''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
&COPY गिरीश पंकज संपादक सदभावना दर्पण. Powered by Blogger.

नई ग़ज़ल / सुना है शख्स रोज़ाना ही त्रिफलाचूर्ण खाता है....

>> Tuesday, February 7, 2012

उर्दू साहित्य में ''हज़ल' की परम्परा है. हास्यप्रधान ग़ज़ल को हज़ल कहते है. हिन्दी में हास्य रचना के लिए शायद ऐसा कोई विशेषण नहीं है,. अगर होगा भी तो मेरी जानकारी में नहीं आया है. मैं भी हज़ल लिखना चाहता था, मगर व्यंग्य का विद्यार्थी होने के कारण हज़ल' में व्यंग्य का तड़का लग गया है. और यह हज़ल कम 'व्यंजल' हो गई, या कहें 'वजल हो गयी. 'ऐसी गजल जिस में व्यंग्य की भरमार हो, क्या उसे 'व्यंजल' या 'वजल' कहा जा सकता है? 'व्यंग्ययात्रा' के संपादक डा. प्रेम जनमेजय, श्री हरीश नवल या श्री सुभाष चंदर, जैसे व्यंग्य के गंभीर अध्येता कोई बेहतर नाम सुझा सकते है.

वो रिश्वत खूब लेता है मगर सबको पचाता है
सुना है शख्स रोज़ाना ही त्रिफलाचूर्ण खाता है

बिना खाए बेचारा एक पल भी रह नहीं सकता
न हो रिश्वत का मौक़ा तो सभी की जान खाता है

यहाँ जो भ्रष्ट है जितना वही 'अन्ना' का चेला है
 
जो 'घपलू' है सभाओं में वही 'पपलू' बिठाता है

वो हीरोइन भी गाँधीवाद के रस्ते पे चलती है
उसे तन पे अधिक कपड़ा नहीं बिलकुल सुहाता है

सुना है उसका सौहर है बड़ा अफसर तभी तो जी
हमेशा घर पे मैडम के मुफत का माल आता है

वो बचपन से हमेशा झूठ कहने में ही माहिर था
वो अपनी बस्ती का अब तो बड़ा नेता कहाता है

हमेशा लूटने की इक कला में वो लगा रहता
कभी घर पर कभी इज्ज़त पे डाका डाल आता है

वो है इक 'आदमी' जिसको यहाँ सब 'आम' कहते हैं
मगर वो 'आम' तक भी गर्मियों में खा न पाता है

है पंकज नाम उसका आम है इंसान बेचारा
जो अक्सर टूट जाते हैं वही सपने सजाता है

8 टिप्पणियाँ:

दिनेशराय द्विवेदी February 7, 2012 at 8:53 AM  

पहला शेर बहुत दमदार है।

smshindi By Sonu February 7, 2012 at 9:32 PM  

वाह ...बहुत बढि़या ...

नीरज गोस्वामी February 8, 2012 at 7:02 AM  

वो हीरोइन भी गाँधीवाद के रस्ते पे चलती है
उसे तन पे अधिक कपड़ा नहीं बिलकुल सुहाता है

वाह वाह वाह पंकज भाई बेजोड़ हज़ल...दाद कबूल करें

नीरज

Pallavi saxena February 8, 2012 at 8:10 AM  

वो है इक 'आदमी' जिसको यहाँ सब 'आम' कहते हैंमगर वो 'आम' तक भी गर्मियों में खा न पाता है।

बहुत सुंदर भाव संयोजन सर, भावपूर्ण एवं सार्थक अभिव्यक्ति....

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') February 15, 2012 at 3:04 AM  

जबरदस्त "व्यंजल" है आदरणीय गिरीश भईया...
सादर बधाई और प्रणाम.

PRAN SHARMA February 18, 2012 at 4:40 AM  

GIREESH JI , SHERON MEIN VYANGYA
KHOOB UBHRAA HAI . MAZAA AA GYAA
HAI . SHUBH KAAMNAAYEN .

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" February 22, 2012 at 8:00 AM  

वो रिश्वत खूब लेता है मगर सबको पचाता है
सुना है शख्स रोज़ाना ही त्रिफलाचूर्ण खाता है....triflachurn ka jabab nahi...wah...sadar badhayee aaur amaantran ke ssath

avanti singh February 24, 2012 at 6:11 AM  

बहुत ही बढिया लिखा आप ने ,बधाई ...

सुनिए गिरीश पंकज को

  © Free Blogger Templates Skyblue by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP