''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
&COPY गिरीश पंकज संपादक सदभावना दर्पण. Powered by Blogger.

रक्षा बंधन की हार्दिक शुभ कामनाएँ

>> Tuesday, August 20, 2013


बहनों की रक्षा करें, अपनी हो या गैर,
खतरे में बहने यहाँ, शत्रु दिखे हैं ढेर . .

रक्षाबंधन और क्या, है मन का विश्वास।
कभी न टूटे बस यही , रखे बहन ये आस.

निर्मल राखी-पर्व है, यहाँ लेन, ना देन,
त्याग, समर्पण ही सदा, सिखलाये दिन-रैन.
.
बहने क्या है इक नदी, करती मन को शुद्ध,
जो बहनों को मान दे, होता वही प्रबुद्ध

कदम-कदम पर देखिये, तेजाबी है दौर,
पापी बढ़ते जा रहे, दिखता और न छोर।

4 टिप्पणियाँ:

अनुपमा पाठक August 20, 2013 at 5:58 AM  

निर्मल राखी-पर्व है, यहाँ लेन, ना देन,
त्याग, समर्पण ही सदा, सिखलाये दिन-रैन.

बहुत सुन्दर!
शुभकामनाएं!

सादर!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया August 20, 2013 at 11:37 AM  

सुंदर सृजन लाजबाब दोहे ,,,

RECENT POST : सुलझाया नही जाता.

Unknown August 20, 2013 at 10:46 PM  

Happy Rakshabandhan to all

विभूति" August 21, 2013 at 3:53 AM  

बहुत ही खुबसूरत और प्यारी रचना.....

सुनिए गिरीश पंकज को

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