''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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करो नहीं प्रतिवाद हमारी बस्ती में/ बैठे हैं जल्लाद हमारी बस्ती में

>> Wednesday, August 1, 2012

करो नहीं प्रतिवाद हमारी बस्ती में
 बैठे हैं जल्लाद हमारी बस्ती में

मर जाओ भूखे-प्यासे, कर लो नारे
डंडे हैं आबाद हमारी बस्ती में

इधर-उधर सब शातिर-जुल्मी बैठे हैं 
किनसे हो फ़रियाद हमारी बस्ती में

जीने भी न देंगे केवल मरने पर
करेंगे हमको याद हमारी बस्ती में

लोकतंत्र को दमनतंत्र क्यों कर डाला 
खुल कर हो संवाद हमारी बस्ती में

'हिरनकश्यप' और 'होलिकाएं' देखो
गुम है अब प्रहलाद हमारी बस्ती में

सच्चे मारे जाते हैं अब तो केवल
चमचे हैं दामाद हमारी बस्ती में

इंकलाब को अगर कुचल कर रख दोगे
क्या हो इसके बाद हमारी बस्ती में

लोकतंत्र शर्मिन्दा है, 'बापू' तुझको
करते हैं सब याद हमारी बस्ती में

कविता का उपहास उड़ाया जाता है
चुट्कुल्लों को दाद हमारी बस्ती में

कुर्सी पे बैठे है सारे चोर यहाँ
होंगे सब बरबाद हमारी बस्ती में

5 टिप्पणियाँ:

Shah Nawaz August 1, 2012 at 7:21 AM  

बहतरीन लिखा है गिरीश जी...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया August 1, 2012 at 8:19 AM  

इंकलाब को अगर कुचल कर रख दोगे
क्या हो इसके बाद हमारी बस्ती में,,,,,

वाह,,,बहुत खूब,,,,,गिरीश जी,,,
बेहतरीन रचना के लिए बधाई,,,,

रक्षाबँधन की हार्दिक बधाई,शुभकामनाए,,,
RECENT POST काव्यान्जलि ...: रक्षा का बंधन,,,,

Yashwant R. B. Mathur August 1, 2012 at 8:57 PM  

बहुत बढ़िया सर!


सादर

Unknown August 2, 2012 at 3:07 AM  

बेहतरीन रचना के लिए बधाई

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') August 3, 2012 at 4:48 AM  

शानदार गजल भईया...
सादर प्रणाम.

सुनिए गिरीश पंकज को

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