''सद्भावना दर्पण'

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मै जन्म नहीं ले पाई लेकिन, कल दोबारा आऊँगी......

>> Tuesday, January 24, 2012

 'विश्व कन्या दिवस' पर एक गीत पेश है. कन्या भ्रूण हत्या पर लिखा है. देखें शायद आपको पसंद आ जाये. 

मै जन्म नहीं ले पाई लेकिन, कल दोबारा आऊँगी,
कितना कुछ कर सकती थी ये दुनिया को बतलाऊंगी..

मैं दुर्गा, काली, लक्ष्मी हूँ और गंगा जैसी निर्मल हूँ.
ज्ञान की देवी कहलाती मैं नवल-धवल-सी उज्ज्वल हूँ.
मैं वीर-प्रसूता नारी हूँ, प्रतिपल इतिहास बनाऊँगी...

मत समझो मुझको तुम निर्बल, मैं सृष्टि की उन्नायक हूँ.
करना मुझ पर थोड़ा यकीन मैं सचमुच भाग्यविधायक हूँ.
मैं अंतरिक्ष तक जा पहुँची, अब बार-बार ही जाऊँगी...

है मेरा जिक्र पुराणों में, इतिहास के पन्ने पढ़ लेना.
जो मुझको मार रहे पागल, तुम उन लोगों से लड़ लेना.
मैं सर्जक हूँ, धारित्री हूँ, क्या मैं गुमनाम कहाऊँगी...

यूं पेट में मुझको मत मारो, बहार तो आखिर आने दो,
मैं भी 'आशा' और एक 'लता' हूँ, मुझको भी तुम गाने दो.
मैं वक़्त पडा तो 'झाँसी की रानी' बन कर दिखलाऊँगी....

है नवरस मेरे अंतस में, भावों का सर्जन करती हूँ.
बच्चों की खातिर जीती हूँ, मैं घर की खातिर मरती हूँ.
मैं शान बढ़ाती गृहलक्ष्मी, मैं हर पल मान बढ़ाऊंगी...
मै जन्म नहीं ले पाई लेकिन, कल दोबारा आऊँगी,
कितना कुछ कर सकती थी ये दुनिया को बतलाऊंगी..


 
 

13 टिप्पणियाँ:

Yashwant R. B. Mathur January 24, 2012 at 6:04 AM  

यूं पेट में मुझको मत मारो, बहार तो आखिर आने दो,
मैं भी 'आशा' और एक 'लता' हूँ, मुझको भी तुम गाने दो.

यह पंक्तियाँ विशेष अच्छी लगीं सर!

बेहतरीन गीत ।

सादर

***Punam*** January 24, 2012 at 10:27 AM  

बेहतरीन गीत....

संगीता स्वरुप ( गीत ) January 24, 2012 at 10:51 AM  

है नवरस मेरे अंतस में, भावों का सर्जन करती हूँ.
बच्चों की खातिर जीती हूँ, मैं घर की खातिर मरती हूँ.
मैं शान बढ़ाती गृहलक्ष्मी, मैं हर पल मान बढ़ाऊंगी...

सार्थक गीत ..

महेन्‍द्र वर्मा January 24, 2012 at 5:25 PM  

मैं भी आशा और एक लता हूँ, मुझको भी तुम गाने दो.
मैं वक़्त पडा तो झाँसी की रानी बन कर दिखलाऊँगी....

हर कन्या इन अभिलाषाओं को संजोने की अधिकारिणी है।
जनप्रेरक गीत।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') January 24, 2012 at 7:54 PM  

उत्कृष्ट गीत है भईया... वाह! वाह!
सादर प्रणाम.

Maheshwari kaneri January 24, 2012 at 11:02 PM  

है नवरस मेरे अंतस में, भावों का सर्जन करती हूँ....बहुत उत्कृष्ट भाव ..

Pallavi saxena January 25, 2012 at 6:14 AM  

सार्थक प्रस्तुति सर बहुत खूब ...

Atul Shrivastava January 25, 2012 at 12:09 PM  

बेहतरीन रचना।

गहरा संदेश।

गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं....

जय हिंद... वंदे मातरम्।

Vandana Ramasingh January 25, 2012 at 4:52 PM  

मै जन्म नहीं ले पाई लेकिन, कल दोबारा आऊँगी,
कितना कुछ कर सकती थी ये दुनिया को बतलाऊंगी..

bahut sundar bhaav

मेरा मन पंछी सा January 25, 2012 at 10:05 PM  

बहूत सुंदर बेहतरीन रचना है
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ.

Archana Chaoji January 26, 2012 at 7:49 AM  

अच्छी रचना...

Sawai Singh Rajpurohit January 30, 2012 at 7:53 AM  

बहुत सुंदर प्रस्तुति,

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया January 30, 2012 at 8:14 AM  

गिरीश जी,....बहुत खूब इस प्रेरक रचना के लिए बहुत२ बधाई स्वीकार करे,..आपके पोस्ट पर आना सार्थक रहा,रचना से पभावित होकर, मै फालोवर बन रहा हूँ आप भी बने तो मुझे हार्दिक खुशी होगी,
इसी आशय को लेकर लिखी मेरी एक पुरानी पोस्ट "वजूद" पढे,
बहुत सुंदर रचना, प्रस्तुति अच्छी लगी.,
welcome to new post --काव्यान्जलि--हमको भी तडपाओगे....

सुनिए गिरीश पंकज को

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