Tuesday, December 13, 2011

नई ग़ज़ल / जो झुकता है बड़े अदब से सचमुच वो इनसान बड़ा है..

जिसे सीखने की है ख्वाहिश इक दिन वो परवान चढ़ा है
जो झुकता है बड़े अदब से सचमुच वो इनसान बड़ा है

जो बेमतलब तने रहेंगे इक दिन टूटेंगे आखिर

वही गिरा है बीच राह में बेतलब जो यहाँ अड़ा है

प्यार-मोहब्बत बाँटो सबको लेकिन ज़्यादा ज्ञान न दो

वही छलकता है कुछ ज्यादा खाली-खाली अगर घडा है


पत्थर था वो छेनी खा कर आज देवता बन बैठा
जो बचता है बेचारा वो धूल फाँकता दूर पडा है

कौन भला उसको रोकेगा उसकी जीत तो निश्चित है

दुनिया से पहले वो खुद से रोज़ाना ही खूब लड़ा है

अपनी झूठी शान में आ कर हमने देखा है पंकज

बरसों पहले जहाँ खडा था बंदा आखिर वहीं खडा है

16 comments:

  1. वाह बेहद खूबसूरत ग़ज़ल, अभिवादन गिरीश जी

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  2. आदरणीय ,गिरीश पंकज सर जी!

    आज इस गजल को मैने पढा और कल मै काँलेज मे अपने दोस्तो को भी पढने के लिये कहूंगा ,एक ऐसी रचना जो झकझोरती है , एक ऐसी गजल और लिखीये जो लोगे या विद्यार्थी जो निराश हो जाते हैँ उनका उत्साह वर्धन करे ।

    आपका अपना
    मुकेश यादव
    रुङकी

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  3. जो झुकता है बड़े अदब से सचमुच वो इनसान बड़ा है....
    वाह! भईया.... कितना खुबसूरत ग़ज़ल है....
    सादर प्रणाम...

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  4. पत्थर था वो छेनी खा कर आज देवता बन बैठा
    जो बचता है बेचारा वो धूल फाँकता दूर पडा है
    वाह क्या बात है अंकल बहुत खूबसूरत एवं सार्थक अभिव्यक्ति समय मिले कभी तो आयेगा मेरे दोनों ब्लोगस पर
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/ और दूसरा है
    http://aapki-pasand.blogspot.com/
    दोनों पर आपका हार्दिक स्वागत है

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  5. har vyakti ko is ghazal ko padhne ka mouka mile...
    bahut khub, sir ji...

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  6. बेहतरीन ग़ज़ल .हर अशआर काबिले दाद खूबसूरत अर्थ पूर्ण सीख देता सच बोलता .

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  7. bahut khubsurat gazal likhi hai aur badi khubsurat baatein kahi hai.

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  8. bahut sundar ghazal, badhaee.
    arvind ankur

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  9. Bahut sundar evam satik bhavon se bhari sachhchai kehti gazal...

    www.poeticprakash.com

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