इतनी सुन्दर दुनिया है ये इसे छोड़ कर जाऊं कैसे
>> Thursday, September 27, 2012
इतनी सुन्दर दुनिया है ये इसे छोड़ कर जाऊं कैसे
लेकिन जाना भी है निश्चित इसको मैं बिसराऊँ कैसे
आने का तो मन था लेकिन अनचाहा मेहमान नहीं
कोई तो हो एक इशारा बिन इसके मैं आऊं कैसे
अपनी नादानी से मैंने खोये हैं कितने मौके
बीत गया जो वक्त उसे अब आज दुबारा पाऊँ कैसे
जीवन है ये एक चुनरिया इस पे धब्बा ठीक नहीं
इतने धब्बे लग गए इनमें आखिर इन्हें छुडाऊँ कैसे
दिल ये मेरा चाहे उनको लेकिन बोल नहीं पाया
अपने इन ज़ज्बातों को मैं आखिर कहो छिपाऊँ कैसे
कोई इक तस्वीर बसी थी अपने दिल के कोने में
उसने तोड़ दिया है रिश्ता लेकिन इसे मिटाऊँ कैसे
रिश्ते नाजुक होते हैं ये टूट गए नादानी में
समझ न आये पंकज आखिर बिगड़ी बात बनाऊं कैसे
लेकिन जाना भी है निश्चित इसको मैं बिसराऊँ कैसे
आने का तो मन था लेकिन अनचाहा मेहमान नहीं
कोई तो हो एक इशारा बिन इसके मैं आऊं कैसे
अपनी नादानी से मैंने खोये हैं कितने मौके
बीत गया जो वक्त उसे अब आज दुबारा पाऊँ कैसे
जीवन है ये एक चुनरिया इस पे धब्बा ठीक नहीं
इतने धब्बे लग गए इनमें आखिर इन्हें छुडाऊँ कैसे
दिल ये मेरा चाहे उनको लेकिन बोल नहीं पाया
अपने इन ज़ज्बातों को मैं आखिर कहो छिपाऊँ कैसे
कोई इक तस्वीर बसी थी अपने दिल के कोने में
उसने तोड़ दिया है रिश्ता लेकिन इसे मिटाऊँ कैसे
रिश्ते नाजुक होते हैं ये टूट गए नादानी में
समझ न आये पंकज आखिर बिगड़ी बात बनाऊं कैसे
6 टिप्पणियाँ:
वाह ,,,, पंकज जी,बहुत ही कमाल की अभिव्यक्ति,
रिश्ते नाजुक होते हैं ये टूट गए नादानी में
समझ न आये पंकज आखिर बिगड़ी बात बनाऊं कैसे,
RECENT POST : गीत,
बहुत सुंदर... अहसास से भरी पंक्तियां हैं पंकज जी, बधाई।
इतनी सुन्दर दुनिया है ये इसे छोड़ कर जाऊं कैसे
लेकिन जाना भी है निश्चित इसको मैं बिसराऊँ कैसे
-डॉ. रत्ना वर्मा
रिश्ते नाजुक होते हैं ये टूट गए नादानी में
समझ न आये पंकज आखिर बिगड़ी बात बनाऊं कैसे,
बहुत ही प्रभावी पंक्तियाँ .
पर सकारात्मक लेखनी से आज निराशा के भाव क्यों?
बेहतरीन लिखा है गिरीश जी....
जीवन है ये एक चुनरिया इस पे धब्बा ठीक नहीं
इतने धब्बे लग गए इनमें आखिर इन्हें छुडाऊँ कैसे
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
एक इशारा !!! ये क्या है गिरीश जी ! इसी के कारण ही तो सब चल रहा है ! कितनी सहज उदार और कोमल होती हैं आप की कविताएँ ! चलती रहे ये धारा!
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