Sunday, June 2, 2013

जैसे किया सवाल देखिये / सत्ता में भूचाल देखिये

कविता लम्बी तो है, मगर शायद पसंद आ जाये
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जैसे किया सवाल देखिये / सत्ता में  भूचाल देखिये
क्या सोचा था क्या पाया है / लोकतंत्र का हाल देखिये
सच कहना भारी पड़ता है /कितना मचा बवाल देखिये
समझाइश का असर नहीं है / कितनी मोटी खाल देखिये
उनका 'स्वीमिंग पूल' लबालब/ अपने सूखा ताल देखिये
जिसको मौका मिला वही अब / लूट रहा है माल देखिये
शायद फिर मछली फँस जाये / फेंक रहे वे जाल देखिये
आँखें मूँदो, फिकर मत करो / है ये नया ख़याल देखिये
अपनी भी है शाही थाली  / सूखी रोटी-दाल देखिये
जीवन को हँस कर हम जीएँ / वरना है जंजाल देखिये
फिर वो  मालामाल हो गये / फिर से पडा अकाल देखिये
सच्चाई के साथ जिया वो / बेचारा- बदहाल देखिये
देस छोड़ परदेस जा बसे / थे माई के लाल देखिये
खुद तो मालामाल हो गए / देश हुआ कंगाल देखिये
भ्रष्टोदय जी रिश्वत दे कर / फिर से हुए बहाल देखिये
हमने पूछा कुछ आता है? / बजा रहे हैं  गाल देखिये
आओ, सुख तक हम पहुंचा दें?  फिरते यहाँ दलाल देखिये
वो कितना संतोषी बन्दा / है कितना खुशहाल देखिये
भूखे रह कर भी मुस्काए/ 'पंकज' करे कमाल देखिये 

6 comments:

  1. गिरीश जी की कविता को पसंद करने में "शायद" का प्रयोग हो ही नहीं सकता. सटीक कविता आदरणीय.

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  2. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार ४ /६/१३ को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आप का वहां हार्दिक स्वागत है ।

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  3. इतना सब कुछ होने पर / नेताओं के क्या है ख्याल देखिये,

    recent post : ऐसी गजल गाता नही,

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  4. Saral magar teekha aur satik vyang..

    Ye panktiyan yaad aati hai yahan:

    bas ek hi ullu kaafi tha barbaad gulishtaan karneko,
    har saakh pe ullu baitha hai, anjaame gulishtaan kya hoga...

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  5. अपनी भी है शाही थाली / सूखी रोटी-दाल देखिये

    बेहतरीन व्यंग्य

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