Monday, January 28, 2013

फिर मुझे धोखा मिला, मैं क्या कहूँ...

पेश है उन लोगों का दर्द जो ये सब भोग चुके हैं
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फिर मुझे धोखा मिला, मैं क्या कहूँ
है यही इक सिलसिला, मैं क्या कहूँ
 
देख ली तेरी वफ़ा मैंने इधर -
ला, जहर मुझको पिला, मैं क्या कहूँ
 
तोड़ कर दिल हँस रहे हैं लोग अब
तू भी आ के दिल जला, मैं क्या कहूँ
 
जान देने की कसम खाई मगर
क्या मिला मुझको सिला, मैं क्या कहूँ
 
'लिस्ट' लम्बी है हमारे दर्द की ,
और कितनों ने ठगा, मैं क्या कहूँ
 
तू न आया तो समझ ले मैं गया,
आ भी जा, बस आ भी जा, मैं क्या कहूँ
 
ये उदासी जान न ले ले कहीं
आ के थोड़ा मुस्करा, मैं क्या कहूँ
 
अब यहाँ किस पर यकीं बोलो करें
यार पंकज तू बता, मैं क्या कहूँ

6 comments:

  1. लिस्ट'लम्बी है हमारे दर्द की ,
    और कितनों ने ठगा,मैं क्या कहूँ,,,

    वाह वाह !!! बहुत उम्दा गजल,,,पंकज जी,,

    recent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,

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  2. बहुत ही बढ़िया सर!


    सादर

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  3. बहुत बढ़िया ग़ज़ल सर....

    सादर
    अनु

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  4. आपकी इस उत्कृष्ट अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (25-05-2014) को ''ग़ज़ल को समझ ले वो, फिर इसमें ही ढलता है'' ''चर्चा मंच 1623'' पर भी होगी
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    आप ज़रूर इस ब्लॉग पे नज़र डालें
    सादर

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