhari sachhchai kehti gazal...

www.poeticprakash.com

शरद सिन्हा December 14, 2011 at 7:24 AM  

अच्छी लगी.

समयचक्र December 14, 2011 at 10:14 PM  

badhiya prastuti...abhaar

शारदा अरोरा April 9, 2012 at 1:24 AM  

badhiya lagi gazal

Unknown September 10, 2013 at 11:26 PM  


बहुत अच्छी रचना ! बधाई स्वीकार करें !

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