हमने माना यार ज़माना ठीक नहीं
फिर भी ये सब झूठ-बहाना ठीक नहीं
जहाँ हमारे जाने से बेचैनी हो
वहाँ कभी भी आना-जाना ठीक नहीं
दिल देने से पहले सोच लिया होता
बाद में फिर बैठे पछताना ठीक नहीं
कुछ उसूल होते हैं यारो महफ़िल के
बिन बोले यूं छोड़ के जाना ठीक नहीं
लूटा और खसोटा अपने लोगों को
पाप है ऐसी दौलत पाना ठीक नहीं
सुनकर मन ही मन खुश होते लोग यहाँ
दर्द किसी को भी बतलाना ठीक नहीं
जितना भी कुछ पाया उसमें मगन रहो
रोज़-रोज़ का रोना-गाना ठीक नहीं
अपने तो हैं लेकिन काम नहीं आते
खाली-पीली नाम गिनाना ठीक नहीं
कहते हो तो करके भी दिखलाओ ना
बस यूं ही उपदेश पिलाना ठीक नहीं
हम बंजारे ठहरे यायावर हैं हम
अपना कोई एक ठिकाना ठीक नहीं
अगर गिरा है कोई उसे उठा लेना
उस पर हँसना या मुसकाना ठीक नहीं
प्यार अगर है तो हमसे तुम बोलो ना
दिल में क्या है इसे छिपाना ठीक नहीं
पोल पोल होती है इक दिन खुलती है
अच्छाई का स्वांग रचाना ठीक नहीं
सबसे मिलना प्यार-मोहब्बत से पंकज
क्या अपना औ क्या बेगाना ठीक नहीं
सब ही पंक्तियाँ एक से बढ़ कर एक है ,मुझे जो विशेष पसंद आई वो ये है......सुनकर मन ही मन खुश होते लोग यहाँ
ReplyDeleteदर्द किसी को भी बतलाना ठीक नहीं
जितना भी कुछ पाया उसमें मगन रहो
रोज़-रोज़ का रोना-गाना ठीक नहीं
अपने तो हैं लेकिन काम नहीं आते
खाली-पीली नाम गिनाना ठीक नहीं
कहते हो तो करके भी दिखलाओ ना
बस यूं ही उपदेश पिलाना ठीक नहीं
जहाँ हमारे जाने से बेचैनी हो
ReplyDeleteवहाँ कभी भी आना-जाना ठीक नहीं
खुबसूरत ग़ज़ल , मुबारक हो
Bahut hi khubsurat sir...behtareen...
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