''सद्भावना दर्पण'

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सबके रेट बढ़ा रहे, दिल्ली के शैतान......

>> Sunday, April 1, 2012

एक समय था जब देश देश की तरह चला करता था. अब तो लगता है देश किसी बड़े सेठ की दूकान है, जो अपने लाभ की ही चिंता में लगा रहता है. दुःख होता है कि हमारी सरकार को आम नागरिक की बिलकुल चिंता नहीं. महंगाई बढ़ती ही जा रही है. देश में ऐसे करोड़ों लोग है, जिनको  महंगाई-भत्ता  नहीं मिलता. वे लोग कहाँ जाएँ, क्या करे? खैर, हम कुछ नहीं कर सकते. केवल एक कविता लिख सकते है. या जानते हुए भी की इससे कुछ नहीं हो सकता.
महँगाई से भिड गया, टांका ऐसा यार
जब चाहे उसके लिए, खडी हुई सरकार.

जनता जाये भाड़ में, अब ऐसा है दौर,
दिल्ली छीने जा रही, अब तो मुंह का कौर.


देश देश ना अब रहा, जैसे कोई दुकान,
दिल्ली मानों सेठ है, बेच रही सामान .

घटा सह कर भी अगर, दे राहत सरकार.
जनता करती है सदा, तब उसकी जयकार.

लोकतंत्र का हो गया , कैसा सत्यानाश,
छः दशकों के बाद अब, लगता जैसे लाश.

बिजली हो, पेट्रोल हो, खाने का सामान,
सबके रेट बढ़ा रहे, दिल्ली के शैतान

कैसे अब जीवन जिये , हैरत में इंसान.
दूर बहुत बदलाव है, दुखिया हिन्दुस्तान

11 टिप्पणियाँ:

महेन्‍द्र वर्मा April 1, 2012 at 7:27 AM  

बिजली हो, पेट्रोल हो, खाने का सामान,
सबके रेट बढ़ा रहे, दिल्ली के शैतान

कैसे अब जीवन जिये , हैरत में इंसान.
दूर बहुत बदलाव है, दुखिया हिन्दुस्तान

दोहों में हिंदुस्तान का दर्द साफ दिखाई दे रहा है।

परमजीत सिहँ बाली April 1, 2012 at 9:33 AM  

सही है जी ये महँगाई तो मार डाले रही है...बढिया रचना है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) April 1, 2012 at 10:20 AM  

सत्य को कहती खूबसूरत गजल ...

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') April 1, 2012 at 7:56 PM  

(बिजली हो, पेट्रोल हो, खाने का सामान,
सबके रेट बढ़ा रहे, दिल्ली के शैतान)

दिल्ली के शैतान, बदलते नितनव मुखड़े,
समझ सकें वो काश, बिलखते जन के दुखड़े
बापू का हर ख्वाब, टूटता रोती तकली
उनके 'उन' पर आज, गिराते निर्मम बिजली॥

करारे दोहों में देश का दर्द अभिव्यक्त कर दिया भईया...
सादर प्रणाम.

udaya veer singh April 1, 2012 at 8:12 PM  

खूबसूरत गजल ...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया April 1, 2012 at 11:55 PM  

बहुत बढ़िया गजल,सुंदर पोस्ट,....

MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: मै तेरा घर बसाने आई हूँ...

virendra sharma April 2, 2012 at 12:47 AM  

जनता जाये भाड़ में, अब ऐसा है दौर,
दिल्ली छीने जा रही, अब तो मुंह का कौर.
सरकार का हाथ आपकी जेब में .

रविकर April 2, 2012 at 1:30 AM  

बेहतरीन ||

Pallavi saxena April 2, 2012 at 1:43 AM  

सार्थक रचना ....

shikha varshney April 2, 2012 at 12:36 PM  

दोहों में आम इंसान के दर्द की झलक.
बेहतरीन.

Sawai Singh Rajpurohit April 5, 2012 at 2:48 AM  

बहुत ही सुंदर प्रस्तुति

आप को सुगना फाऊंडेशन मेघलासिया,"राजपुरोहित समाज" आज का आगरा और एक्टिवे लाइफ
,एक ब्लॉग सबका ब्लॉग परिवार की तरफ से सभी को भगवन महावीर जयंती, भगवन हनुमान जयंती और गुड फ्राइडे के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ॥
आपका

सवाई सिंह{आगरा }

सुनिए गिरीश पंकज को

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