''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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नई ग़ज़ल/ जिन्हें पाला वही परिणाम यूं बदतर नहीं देते ......

>> Tuesday, March 27, 2012

कभी भी बंदरों के हाथ में पत्थर नहीं देते
बहुत जो मूर्ख होते हैं उन्हें उत्तर नहीं देते

हमेशा मौन रहना ही यहाँ अच्छी दवाई है
जो ज्ञानी हैं यहाँ उत्तर कभी कह कर नहीं देते

यहाँ जैसा जो करता है सदा भरता है वैसा ही
ये ऐसी बात है जिसको कभी लिख कर नहीं देते

यही इतिहास कहता है ज़रा तुम होश में रहना
बहुत अय्याश लोगों को कभी लश्कर नहीं देते

बड़े मासूम लगते हैं अगर बच पाओ बच लेना
ये हत्यारे कभी बचने का भी अवसर नहीं देते

यहाँ तो अब अदब में घुस गए हैं लोग सामंती
करो इनको नमस्ते ठीक से उत्तर नहीं देते

कोई तो खोट होगी परवरिश में क्या पता पंकज 
जिन्हें पाला वही परिणाम यूं बदतर नहीं देते  

7 टिप्पणियाँ:

shikha varshney March 27, 2012 at 6:25 AM  

यहाँ तो अब अदब में घुस गए हैं लोग सामंती
करो इनको नमस्ते ठीक से उत्तर नहीं देते.
सत्य वचन .

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') March 27, 2012 at 7:47 AM  

बहुत उम्दा गजल काही है भईया..।
सादर बधाई प्रणाम।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया March 27, 2012 at 10:08 PM  

वाह !!!!! बहुत सुंदर गजल ,क्या बात है,बेहतरीन....

MY RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,

संगीता स्वरुप ( गीत ) March 28, 2012 at 11:12 AM  

बहुत खूब ...सारे शेर अपने आप में मुक्कमल ...




आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 29-०३ -2012 को यहाँ भी है

.... नयी पुरानी हलचल में ........सब नया नया है

Rajesh Kumari March 28, 2012 at 9:23 PM  

bahut behtreen ghazal ek se badhkar ek ashaar.

सदा March 29, 2012 at 12:51 AM  

वाह ...बहुत खूब ।

M VERMA March 29, 2012 at 9:44 AM  

वाह वाह क्या कहने बहुत सुंदर

सुनिए गिरीश पंकज को

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