Tuesday, February 7, 2012

नई ग़ज़ल / सुना है शख्स रोज़ाना ही त्रिफलाचूर्ण खाता है....

उर्दू साहित्य में ''हज़ल' की परम्परा है. हास्यप्रधान ग़ज़ल को हज़ल कहते है. हिन्दी में हास्य रचना के लिए शायद ऐसा कोई विशेषण नहीं है,. अगर होगा भी तो मेरी जानकारी में नहीं आया है. मैं भी हज़ल लिखना चाहता था, मगर व्यंग्य का विद्यार्थी होने के कारण हज़ल' में व्यंग्य का तड़का लग गया है. और यह हज़ल कम 'व्यंजल' हो गई, या कहें 'वजल हो गयी. 'ऐसी गजल जिस में व्यंग्य की भरमार हो, क्या उसे 'व्यंजल' या 'वजल' कहा जा सकता है? 'व्यंग्ययात्रा' के संपादक डा. प्रेम जनमेजय, श्री हरीश नवल या श्री सुभाष चंदर, जैसे व्यंग्य के गंभीर अध्येता कोई बेहतर नाम सुझा सकते है.

वो रिश्वत खूब लेता है मगर सबको पचाता है
सुना है शख्स रोज़ाना ही त्रिफलाचूर्ण खाता है

बिना खाए बेचारा एक पल भी रह नहीं सकता
न हो रिश्वत का मौक़ा तो सभी की जान खाता है

यहाँ जो भ्रष्ट है जितना वही 'अन्ना' का चेला है
 
जो 'घपलू' है सभाओं में वही 'पपलू' बिठाता है

वो हीरोइन भी गाँधीवाद के रस्ते पे चलती है
उसे तन पे अधिक कपड़ा नहीं बिलकुल सुहाता है

सुना है उसका सौहर है बड़ा अफसर तभी तो जी
हमेशा घर पे मैडम के मुफत का माल आता है

वो बचपन से हमेशा झूठ कहने में ही माहिर था
वो अपनी बस्ती का अब तो बड़ा नेता कहाता है

हमेशा लूटने की इक कला में वो लगा रहता
कभी घर पर कभी इज्ज़त पे डाका डाल आता है

वो है इक 'आदमी' जिसको यहाँ सब 'आम' कहते हैं
मगर वो 'आम' तक भी गर्मियों में खा न पाता है

है पंकज नाम उसका आम है इंसान बेचारा
जो अक्सर टूट जाते हैं वही सपने सजाता है

8 comments:

  1. पहला शेर बहुत दमदार है।

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  2. वाह ...बहुत बढि़या ...

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  3. वो हीरोइन भी गाँधीवाद के रस्ते पे चलती है
    उसे तन पे अधिक कपड़ा नहीं बिलकुल सुहाता है

    वाह वाह वाह पंकज भाई बेजोड़ हज़ल...दाद कबूल करें

    नीरज

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  4. वो है इक 'आदमी' जिसको यहाँ सब 'आम' कहते हैंमगर वो 'आम' तक भी गर्मियों में खा न पाता है।

    बहुत सुंदर भाव संयोजन सर, भावपूर्ण एवं सार्थक अभिव्यक्ति....

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  5. जबरदस्त "व्यंजल" है आदरणीय गिरीश भईया...
    सादर बधाई और प्रणाम.

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  6. GIREESH JI , SHERON MEIN VYANGYA
    KHOOB UBHRAA HAI . MAZAA AA GYAA
    HAI . SHUBH KAAMNAAYEN .

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  7. वो रिश्वत खूब लेता है मगर सबको पचाता है
    सुना है शख्स रोज़ाना ही त्रिफलाचूर्ण खाता है....triflachurn ka jabab nahi...wah...sadar badhayee aaur amaantran ke ssath

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  8. बहुत ही बढिया लिखा आप ने ,बधाई ...

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